भारत में गंभीर होती भुखमरी की हालत, हंगर इंडेक्स में पड़ोसी देशों से पिछड़ा भारत

हाल ही में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स से पता चला है कि भारत रैंकिंग में अपने पड़ोसी देशों से भी पिछड़ गया है। जहां पिछले साल भारत 107 देशों की रैंकिंग में 94वें स्थान पर रहा था वो अब 116 देशों की रैंकिंग में 101वें स्थान पर आ गया है। इसका मतलब है कि पिछले साल के मुक़ाबले भारत की रैंकिंग में दो अंकों की गिरावट आई है। पिछले साल भारत का हंगर स्कोर 27.2 था जो इस साल बढ़कर 27.5 हो गया है, यानि देश में भुखमरी की हालत और ज़्यादा गंभीर हो गई है।
2020 के आकलन में, ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत की 14 फीसदी आबादी कुपोषित है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश में 37.4 फीसदी बच्चों की स्टंटिंग दर दर्ज की गई है। बौने बच्चे वे होते हैं जिनकी "उम्र के हिसाब से लंबाई कम होती है, जो कुपोषण को दर्शाता हैं।”
2021 की नई रिपोर्ट में भारत को अपने पड़ोसियों, खासकर पाकिस्तान से नीचे रखा गया है। इस साल भी भारत का "गंभीर" श्रेणी में वर्गीकरण भारत की ग़रीबी और भूख़ की स्थिति के कई अन्य आकलनों के अनुरूप है, जो दुनिया में सबसे ख़राब स्थिति में है। भारत में 2014 से 2019 के बीच देश के 6.2 करोड़ लोग खाद्य संकट की चपेट में आ गए। यह जानकारी स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड (SOFI) द्वारा दी गई थी। जबकि पिछले साल सिर्फ महामारी में प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक़ एक साल के दौरान है 7.4 करोड़ लोग ग़रीबी की चपेट में आ गए। गो न्यूज़ ने 2020 में एक राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के हवाले से बताया था कि बच्चों में कुपोषण बढ़ रहा है, जो 2015-16 की तुलना में 2019-20 में बदतर होता जा रहा है। गोन्यूज़ ने आपको एक अन्य रिपोर्ट में बताया था कि देश में एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के लोग गंभीर रूप से मल्टिडायमेंशनल ग़रीबी में हैं। इनमें एससी समुदाय की कुल आबादी 129 मिलियम में 65 मिलियन, एसटी समुदाय के 283 मिलियन में 94 मिलियन और ओबीसी समुदाय के 588 मिलियन में 160 मिलियन लोग मल्टिडायमेंशनल ग़रीबी में रहे रहे हैं। इसका मतलब है कि इन समुदाय के इतनी बड़ी संख्या में लोग पर्याप्त खाने-पीने से लेकर, स्वास्थ्य और शिक्षा तक से लगभग वंचित हैं। हालांकि केन्द्र इन विदेशी एजेंसियों की रिपोर्ट को कभी-कभी भारत के ख़िलाफ़ साज़िश तक बता देती है। जबकि मोदी सरकार की तथाकथित महत्वाकांक्षी योजना “पीएम ग़रीब कल्याण अन्न योजना” के तहत 80 करोड़ ग़रीब लोगों को अनाज देना का दावा है। इस योजना के तहत ग़रीब परिवारों को पांच किलो तक अनाज देने का वादा है जिसे इस साल के नवंबर महीने तक बढ़ा दिया गया है और केन्द्र दावा करती है कि देश में ऐसी ग़रीबी नहीं है जैसी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दर्शाई गई है। हालांकि, अन्य एजेंसियां भी हैं जिनकी रिपोर्ट में भी भारत में ग़रीबी और भुखमरी के हालात ख़राब दर्शाए गए हैं। इनमें आवर वर्ल्ड एंड डेटा की 2017 की एक रिपोर्ट के मुतबाकि़ भारत में 571.12 मिलियन यानि 57 करोड़ लोग स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते, जो साउथ अफ्रीकी देश नाइजिरिया में 133 मिलियन के मुक़ाबले चार गुना ज़्यादा है। डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत ने 2011 के बाद से अपने गरीबों की गिनती नहीं की है लेकिन भारत की 60 फीसदी आबादी यानि 812 मिलियन या 81.2 करोड़ आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है। इनमें भी महामारी के दौरान हालात बदतर हुए हैं और बिज़नेस स्टैडर्ड ने अप्रैल 2020 में युनाइटेड नेशन यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि 104 मिलियन यानि 10.4 करोड़ लोगों के महामारी की वजह से ग़रीबी रेखा के नीचे जाने की आशंका है। इसका मतलब है कि आज़ादी के 70 साल बाद भी देश की लगभग एक तिहाई आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है औपना जीवन बेहतर करने के लिए संघर्षरत है।
