'मिनी बजट' या बजटबंदी?
सत्ता के गलियारों में यह चर्चा आम है की क्या सरकार अगले साल से टुकड़ो में बजट पेश कर आम बजट की प्रथा को ख़त्म कर देगी ?

देश में जब बीजेपी सरकार बनी थी, तब पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था की वे कानून बनाने में नहीं, बल्कि उन्हें ख़त्म करने में ज्यादा विश्वास रखते है। इसी राह पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने कई मंत्रालयों को एक दूसरे में मिलाया, रेल बजट ख़त्म किया और कई चीज़ो में फेरबदल किया। लेकिन पीएम मोदी ने नए बयान से नए कयास शुरू हो गए कि क्या सरकार आम बजट भी ख़त्म करने वाली है ?
दरअसल, मोदी ने बजट सत्र के पहले दिन मीडिया से बात करते हुए कहा 2021-22 के बजट यानि देश के पूरे साल के बहीखाते को 'मिनी बजट' की संज्ञा दी।उन्होंने कहा की लॉकडाउन से चोट खाई अर्थव्यवस्था को उभारने के लिए पिछले 10 महीनों में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित पैकेजों के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए।
दरअसल, पीएम मोदी का इशारा 12 मई को ऐलान हुए 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज की तरफ था जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई प्रेस कांफ्रेंस कर देश को बताया की आखिर किस सेक्टर में कितना पैसा जायेगा। अपने संबोधन में पीएम मोदी ने इसे जीडीपी का 10 फ़ीसदी हिस्सा बताया था. हालांकि, सरकारी घोषणाओं के इतर कई अंतरराष्ट्रीय बैंको ने सरकार के इस पैकेज को ऊंट के मुंह में ज़ीरा बताया था। ज़्यादातर बैंकों का कहना है कि मोदी सरकार का 20 लाख करोड़ का पैकेज असल में देश की जीडीपी का केवल एक फीसदी है. गो न्यूज़ भी लगातार रिपोर्ट करता रहा है की कैसे पैकेज के बावजूद सरकारी खर्च बढ़ने की बजाये घटा है जिससे देश को आर्थिक गति नहीं मिली। ऐसे में इसे मिनी बजट कहना कितना सही है, यह कहना मुश्किल है। वैसे भी ध्यान रहे, पहले की तरह चीज़े अब सस्ती महंगी बजट से नहीं, बल्कि जीएसटी कौंसिल से होती है जो अलग अलग चीज़ो पर लगने वाले टैक्स को घटाता या बढ़ाता है। शायद इसलिए उसको लेकर जनता में पहले जितनी उत्सुकता नहीं है। बजट पेश करने के तौर तरीके में बदलाव आया है क्यूंकि अब बजट को बहीखाता कहते है और अब वो लाल अटेची में नहीं आता। मोदी सरकार इससे पहले रेल बजट को ख़त्म कर उसे आम बजट में ही मिला चुकी है। तब कारण बताया गया था की रेल से ज्यादा पैसा तो शिक्षा पर खर्च होता है लेकिन उसका कोई बजट अलग से नहीं आता तो फिर रेल बजट अलग से क्यों पेश किया जाये। ऐसे में सत्ता के गलियारों में यह चर्चा आम है की क्या सरकार अगले साल से टुकड़ो में बजट पेश कर आम बजट की प्रथा को ख़त्म कर देगी ?
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दरअसल, पीएम मोदी का इशारा 12 मई को ऐलान हुए 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज की तरफ था जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई प्रेस कांफ्रेंस कर देश को बताया की आखिर किस सेक्टर में कितना पैसा जायेगा। अपने संबोधन में पीएम मोदी ने इसे जीडीपी का 10 फ़ीसदी हिस्सा बताया था. हालांकि, सरकारी घोषणाओं के इतर कई अंतरराष्ट्रीय बैंको ने सरकार के इस पैकेज को ऊंट के मुंह में ज़ीरा बताया था। ज़्यादातर बैंकों का कहना है कि मोदी सरकार का 20 लाख करोड़ का पैकेज असल में देश की जीडीपी का केवल एक फीसदी है. गो न्यूज़ भी लगातार रिपोर्ट करता रहा है की कैसे पैकेज के बावजूद सरकारी खर्च बढ़ने की बजाये घटा है जिससे देश को आर्थिक गति नहीं मिली। ऐसे में इसे मिनी बजट कहना कितना सही है, यह कहना मुश्किल है। वैसे भी ध्यान रहे, पहले की तरह चीज़े अब सस्ती महंगी बजट से नहीं, बल्कि जीएसटी कौंसिल से होती है जो अलग अलग चीज़ो पर लगने वाले टैक्स को घटाता या बढ़ाता है। शायद इसलिए उसको लेकर जनता में पहले जितनी उत्सुकता नहीं है। बजट पेश करने के तौर तरीके में बदलाव आया है क्यूंकि अब बजट को बहीखाता कहते है और अब वो लाल अटेची में नहीं आता। मोदी सरकार इससे पहले रेल बजट को ख़त्म कर उसे आम बजट में ही मिला चुकी है। तब कारण बताया गया था की रेल से ज्यादा पैसा तो शिक्षा पर खर्च होता है लेकिन उसका कोई बजट अलग से नहीं आता तो फिर रेल बजट अलग से क्यों पेश किया जाये। ऐसे में सत्ता के गलियारों में यह चर्चा आम है की क्या सरकार अगले साल से टुकड़ो में बजट पेश कर आम बजट की प्रथा को ख़त्म कर देगी ?
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