18 सरकारी बैंकों का साढ़े चार लाख करोड़ से ज़्यादा डूबा, लोगों के पास ईएमआई तक के पैसे नहीं

देश की अर्थव्यवस्था कोरोनाकाल से पहले ही ढलान पर थी। हालात इस कदर ख़राब है कि क़र्जदारों के पास ईएमआई तक चुकाने के पैसे नहीं बचे हैं। इसी के कारण बड़े सरकरी बैंको पर लगातार बढ़ता एनपीए यानि नॉन-परफार्मिंग असेस्ट्स का बोझ बढ़ता जा रहा है। आसान भाषा में कहें तो ये बैंकों का वो पैसा जो डूब गया है और इनकी उगाही होने की उम्मीद ना के बराबर है। अब ताज़ा सरकारी आंकड़े एक डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हैं जो यह इस बात का सबूत है कि अब उद्योग-धंधे से लेकर शिक्षा लोन तक लोग बैंकों को वापिस नहीं चुका पा रहे हैं।
दरअसल, संसद में मॉनसून सत्र के पहले दिन वित्त मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में बताया है कि 31 मार्च, 2020 तक 18 सरकारी बैंकों का चार लाख 67 हज़ार 140 करोड़ रूपये का क़र्ज़ एनपीए बन गया है। यानि बहुत संभव है कि बैंक ये पैसा कभी रिकवर ना पर पाए। मंत्रालय ने आरबीआई के हवाले से बताया है कि सरकारी बैंकों ने भारी रक़म अलग-अलग क्षेत्रों में क़र्ज़ के तौर पर दिए थे जिसकी उगाही नहीं हो सकी है। इन बैंकों का सबसे ज़्यादा तीन लाख 33 हज़ार 143 करोड़ रूपया उद्योग-धंधों को क़र्ज़ के तौर पर दिया गया था जोकि अब एनपीए में तब्दील हो गया। इसके अलावा कृषि लोन में भी बैंकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। कृषि क्षेत्र में बैंकों का एक लाख 11 हज़ार 326 करोड़ रूपया एनपीए बन गया है।
हालात तो इतने ख़राब है कि आम इंसान घर और पढ़ाई के लिए लिया गया कर्ज़ नहीं चूका पा रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि सरकारी बैंकों का शिक्षा लोन के तौर पर पांच हज़ार 626 करोड़ और हाउसिंग लोन के तौर पर 17 हज़ार 45 करोड़ रूपये डूब चूका है। यही नहीं मोदी सरकार में क़र्ज़ लेकर देश से चंपत भी हो गए। मंत्रालय के मुतबिक़ साल 2015 से साल 2019 के बीच 38 लोग देश छोड़कर भाग गए जिनके ख़िलाफ बैंकों में वित्तीय अनियमतता का मामला दर्ज था। इनके अलावा प्रवर्तन निदेशालय ने 20 लोगों के ख़िलाफ़ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया है। वहीं 14 लोगों को भारत लाने के लिए दूसरे देशों को प्रत्यर्पण अनुरोध भेजा गया है और बैंकों को धोखा देने वाले अन्य 11 लोगों के ख़िलाफ़ भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है। इन आंकड़ों से ज़ाहिर है कि देश का बैंकिंग सिस्टम बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहा है और सरकार को चाहिए इसको संभाले अन्यथा गाड़ी को पटरी से उतरने में देर नहीं लगेगी।
हालात तो इतने ख़राब है कि आम इंसान घर और पढ़ाई के लिए लिया गया कर्ज़ नहीं चूका पा रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि सरकारी बैंकों का शिक्षा लोन के तौर पर पांच हज़ार 626 करोड़ और हाउसिंग लोन के तौर पर 17 हज़ार 45 करोड़ रूपये डूब चूका है। यही नहीं मोदी सरकार में क़र्ज़ लेकर देश से चंपत भी हो गए। मंत्रालय के मुतबिक़ साल 2015 से साल 2019 के बीच 38 लोग देश छोड़कर भाग गए जिनके ख़िलाफ बैंकों में वित्तीय अनियमतता का मामला दर्ज था। इनके अलावा प्रवर्तन निदेशालय ने 20 लोगों के ख़िलाफ़ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया है। वहीं 14 लोगों को भारत लाने के लिए दूसरे देशों को प्रत्यर्पण अनुरोध भेजा गया है और बैंकों को धोखा देने वाले अन्य 11 लोगों के ख़िलाफ़ भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है। इन आंकड़ों से ज़ाहिर है कि देश का बैंकिंग सिस्टम बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहा है और सरकार को चाहिए इसको संभाले अन्यथा गाड़ी को पटरी से उतरने में देर नहीं लगेगी।
ताज़ा वीडियो