सरकारी संस्थानों में शिक्षा के ख़राब स्तर के चलते विदेश जा रहे हिंदुस्तानी छात्र ?

विदेश जा कर उच्च शिक्षा लेने वाले भारतीय छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। साल 2019 में ऐसे छात्रों की संख्या 7.7 लाख थी वहीं कंसल्टिंग फर्म रेडशीर की जारी “Higher Education Abroad” नाम की रिपोर्ट बताती है कि विदेश जा कर पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 2024 में दोगुनी हो कर 18 लाख तक पहुंच सकती है।
रिपोर्ट में विदेश जा कर पढ़ने वाले छात्रों के बारे में और कई तथ्य साझा किए हैं जैसे कि अधिकतर छात्र पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए इंग्लिश बोलने वाले देशों का चुनाव कर रहे हैं। छात्र इंग्लैंड, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों को हायर एजुकेशन के लिए चुनना पसंद कर रहे हैं।
इस सबके अलावा रिपोर्ट में बताया गया कि विदेश जा कर पढ़ने वाले वाले छात्र वहां 85 बिलियन डॉलर तक खर्च करेंगे। जिसका अर्थ यह हुआ कि एक छात्र करीब 89 लाख रूपये अपनी शिक्षा पर खर्च करेगा जबकि भारत में औसतन एक भारतीय की उच्च शिक्षा पर सिर्फ 10,000 ही खर्च किया जाता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने अप्रैल के महीने में एक बयान जारी कर कहा था कि 2018-19 में भारत में उच्च शिक्षा लेने वाले छात्रों की संख्या 3.74 करोड़ हो गई है।
AISHE-2019 के अनुसार यह छात्र देश के 993 विश्वविद्यालय, 39,931 कॉलेज और 10,725 स्टैंड-अलोन संस्थानों में शिक्षा ले रहे हैं जबकि केंद्र सरकार ने इन छात्रों के लिए 2019-20 के बजट में से 5.25 बिलियन डॉलर की राशि दी थी। इस तरह देश में उच्च शिक्षा लेने वाले एक छात्र के लिए औसतन 10,365 रूपये थे। इससे पता चलता है कि देश में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई कितनी चौड़ी है।
ऑक्सफैम इंडिया की साल 2020 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में सबसे अमीर 1 फीसदी लोगों के पास 90 करोड़ से अधिक सबसे गरीब लोगों से भी चार गुना ज़्यादा धन है। देश के टॉप 9 अरबपतियों की संपत्ति देश की 50 फीसदी सबसे गरीब जनता के जैसी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत के अरबपतियों के पास देश के 2018-19 में निर्धारित केंद्रीय बजट से भी ज़्यादा पैसा था। ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में पहुंच, पूर्णता और गुणवत्ता में वर्ग, भाषाई पृष्ठभूमि, लिंग, जातीयता और जन्म स्थान के आधार पर गहरी असमानताएं हैं।
रिपोर्ट बताती है कि देश के सबसे गरीब परिवारों से लड़कियां औसतन एक भी साल की शिक्षा प्राप्त नहीं करती हैं जबकि इसकी अपेक्षा सबसे अमीर परिवारों से लड़कियां औसतन 9.1 साल की शिक्षा लेती हैं। साल 2014-15 में सरकारी स्कूलो में औसतन 16,151 रूपये खर्च किए गए थे जबकि केंद्रिय विद्यालय, जहां ज़्यादातर नौकरशाहों के बच्चे पड़ते हैं, वहां यह खर्च 27,723 रूपये है। सरकारी स्कूलों पर ध्यान न दिए जाने का ही नतीजा है कि देश के अधिकतर राज्यों में 25-30 फीसदी बच्चे क्लास 2 की किताब पढ़ नहीं सकते और उनके लिए 2 डिजिट के सवालों को हल करना मुश्किल है।
“Higher Education Abroad” रिपोर्ट के मुताबिक आंध्र प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र से सबसे अधिक छात्र विदेश पढ़ने के लिए जाते हैं। इन राज्यों देश के अमीर राज्यों में से एक माना जाता है। घरेलु स्तर पर बात करें तो 2011 के आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में उच्च शिक्षा का सकल नामांकन अनुपात 26.3 फीसदी था।सकल नामांकन अनुपात या जीईआर को शिक्षा के क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाता है। इससे स्कूल में नामांकित छात्रों की संख्या निर्धारित की जाती है।
पंजाब और आंध्रा प्रदेश में जीईआर 23 और 29.9 फीसदी है जबकि इससे इतर गरीब राज्यों में शामिल बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में यह अनुपात क्रमशः 12.5, 9.9 और 10.5 फीसदी है और इन सभी राज्यों में प्रति 1 लाख छात्रों पर उपलब्ध विश्विविद्यालयों की संख्या 1 से भी कम है।
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