मेरिटल रेपः सरकार का रूख और अदालत के फ़ैसले

देश में इन दिनों मेरिटल रेप यानि शादी के बाद पत्नी से जबरन संबंध का मुद्दा चर्चा में है। इसके पीछे देश के दो अलग अलग हाईकोर्ट के मेरिटेल रेप से जुड़े हाल ही में दिए गए फैसलें हैं। केरल हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाना तलाक का एक मज़बूत आधार है। बता दें कि भारत में मेरिटल रेप की कोई सज़ा नहीं है। वहीं हाल ही में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने निचली अदालत में आरोपी पाए गए पति को बरी कर दिया था।
शख्स की पत्नी से उस पर कई बार जबरन यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था। पति को निचली अदालत ने दोषी पाया जबकि हाईकोर्ट ने उसे ये कह कर बरी कर दिया कि कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ पति द्वारा ज़बरदस्ती संबंध बनाना रेप की श्रेणी में नहीं आता है। अदालत ने हालांकि धारा 377 के तहत शख्स पर अवैध संबंध बनाने और दहेज प्रताड़ना के मुकदमे को मंज़ूरी दी है।
क्या है मेरिटल रेप?
आसान शब्दों में पति द्वारा पत्नी के साथ उसकी बिना सहमति के यौन संबंध बनाना मेरिटल रेप है। इसमें पति द्वारा बल का प्रयोग भी हो सकता है।
मेरिटल रेप के बारे में क्या कहता है भारतीय कानून?
भारतीय कानून में IPC की धारा 375 के तहत पति के पत्नी के साथ जबरन बनाए गए यौन संबंधों यानि मेरिटल रेप को बलात्कार से बाहर रखा गया है। कानून के मुताबिक यदि पत्नी बालिग है तो पति द्वारा उसके साथ जबरन बनाए गए संबंधों को बलात्कार नहीं माना जाएगा। भारतीय कानून में ऐसी हरकत को मानसिक और शारिरिक प्रताड़ना के दायरे में रखा गया है।
सीनियर एडवोकेट आभा सिंह के मुताबिक ऐसी प्रताड़ना का शिकार हुई पत्नी पति के खिलाफ सेक्शन 498A और 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून के तहत सेक्शुअल असॉल्ट का केस दर्ज करा सकती है।
क्या है सरकार का रूख?
इंडियन एक्सप्रेस की 2020 में छपी एक रिपोर्ट में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-16 के आंकड़ों के हवाले से लिखा गया कि औसतन एक भारतीय महिला के दूसरे पूरुष के मुकाबले अपने पति के हाथों यौन हिंसा के शिकार होने की संभावना 17 गुना ज़्यादा होती है। 2013 में, महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र समिति (सीईडीएडब्ल्यू) ने सुझाव दिया था कि देश में मेरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाया जाना चाहिए।
इसके अलावा दिंसबर 2012 में दिल्ली में हुए गैंग रेप के बाद बनाई गई जेएस वर्मा की कमेटी ने भी इस तरह के सुझाव दिए थे हालांकि 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक अर्जी पर जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकरण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को "अस्थिर" कर सकता है। 2019 में तब के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने भी कहा था कि मेरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है।
मेरिटल रेप के मुद्दे पर किस तरफ है दुनिया?
1932 में पोलैंड दुनिया का पहला देश बना जिसने मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रोग्रेस ऑफ वर्ल्ड वुमन रिपोर्ट के मुताबिक 2018 तक दुनिया के 185 में से सिर्फ 77 देशों में मेरिटल रेप को लेकर स्पष्ट कानून हैं। 74 देशों में पति के खिलाफ रेप की अपराधिक शिकायत दर्ज कराने का प्रावधान है। 34 देशों में मेरिटल रेप पर किसी तरह की सज़ा का प्रावधान नहीं है, भारत इनमें से एक है।
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