गुजरात में सबसे ज़्यादा बाल मज़दूर, मज़दूरी मारने में भी टॉप पर

तरक्की और समृद्धि के लिेए प्रचारित गुजरात मॉडल की एक हक़ीक़त ये भी है कि देश में सबसे ज़्यादा बच्चे इसी राज्य में मज़दूरी करने को मजबूर हैं। नीदरलैंड स्थित संगठन ग्लोबल मार्च अगैंस्ट चाइल्ड लेबर की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि देश के चार प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में बाल मज़दूरों की तादाद बहुत ज़्यादा है। इस लिस्ट में मॉडल राज्य गुजरात पहले स्थान पर है। यही नहीं, बाल मज़दूरों की मज़दूरी का भुगतान न करने के मामले में भी गुजरात टॉप पर है।
इसी साल सितंबर में जारी रिपोर्ट के मुताबिक़ गुजरात में 59.2 फीसदी बाल मज़दूरों की मज़दूरी का भुगतान नहीं किया गया। इसके बाद दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र है जहां 42.3 फीसदी बाल मज़दूरों की मज़दूरी नहीं दी गई। इनके अलावा उत्तर प्रदेश में 36.3 फीसदी और कर्नाटक में 24.7 फीसदी बाल मज़दूरों को मज़दूरी नहीं दी गयी।
बाल मज़दूर गन्ने की कटाई से लेकर उसकी सफाई तक का काम करते हैं। ये रिपोर्ट 6-18 साल तक के 1,433 बाल मज़दूरों से बातचीत पर आधारित है। ये सभी बाल मज़दूर दक्षिणी गुजरात के 554 सरकारी और निजी मिलों के लिए काम करते हैं। इन मिलों में करीब चार लाख 50 हज़ार मज़दूर काम कर रहे हैं। आमतौर पर गन्ने की कटाई नवंबर-दिसंबर से मार्च-अप्रैल तक होती है। मिलों में काम करने वाले मज़दूर कॉन्ट्रेक्ट पर लाये जाते हैं और इसकी कटाई के लिए प्रवासी मज़दूरों को ज़्यादा तरजीह दी जाती है। मॉडल राज्य गुजरात में 57.4 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो अपने परिवार की आमदनी बढ़ाने के लिए गन्ना कटाई का काम करते हैं। ग़ौरतलब है कि इन बाल मज़दूरों को आधिकारिक रूप से मज़दूर नहीं माना जाता, इसके बावजूद ये 6-8 घंटे तक काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं गुजरात उन चुनिंदा राज्यों में एक है जहां गन्ना मज़दूरों को उनकी पूरी मज़दूरी भी नहीं दी जाती है। गुजरात में प्रति मेट्रिक टन के हिसाब से दो मज़दूरों को इकट्ठा 266.55 रूपये मज़दूरी दी जाती है जो प्रति दिन खेतिहर मज़दूरों को मिलने वाली मज़दूरी 203 रूपये से भी कम है। बता दें कि इंटरनेश्नल लेबर ऑर्गेनाइज़ेशन की साल 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 5-14 साल के बच्चों की तादाद 25.9 करोड़ है। इनमें 26 फीसदी बच्चे खेती-किसानी में लगे हैं। करीब 33 फीसदी बच्चे खेतिहर मज़दूर हैं और 5.2 फीसदी घरेलू उद्योगों में मज़दूरी कर रहे हैं।
बाल मज़दूर गन्ने की कटाई से लेकर उसकी सफाई तक का काम करते हैं। ये रिपोर्ट 6-18 साल तक के 1,433 बाल मज़दूरों से बातचीत पर आधारित है। ये सभी बाल मज़दूर दक्षिणी गुजरात के 554 सरकारी और निजी मिलों के लिए काम करते हैं। इन मिलों में करीब चार लाख 50 हज़ार मज़दूर काम कर रहे हैं। आमतौर पर गन्ने की कटाई नवंबर-दिसंबर से मार्च-अप्रैल तक होती है। मिलों में काम करने वाले मज़दूर कॉन्ट्रेक्ट पर लाये जाते हैं और इसकी कटाई के लिए प्रवासी मज़दूरों को ज़्यादा तरजीह दी जाती है। मॉडल राज्य गुजरात में 57.4 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो अपने परिवार की आमदनी बढ़ाने के लिए गन्ना कटाई का काम करते हैं। ग़ौरतलब है कि इन बाल मज़दूरों को आधिकारिक रूप से मज़दूर नहीं माना जाता, इसके बावजूद ये 6-8 घंटे तक काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं गुजरात उन चुनिंदा राज्यों में एक है जहां गन्ना मज़दूरों को उनकी पूरी मज़दूरी भी नहीं दी जाती है। गुजरात में प्रति मेट्रिक टन के हिसाब से दो मज़दूरों को इकट्ठा 266.55 रूपये मज़दूरी दी जाती है जो प्रति दिन खेतिहर मज़दूरों को मिलने वाली मज़दूरी 203 रूपये से भी कम है। बता दें कि इंटरनेश्नल लेबर ऑर्गेनाइज़ेशन की साल 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 5-14 साल के बच्चों की तादाद 25.9 करोड़ है। इनमें 26 फीसदी बच्चे खेती-किसानी में लगे हैं। करीब 33 फीसदी बच्चे खेतिहर मज़दूर हैं और 5.2 फीसदी घरेलू उद्योगों में मज़दूरी कर रहे हैं।
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