गुजरात में पटेल की सत्ता, भाजपा के 'मुख्यमंत्री बदलो अभियान' में तेज़ी
मुख्यमंत्री बदलो अभियान के तहत गुजरात ऐसा तीसरा राज्य है जहां कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही तीन महीने के भीतर तीन मुख्यमंत्री बदला गया है...

भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री बदलो अभियान में अगला नाम गुजरात के मुख्यमंत्री रहे विजय रूपाणी का शामिल हो गया है। राज्य की सत्ता अब पार्टीदार के हाथ में सौंपी गई है। गृह मंत्री अमित शाह के गुजरात दौरे के बाद विधायक दल ने भूपेंद्र पटेल को अगला मुख्यमंत्री चुना है।
राज्य में मुख्यमंत्री बदलने का निर्णय ऐसे दौर में लिया गया है, जब उत्तर प्रदेश के चुनाव के साथ ही गुजरात में समय से पहले चुनाव कराए जाने के क़यास लगाए जा रहे हैं। राज्य की सत्ता पर बिठाए गए भूपेंद्र पटेल का नाम इसी ओर इशारा करती है।
पटेल के सहारे मुख्यमंत्री की रेस में केन्द्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया और आर.सी. फालदू समेत सभी बड़े दावेदार पाटीदार या पटेल समुदाय से ही थे। गुजरात में, पाटीदार एक प्रमुख जाति है, जिसका राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर बड़ा नियंत्रण है। राज्य में इस समुदाय का सहकारी क्षेत्र, शिक्षा, रियल्टी और निर्माण और छोटे और मध्यम उद्यमों पर अपनी पकड़ है। गुजरात में पाटीदार समुदाय से पार्टी के पहले मुख्यमंत्री 1995 में केशुभाई पटेल बने थे। ख़बरें यह भी है कि गुजरात में महामारी में "नाकामयाबी" की वजह से सत्ता विरोधी लहर को कम करने के लिए दिल्ली से रिमोट दबाई गई है। रिमोट दबाने की अचानक ख़बरों के बाद विजय रूपाणी ने लिखे हुए 500 शब्दों के स्पीच को मीङिया के सामने पढ़ा और पांच बार प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, गुजरात भाजपा के एक नेता ने कहा कि यह फैसला अमित शाह के शिष्य रूपानी के पिछले पांच वर्षों में गुजरात की राजनीति को “गड़बड़” करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से ही आया है। दिसंबर 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में, सत्तारूढ़ भाजपा 182 में 99 सीटों के साथ मुश्किल से साधारण बहुमत हासिल कर पाई थी। अब कहा जा रहा है कि समय से 8-9 महीने पहले ही राज्य में चुनाव कराए जा सकते हैं। छह महीने में बीजेपी ने बदले चार मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री बदलो अभियान के तहत गुजरात ऐसा तीसरा राज्य है जहां कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही तीन महीने के भीतर तीन मुख्यमंत्री बदला गया है। कर्नाटक में, लिंगायत के दिग्गज बीएस येदियुरप्पा ने 26 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, जबकि 2023 में उनका कार्यकाल समाप्त होने में लगभग दो साल बाकी थे। अब बसवराज बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं। तीरथ सिंह रावत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह लेने के सिर्फ 115 दिन बाद इस्तीफा दे दिया, तिरथ सिंह रावत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह ली थी। इस लिहाज से छह महीने में विजय रुपाणी ऐसे चौथे मुख्यमंत्री हैं जिनको मुख्यमंत्री बदलो अभियान के तहत अपना पद छोड़ना पड़ा। उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को बनाया गया जो कुमौनी राजपूत हैं। बीजेपी की सरकारों में मतभेद इनके अलावा उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश सरकार में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। उत्तर प्रदेश में ङिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के मन में योगी आदित्यनाथ को लेकर मतभेद सामने आते रहते हैं। हालांकि बीजेपी के भीतर इस बात को लेकर चर्चा कम ही होती है, इसकी वजह यह भी है और इसमें शक नहीं है कि योगी आदित्यनाथ राज्य में एक मज़बूत पकड़ रखते हैं, जबकि राज्य में हिंदू समुदाय में ठाकुर की आबादी महज़ 7-8 फीसदी है। उधर मध्यप्रदेश सरकार में बीते दिनों उठी आग अभी पूरी तौर पर बुझी नहीं है। हालांकि अफवाह क़रार देकर बीजेपी ने सत्ता में किसी भी बदलाव से इनकार कर दिया। जानकार कहते हैं कि कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा और प्रहलाद पटेल जो शिवराज सिंह चौहान के विरोधी माने जाते हैं, सहित मध्य प्रदेश भाजपा नेताओं के बीच बंद दरवाजे की बैठकें आने वाले दौर में किसी भी नतीज़े तक पहुंच सकती है। राज्य में 2023 में अगला चुनाव होना है और जानकार मानते हैं कि ख़ुद सरकार में ही नहीं, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं के भीतर भी शिवराज सिंह चौहान के ख़िलाफ नाराज़गी है। ऐसे में अन्य राज्यों में लागू की जा रही रणनीति मध्यप्रदेश में भी लागू की जा सकती है।