2021 की नई रिपोर्ट में भारत को अपने पड़ोसियों, खासकर पाकिस्तान से नीचे रखा गया है। इस साल भी भारत का "गंभीर" श्रेणी में वर्गीकरण भारत की ग़रीबी और भूख़ की स्थिति के कई अन्य आकलनों के अनुरूप है, जो दुनिया में सबसे ख़राब स्थिति में है। भारत में 2014 से 2019 के बीच देश के 6.2 करोड़ लोग खाद्य संकट की चपेट में आ गए। यह जानकारी स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड (SOFI) द्वारा दी गई थी। जबकि पिछले साल सिर्फ महामारी में प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक़ एक साल के दौरान है 7.4 करोड़ लोग ग़रीबी की चपेट में आ गए। गो न्यूज़ ने 2020 में एक राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के हवाले से बताया था कि बच्चों में कुपोषण बढ़ रहा है, जो 2015-16 की तुलना में 2019-20 में बदतर होता जा रहा है। गोन्यूज़ ने आपको एक अन्य रिपोर्ट में बताया था कि देश में एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के लोग गंभीर रूप से मल्टिडायमेंशनल ग़रीबी में हैं। इनमें एससी समुदाय की कुल आबादी 129 मिलियम में 65 मिलियन, एसटी समुदाय के 283 मिलियन में 94 मिलियन और ओबीसी समुदाय के 588 मिलियन में 160 मिलियन लोग मल्टिडायमेंशनल ग़रीबी में रहे रहे हैं। इसका मतलब है कि इन समुदाय के इतनी बड़ी संख्या में लोग पर्याप्त खाने-पीने से लेकर, स्वास्थ्य और शिक्षा तक से लगभग वंचित हैं। हालांकि केन्द्र इन विदेशी एजेंसियों की रिपोर्ट को कभी-कभी भारत के ख़िलाफ़ साज़िश तक बता देती है। जबकि मोदी सरकार की तथाकथित महत्वाकांक्षी योजना “पीएम ग़रीब कल्याण अन्न योजना” के तहत 80 करोड़ ग़रीब लोगों को अनाज देना का दावा है। इस योजना के तहत ग़रीब परिवारों को पांच किलो तक अनाज देने का वादा है जिसे इस साल के नवंबर महीने तक बढ़ा दिया गया है और केन्द्र दावा करती है कि देश में ऐसी ग़रीबी नहीं है जैसी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दर्शाई गई है। हालांकि, अन्य एजेंसियां भी हैं जिनकी रिपोर्ट में भी भारत में ग़रीबी और भुखमरी के हालात ख़राब दर्शाए गए हैं। इनमें आवर वर्ल्ड एंड डेटा की 2017 की एक रिपोर्ट के मुतबाकि़ भारत में 571.12 मिलियन यानि 57 करोड़ लोग स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते, जो साउथ अफ्रीकी देश नाइजिरिया में 133 मिलियन के मुक़ाबले चार गुना ज़्यादा है। डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत ने 2011 के बाद से अपने गरीबों की गिनती नहीं की है लेकिन भारत की 60 फीसदी आबादी यानि 812 मिलियन या 81.2 करोड़ आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है। इनमें भी महामारी के दौरान हालात बदतर हुए हैं और बिज़नेस स्टैडर्ड ने अप्रैल 2020 में युनाइटेड नेशन यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि 104 मिलियन यानि 10.4 करोड़ लोगों के महामारी की वजह से ग़रीबी रेखा के नीचे जाने की आशंका है। इसका मतलब है कि आज़ादी के 70 साल बाद भी देश की लगभग एक तिहाई आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है औपना जीवन बेहतर करने के लिए संघर्षरत है।
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