मनरेगा, प्रधानमंत्री मोदी ने बनाया मज़ाक लेकिन उन्हीं की पार्टी के सीएम कर रहे तारीफ

by GoNews Desk 2 years ago Views 3347

MNREGA

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने पिछले हफ्ते जारी एक रिपोर्ट में कांग्रेस की UPA सरकार द्वारा लाई गई योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MANREGA) की तारीफ की है और इसे लॉकडाउन के कारण राज्य में वापस लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए 'लाइफसेवर' बताया है.

गुजरात में ऊर्जा, उत्सर्जन और विकासात्मक दृष्टिकोण पर कोरोना के प्रभाव से जुड़ी  इस रिपोर्ट को राज्य के जलवायु परिवर्तन विभाग ने तैयार किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल लगे लॉकडाउन के कारण करीब एक लाख प्रवासी मज़ूदर गुजरात के दाहोड़ में अपने गांव वापस लौटे. इन लोगों की मनरेगा योजना ने काफी हद तक मदद की है. 

दाहोड़ के धारा डोंगरी गांव में मजदूरों ने खुद को मनरेगा के तहत पंजीकृत कराया है और वह हर रोज़ औसतन 224 रूपये कमा रहे हैं और संकट के समय में ये उनका परिवार चलाने के लिए काफी है. रिपोर्ट में एक समाचार पत्र के हवाले से लिखा गया कि मनरेगा के तहत सबसे अधिक मजदूर गुजरात में काम कर रहे हैं.वहां 2.38 लाख लोग इस योजना से जुड़े हैं. राज्य के भावनगर में 77,659 लोग और नर्मदा में 59,208 लोग योजना के तहत कार्यरत हैं.

एक ओर तो भाजपा शासित राज्य पूर्व सरकार की इस योजना की तारीफ कर रहे हैं जबकि पीएम मोदी खुद इस योजना का उपहास बना चुके हैं. फरवरी 2015 में, पीएम ने इस योजना को "कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की विफलताओं का जीता जागता सबूत" कहा था।

उन्होंने कहा था, "क्या आपको लगता है कि मैं इस योजना को खत्म कर दूंगा? मेरा राजनीतिक ज्ञान मुझे ऐसा करने की इजाजत नहीं देता है. यह 60 वर्षों में गरीबी से निपटने में आपकी विफलता का एक जीवंत प्रमाण है. " उन्होंने कहा, "आपको लोगों को खाई खोदने और उन्हें भुगतान करने के लिए भेजना था। गीत और नृत्य और ढोल की थाप के साथ, मैं इस योजना को जारी रखूंगा. 

 कई मीडिया रिपोर्ट्स ने भी इस बात का समर्थन किया है कि लॉकडाउन के कठिन समय में मनरेगा ने वाकई कई लोगों को भुखमरी से बचाया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 2 से 3 करोड़ मजदूर लॉकडाउन के दौरान अपने घरों को वापस लौटे थे.

इनमें से कई लोगों ने खुद को अपने पारिवारिक काम जैसे खेती आदि से जोड़ लिया जबकि बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार रह गए. रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में सिर्फ अप्रैल से सितंबर तक ही करीब 83 लाख मनरेगा जॉब कार्ड जारी किए गए हैं. ये पिछले सात सालों में सबसे अधिक है जबकि योजना का ट्रैक रखने वाली संस्था के अनुसार इनमें से जुलाई तक ही 2 लाख लोगों ने योजना के तहत 100 दिनों के रोजगार की अवधि पूरी भी कर ली थी. 

 मनरेगा योजना के लिए सरकार के निकालेगए बजट की बात करें तो पिछले वित्तीयय वर्ष में इसे घटा कर कम कर दिया गया है. वित्तीय वर्ष 2020-21 में इस योजना के लिए 61,500 करोड़ रूपये निर्धारित किए गए थे जबकि 2019-20 के वित्तीय वर्ष में इस योजना के लिए 71,002 करोड़ रूपये का बजट था. बाद में हालांकि इसमें 40,000 करोड़ रूपये जोड़ने का ऐलान हुआ था.

इसके अलावा योजना का पिछले सात साल का बजट  58,403.69 करोड़ रुपये (2018-19), 68,107.86 करोड़ रुपये (2017-18), 57,386.67 करोड़ रुपये (2016-17), 43,380.72 करोड़ रुपये था. (2015-16) और रुपये की कुल उपलब्धता रही है। 37,588.03 करोड़ (2014-15) जबकि योजना पर  कुल खर्च 51,510.82 करोड़ (2018-19), 63,646.41 करोड़ (2017-18), 58,062.92 करोड़ (2016-17), 44,002.59 करोड़ (2015-16) और 36,025.04 करोड़ (2014-15) रहा है.

 कांग्रेस की पूर्व सरकार ने मनरेगा योजना की शुरुआत साल 2005 में मनरेगा या महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत देश के ग्रामीण हिस्सों में प्रत्येक वयस्क को कम से कम 100 दिनों के लिए अकुशल शारीरिक श्रम के वादा के साथ की थी. योजना के तहत आमंतौर पर लोगों को प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन से संबंधित कार्य जिनमें जल संरक्षण, भूमि विकास, सिंचाई आदि शामिल हैं, कराए जाते हैं।

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