Karnataka Hijab Row: हाई कोर्ट ने हिजाब मामले की सुनवाई 'बड़ी बेंच' को रेफर किया !

कर्नाटक हाई कोर्ट ने मुस्लिम छात्राओं द्वारा कक्षा में हिजाब को बैन किए जाने के मामले में दायर याचिकाओं को एक बड़े बेंच का पास भेज दिया है। जस्टिस कृष्णा एस. दीक्षित इस मामले की सुनवाई कर रहे थे और उन्होंने इसे बड़ी बेंच को रेफर करना ज़रूरी समझा।
अदालत ने कहा, "मुझे लगता है कि इस मामले में बड़ी बेंच के विचार की ज़रूरत है। पड़ोसी हाई कोर्ट द्वारा ऐसे मामले में दिए निर्णयों पर विचार होना चाहिए।"
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने अदालत से छात्राओं को अंतरिम राहत देने का आग्रह किया, लेकिन मामला एक बड़ी बेंच को रेफर कर दिया गया। उन्होंने कहा कि "उनके (मुस्लिम छात्राओं के) पास (शैक्षणिक वर्ष के) सिर्फ दो महीने बचे हैं। उन्हें बाहर न करें ... हमें एक रास्ता खोजने की ज़रूरत है कि कोई भी बच्ची शिक्षा से वंचित न रहे ... कॉलेज लौट आए। दो महीने तक कोई आसमान नहीं गिरेगा...।" कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील साजन पूवैया ने हालांकि दलील दी कि रिट याचिकाओं में उठाए गए सवाल पूरी तरह से जस्टिस दीक्षित के रोस्टर के तहत आते हैं। इसलिए उन्होंने कोर्ट से पक्षकारों को सुनने के बाद मामले का निपटारा करने की अपील की। जबकि एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवदगी ने अंतरिम राहत दिए जाने का विरोध किया। उन्होंने कोर्ट में कहा कि, "मेरा निवेदन यह है कि मेरे विद्वान मित्र (देवदत्त कामत- याचिकाकर्ता के वकील) ने अपनी दलीलें पूरी कर ली हैं। अब, यह राज्य को बहस करने के लिए है और फिर यह कोर्ट को फैसला करना है ... मैं कहना चाहता था कि याचिकाएं ग़लत हैं। उन्होंने सरकार पर सवाल उठाया है। प्रत्येक संस्थान को (ड्रेस कोड तेय करने की) ऑटोनोमी दी गई है। राज्य कोई निर्णय नहीं लेता है।" कल की सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत पेश हुए। याचिकाकर्ता के वकील कामत ने दलील दी थी कि कॉलेजों में हिजाब बैन के राज्य सरकार के आदेश कर्नाटक शिक्षा नियमों के दायरे से बाहर है और राज्य के पास इसे जारी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वो यह तय करे कि धर्म की अनिवार्य प्रथा क्या है और क्या नहीं। यह तय करने का सिर्फ संवैधानिक न्यायालयों के पास ही एकमात्र अधिकार है। धर्म का पालन करने का अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के अधीन एक मौलिक अधिकार है। इस बीच कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायधीश ने कहा कि राज्य बिल्कुल भी निष्कर्ष नहीं निकाल सकता है। याचिकाकर्ता के वकील ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले का भी हवाला दिया है जिसमें कोर्ट ने एसपीसी की महिला कैंडिडेट के लिए हिजाब या हेडस्कार्फ को यूनिफॉर्म के हिस्से के रूप में मान्यता नहीं दी है और उसपर रोक लगा दिया है। वकील देवदत्त कामत का कहना है कि कर्नाटक सरकार के हिजाब बैन के आदेश केरल उच्च न्यायालय के फैसले पर निर्भर करता है कि हिजाब इस्लाम के लिए आवश्यक नहीं है। इस तथ्य के मद्देनजर कि परीक्षाएं नज़दीक आ रही हैं, और याचिकाकर्ता पिछले दो सालों से हिजाब पहनने के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर रही हैं। उन्होंने भी कोर्ट से परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम छात्राओं को राहत देने की मांग की थी लेकिन कोर्ट ने आज के लिए सुनवाई टाल दी थी। कोर्ट ने एक बार फिर दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की। हालांकि अज्ञात बड़े बेंच के सामने मामले की सुनवाई कब होगी फिलहाल इस जानकारी सार्वजनिक नहीं है।
