देसी किसानों के समर्थन में आए परदेसी किसान

भारत का किसान आंदोलन अब सरहदे भी लाँघ रहा है। दिल्ली बॉर्डर पर नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 31 दिनों से धरने पर बैठे किसानों को पूरी दुनिया से समर्थन मिल रहा है। कई देशों के किसान संगठनो ने भारतीय किसानों का पक्ष लेना शुरू कर दिया है। कह सकते है देसी किसानों को विदेशी किसानों का साथ मिल रहा है। मसलन, इस वीडियो में आप देख सकते है की यूनाइटेड किंगडम के लिमिंगटन और वार्विक के किसानों ने अपने ट्रेक्टर पर किसान आंदोलन के पक्ष में बैनर लगा कर वीडियो शूट किया और फिर उसे सोशल मीडिया पर डाल दिया।
उनके बैनर पर साफ़ लिखा था की लिमिंगटन और वार्विक के किसानों का भारतीय किसानों को पूरा समर्थन है। यूके के अलावा कृषि संगठन से जुड़े और तीसरी पीढ़ी के अमरीकी किसान लेरी बरुर ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी करते हुए अपने पूरे परिवार की तरफ से भारतीय कृषि व्यवस्था पर चिंता व्यक्त की और कहा की भारत की सरकार किसानों के हक़ छीनने पर आमादा है।
इसी तरह दक्षिण कोरिया के बड़े किसानी संगठन कोरियन पिसंत लीग ने भी एक वीडियो मैसेज जारी कर कहा की वह तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में उनके साथ है और आरोप लगाया की मोदी सरकार किसानों के भविष्य को पूँजीपतियों के हाथ बेच रही है। ब्राज़ील के भूमिहीन खेतिहर मज़दूरों के संगठन ने भी किसान आंदोलन के समर्थन में बयान जारी किया है। इस बयान में Landless Workers' Movement Brazil ने कहा है की नए कानूनों ने फसलों की सरकारी खरीद कमजोर होगी, कॉर्पोरेट घरानों को मनमानी की छूट मिलेगी और इससे हिंदुस्तानी किसानों को हानि उठानी पड़ेगी। कनाडा के बड़े किसान संगठन नेशनल फार्मर्स यूनियन ने भी भारत के किसानों के साथ खड़े होने का फैसला लिया है। नेशनल फार्मर्स यूनियन के अध्यक्ष केटी वार्ड ने कहा है - हम भारतीय किसानों के संघर्ष को कनाडा में अपने संघर्ष के समान मानते हैं। हम उनके विरोध के अधिकार में उनका समर्थन करते हैं, और उनके कानूनों में बदलाव के आह्वान का समर्थन करते है, जिससे भारत के लाखों छोटे किसानों के रोजी रोटी पर संकट पैदा होता है। साफ़ है कि विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ लगातार चल रहे आंदोलन की गूंज विदेशों में तेज़ होने लगी है। इससे पहले कई विदेशी सांसदों ने किसानों के साथ सहानुभूति जताई थी और केंद्र सरकार को तुरंत बातचीत कर इस मसले का हल निकालने की नसीहत दी थी। इनमें कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो भी शामिल हैं जिन्होंने भारत में किसान आंदोलन से उपजी मौजूदा स्थिति को चिंताजनक बताया है। हाल में जारी एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा था कनाडा हमेशा शांतिपूर्ण प्रदर्शन का समर्थक रहा है और इस लड़ाई में वे किसानों के साथ हैं। ट्रुडो के अलावा किसानों को यूरोप के कई सांसदों का भी साथ मिला था जिसमे यूनाइटेड किंगडम के तनमनजीत सिंह धेसी समेत 36 सांसद शामिल थे। ज़ाहिर है,किसान आंदोलन के लिए बढ़ते देसी-विदेशी समर्थन के साथ सरकार पर भी दबाब बढ़ रहा है।सरकार किसानों को थकाने की रणनीति पर काम कर रही है तो किसान भी लंबी तैयारी के साथ मैदान में हैं। देखना है कि किसान और सरकार में पहले पलक कौन झपकाता है।
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इसी तरह दक्षिण कोरिया के बड़े किसानी संगठन कोरियन पिसंत लीग ने भी एक वीडियो मैसेज जारी कर कहा की वह तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में उनके साथ है और आरोप लगाया की मोदी सरकार किसानों के भविष्य को पूँजीपतियों के हाथ बेच रही है। ब्राज़ील के भूमिहीन खेतिहर मज़दूरों के संगठन ने भी किसान आंदोलन के समर्थन में बयान जारी किया है। इस बयान में Landless Workers' Movement Brazil ने कहा है की नए कानूनों ने फसलों की सरकारी खरीद कमजोर होगी, कॉर्पोरेट घरानों को मनमानी की छूट मिलेगी और इससे हिंदुस्तानी किसानों को हानि उठानी पड़ेगी। कनाडा के बड़े किसान संगठन नेशनल फार्मर्स यूनियन ने भी भारत के किसानों के साथ खड़े होने का फैसला लिया है। नेशनल फार्मर्स यूनियन के अध्यक्ष केटी वार्ड ने कहा है - हम भारतीय किसानों के संघर्ष को कनाडा में अपने संघर्ष के समान मानते हैं। हम उनके विरोध के अधिकार में उनका समर्थन करते हैं, और उनके कानूनों में बदलाव के आह्वान का समर्थन करते है, जिससे भारत के लाखों छोटे किसानों के रोजी रोटी पर संकट पैदा होता है। साफ़ है कि विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ लगातार चल रहे आंदोलन की गूंज विदेशों में तेज़ होने लगी है। इससे पहले कई विदेशी सांसदों ने किसानों के साथ सहानुभूति जताई थी और केंद्र सरकार को तुरंत बातचीत कर इस मसले का हल निकालने की नसीहत दी थी। इनमें कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो भी शामिल हैं जिन्होंने भारत में किसान आंदोलन से उपजी मौजूदा स्थिति को चिंताजनक बताया है। हाल में जारी एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा था कनाडा हमेशा शांतिपूर्ण प्रदर्शन का समर्थक रहा है और इस लड़ाई में वे किसानों के साथ हैं। ट्रुडो के अलावा किसानों को यूरोप के कई सांसदों का भी साथ मिला था जिसमे यूनाइटेड किंगडम के तनमनजीत सिंह धेसी समेत 36 सांसद शामिल थे। ज़ाहिर है,किसान आंदोलन के लिए बढ़ते देसी-विदेशी समर्थन के साथ सरकार पर भी दबाब बढ़ रहा है।सरकार किसानों को थकाने की रणनीति पर काम कर रही है तो किसान भी लंबी तैयारी के साथ मैदान में हैं। देखना है कि किसान और सरकार में पहले पलक कौन झपकाता है।
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