पटेल के सहारे मुख्यमंत्री की रेस में केन्द्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया और आर.सी. फालदू समेत सभी बड़े दावेदार पाटीदार या पटेल समुदाय से ही थे। गुजरात में, पाटीदार एक प्रमुख जाति है, जिसका राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर बड़ा नियंत्रण है। राज्य में इस समुदाय का सहकारी क्षेत्र, शिक्षा, रियल्टी और निर्माण और छोटे और मध्यम उद्यमों पर अपनी पकड़ है। गुजरात में पाटीदार समुदाय से पार्टी के पहले मुख्यमंत्री 1995 में केशुभाई पटेल बने थे। ख़बरें यह भी है कि गुजरात में महामारी में "नाकामयाबी" की वजह से सत्ता विरोधी लहर को कम करने के लिए दिल्ली से रिमोट दबाई गई है। रिमोट दबाने की अचानक ख़बरों के बाद विजय रूपाणी ने लिखे हुए 500 शब्दों के स्पीच को मीङिया के सामने पढ़ा और पांच बार प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, गुजरात भाजपा के एक नेता ने कहा कि यह फैसला अमित शाह के शिष्य रूपानी के पिछले पांच वर्षों में गुजरात की राजनीति को “गड़बड़” करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से ही आया है। दिसंबर 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में, सत्तारूढ़ भाजपा 182 में 99 सीटों के साथ मुश्किल से साधारण बहुमत हासिल कर पाई थी। अब कहा जा रहा है कि समय से 8-9 महीने पहले ही राज्य में चुनाव कराए जा सकते हैं। छह महीने में बीजेपी ने बदले चार मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री बदलो अभियान के तहत गुजरात ऐसा तीसरा राज्य है जहां कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही तीन महीने के भीतर तीन मुख्यमंत्री बदला गया है। कर्नाटक में, लिंगायत के दिग्गज बीएस येदियुरप्पा ने 26 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, जबकि 2023 में उनका कार्यकाल समाप्त होने में लगभग दो साल बाकी थे। अब बसवराज बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं। तीरथ सिंह रावत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह लेने के सिर्फ 115 दिन बाद इस्तीफा दे दिया, तिरथ सिंह रावत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह ली थी। इस लिहाज से छह महीने में विजय रुपाणी ऐसे चौथे मुख्यमंत्री हैं जिनको मुख्यमंत्री बदलो अभियान के तहत अपना पद छोड़ना पड़ा। उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को बनाया गया जो कुमौनी राजपूत हैं। बीजेपी की सरकारों में मतभेद इनके अलावा उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश सरकार में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। उत्तर प्रदेश में ङिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के मन में योगी आदित्यनाथ को लेकर मतभेद सामने आते रहते हैं। हालांकि बीजेपी के भीतर इस बात को लेकर चर्चा कम ही होती है, इसकी वजह यह भी है और इसमें शक नहीं है कि योगी आदित्यनाथ राज्य में एक मज़बूत पकड़ रखते हैं, जबकि राज्य में हिंदू समुदाय में ठाकुर की आबादी महज़ 7-8 फीसदी है। उधर मध्यप्रदेश सरकार में बीते दिनों उठी आग अभी पूरी तौर पर बुझी नहीं है। हालांकि अफवाह क़रार देकर बीजेपी ने सत्ता में किसी भी बदलाव से इनकार कर दिया। जानकार कहते हैं कि कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा और प्रहलाद पटेल जो शिवराज सिंह चौहान के विरोधी माने जाते हैं, सहित मध्य प्रदेश भाजपा नेताओं के बीच बंद दरवाजे की बैठकें आने वाले दौर में किसी भी नतीज़े तक पहुंच सकती है। राज्य में 2023 में अगला चुनाव होना है और जानकार मानते हैं कि ख़ुद सरकार में ही नहीं, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं के भीतर भी शिवराज सिंह चौहान के ख़िलाफ नाराज़गी है। ऐसे में अन्य राज्यों में लागू की जा रही रणनीति मध्यप्रदेश में भी लागू की जा सकती है।
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