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने अदालत से छात्राओं को अंतरिम राहत देने का आग्रह किया, लेकिन मामला एक बड़ी बेंच को रेफर कर दिया गया। उन्होंने कहा कि "उनके (मुस्लिम छात्राओं के) पास (शैक्षणिक वर्ष के) सिर्फ दो महीने बचे हैं। उन्हें बाहर न करें ... हमें एक रास्ता खोजने की ज़रूरत है कि कोई भी बच्ची शिक्षा से वंचित न रहे ... कॉलेज लौट आए। दो महीने तक कोई आसमान नहीं गिरेगा...।" कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील साजन पूवैया ने हालांकि दलील दी कि रिट याचिकाओं में उठाए गए सवाल पूरी तरह से जस्टिस दीक्षित के रोस्टर के तहत आते हैं। इसलिए उन्होंने कोर्ट से पक्षकारों को सुनने के बाद मामले का निपटारा करने की अपील की। जबकि एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवदगी ने अंतरिम राहत दिए जाने का विरोध किया। उन्होंने कोर्ट में कहा कि, "मेरा निवेदन यह है कि मेरे विद्वान मित्र (देवदत्त कामत- याचिकाकर्ता के वकील) ने अपनी दलीलें पूरी कर ली हैं। अब, यह राज्य को बहस करने के लिए है और फिर यह कोर्ट को फैसला करना है ... मैं कहना चाहता था कि याचिकाएं ग़लत हैं। उन्होंने सरकार पर सवाल उठाया है। प्रत्येक संस्थान को (ड्रेस कोड तेय करने की) ऑटोनोमी दी गई है। राज्य कोई निर्णय नहीं लेता है।" कल की सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत पेश हुए। याचिकाकर्ता के वकील कामत ने दलील दी थी कि कॉलेजों में हिजाब बैन के राज्य सरकार के आदेश कर्नाटक शिक्षा नियमों के दायरे से बाहर है और राज्य के पास इसे जारी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वो यह तय करे कि धर्म की अनिवार्य प्रथा क्या है और क्या नहीं। यह तय करने का सिर्फ संवैधानिक न्यायालयों के पास ही एकमात्र अधिकार है। धर्म का पालन करने का अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के अधीन एक मौलिक अधिकार है। इस बीच कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायधीश ने कहा कि राज्य बिल्कुल भी निष्कर्ष नहीं निकाल सकता है। याचिकाकर्ता के वकील ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले का भी हवाला दिया है जिसमें कोर्ट ने एसपीसी की महिला कैंडिडेट के लिए हिजाब या हेडस्कार्फ को यूनिफॉर्म के हिस्से के रूप में मान्यता नहीं दी है और उसपर रोक लगा दिया है। वकील देवदत्त कामत का कहना है कि कर्नाटक सरकार के हिजाब बैन के आदेश केरल उच्च न्यायालय के फैसले पर निर्भर करता है कि हिजाब इस्लाम के लिए आवश्यक नहीं है। इस तथ्य के मद्देनजर कि परीक्षाएं नज़दीक आ रही हैं, और याचिकाकर्ता पिछले दो सालों से हिजाब पहनने के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर रही हैं। उन्होंने भी कोर्ट से परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम छात्राओं को राहत देने की मांग की थी लेकिन कोर्ट ने आज के लिए सुनवाई टाल दी थी। कोर्ट ने एक बार फिर दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की। हालांकि अज्ञात बड़े बेंच के सामने मामले की सुनवाई कब होगी फिलहाल इस जानकारी सार्वजनिक नहीं है।
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