GoFlashback: क्या AMU राजा महेंद्र प्रताप सिंह की दान की गई ज़मीन पर बनी है ?
‘राजा महेंद्र प्रताप एक कुशल राजा थे जिन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिए कई स्कूलों और कॉलेजों को बड़ा दान दिया है।’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अलीगढ़ में जाट राजा रहे महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर एक विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी है। अलीगढ़ पहुंचे पीएम मोदी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि यह यूनिवर्सिटी 100 एकड़ ज़मीन पर बनेगी। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गवर्नर आनंदी बेन पटेल भी मौजूद रहीं।
इस बीच नरेंद्र मोदी ने यह दावा किया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को राजा महेंद्र प्रताप ने एक बड़ी ज़मीन दी थी। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि यह ज़मीन किस आधार पर दी गई थी। प्रधानमंत्री के इस अर्धसत्य से सोशल मीडिया पर एक बार फिर बहस छिड़ना तय है। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर लगातार यह दावे किए गए कि एएमयू को राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने ज़मीनें दान में दी थी।
AMU के लिए ब्रिटिश हुकूमत से ली गई ज़मीन हालांकि इतिहास के जानकार बताते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिर्सिटी जिस ज़मीन पर स्थापित है वो राजा महेंद्र प्रताप द्वारा दान में नहीं दी गई थी, बल्कि इसके संस्थापक सर सैयद अहमद खां ने यूनिवर्सिटी स्थापित करने के लिए ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटिश हुकूमत से अधिग्रहण किया था। मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज, अलीगढ़ की स्थापना 8 जनवरी, 1877 को हुई थी। इतिहासकारों की मानें तो इसके लिए अधिकांश ज़मीन ब्रिटिश सरकार से खरीदी गई थी, जो अलीगढ़ कंटोनमेंट को बंद करने की प्रक्रिया में थी, जहां से खां साहब को 74 एकड़ जमीन मिली थी। मुस्लिम मिरर, एक ऑनलाइन मीडिया प्लेटफॉर्म को अलीगढ़ आंदोलन के प्रमुख इतिहासकार, डॉ राहत अबरार ने दिए अपने इंटरव्यू में इस दावे का खंडन किया है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की ज़मीन राजा महेंद्रा प्रताप द्वारा दान की गई थी। एक अन्य अंग्रेज़ी दैनिक दि पायनियर के मुताबिक़ प्रसिद्ध इतिहासकार और प्रोफेसर इरफान हबीब कहते हैं कि, उनके करीबी होने के बावजूद राजा महेंद्र प्रताप ने उन्हें कभी नहीं बताया कि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को कोई ज़मीन दी है। यह मामला लेने वाले और देने वाले के बीच का है। राजा महेंद्र प्रताप सिंह AMU के ही एल्युमिनाइ दि पायनियर के मुताबिक़ एक 90 वर्षीय प्रोफेसर इरफान हबीब कहते हैं कि, ‘उन्होंने राजा महेंद्र प्रताप को संसदीय चुनाव लड़ने में मदद की थी। उनके और उनके पिता प्रोफेसर हबीब के राजा साहब के साथ अच्छे संबंध थे, लेकिन उन्होंने विश्वविद्यालय को ज़मीन देने जैसी कोई बात नहीं कही।” इतिहासकार बताते हैं कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह एंग्लो ऑरियेंटल कॉलेज (अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) के ही छात्र रह चुके हैं। ज़मीन विवाद का ज़िक्र करते हुए इतिहासकार डॉ राहत अबरार बताते हैं कि, “महेंद्र प्रताप के पिता मुरसान के राजा घनश्याम सिंह और उनके पिता राजा टीकम सिंह सर सैयद अहमद खां के बहुत करीबी दोस्त थे।” डॉक्टर अबरार कहते हैं कि राजा की मृत्यु के बाद महेंद्र प्रताप अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी चले गए जहां उनके लिए अलग से दो कमरे दिए गए थे और वो अपने अंगरक्षकों के साथ रहकर पढ़ाई कर रहे थे। इतिहासकार यह भी बताते हैं कि अपना ग्रेजुएशन पूरा किए बिना ही उन्होंने विश्विद्यालय छोड़ दिया था। डॉक्टर अबरार ने बताया कि, 'राजा टीकम सिंह ने सर सैयद की साइंटिफिक सोसायटी के लिए 800/- रुपये और राजा घनश्याम सिंह ने एमएओ कॉलेज के पहले छात्रावास के निर्माण के लिए 1500/- रुपये का दान दिया था जो अभी भी सर सैयद हॉल परिसर में मौजूद है। डॉक्टर अबरार ने, ‘राजा महेंद्र प्रताप के एमएओ कॉलेज स्कूल के लिए 1.2 हेक्टेयर जमीन दो रुपये प्रति वर्ष की टोकन राशि पर लीज पर देने का ज़िक्र किया है। वो बताते हैं कि, ‘राजा महेंद्र प्रताप एक कुशल राजा थे जिन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिए कई स्कूलों और कॉलेजों को बड़ा दान दिया है।’ 90 साल की लीज़ पर दी गई 3 एकड़ ज़मीन अंग्रेज़ी दैनिक दि हिंदू के मुताबिक़ विश्वविद्यालय के प्रवक्ता शफी किदवई ने कहा, "राजा ने 1929 में विश्वविद्यालय को 1.2 हेक्टेयर (3.04 एकड़) ज़मीन 90 साल के लीज़ पर दी थी जो 2019 में समाप्त हो गई थी और तब से महेंद्र प्रताप के परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत चल रही है।" उन्होंने बताया कि भूमि को दो भागों में बांटा गया है। एक तरफ एएमयू सिटी हाई स्कूल चल रहा है और बगल के इलाके में तिकोना पार्क है। प्रोफेसर इरफान हबीब के मुताबिक़ जो राजा महेंद्र प्रताप के करीबी थे, ने बताया कि वो 1914 में काबुल चले गए और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1946 में आज़ादी से कुछ दिन पहले भारत वापस आ गए। इस तरह राजा महेंद्र प्रताप ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा देश के बाहर बिताया। उन्हें 1915 में अफगानिस्तान में भारत की अनंतिम सरकार बनाने के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर विश्वविद्यालय बनाने का योगी का वादा 1957 के लोकसभा चुनावों में, मथुरा से निर्दलीय के रूप में लड़ते हुए, उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को हराया, जो भारतीय जन संघ के उम्मीदवार थे। 2019 में, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इगलास में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए क्षेत्र में उनके नाम पर एक विश्वविद्यालय के गठन की घोषणा की थी जिसका आज नरेंद्र मोदी ने आधारशिला रखा है। पीएमओ द्वारा प्रेस रिलीज में बताया गया था कि विश्वविद्यालय अलीगढ़ की कोल तहसील के लोधा और मूसेपुर करीम जरौली गाँव के 92 एकड़ क्षेत्र में बनाई जाएगी। यह अलीगढ़ डिविज़न के 395 कॉलेजों को मान्यता देगा।
AMU के लिए ब्रिटिश हुकूमत से ली गई ज़मीन हालांकि इतिहास के जानकार बताते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिर्सिटी जिस ज़मीन पर स्थापित है वो राजा महेंद्र प्रताप द्वारा दान में नहीं दी गई थी, बल्कि इसके संस्थापक सर सैयद अहमद खां ने यूनिवर्सिटी स्थापित करने के लिए ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटिश हुकूमत से अधिग्रहण किया था। मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज, अलीगढ़ की स्थापना 8 जनवरी, 1877 को हुई थी। इतिहासकारों की मानें तो इसके लिए अधिकांश ज़मीन ब्रिटिश सरकार से खरीदी गई थी, जो अलीगढ़ कंटोनमेंट को बंद करने की प्रक्रिया में थी, जहां से खां साहब को 74 एकड़ जमीन मिली थी। मुस्लिम मिरर, एक ऑनलाइन मीडिया प्लेटफॉर्म को अलीगढ़ आंदोलन के प्रमुख इतिहासकार, डॉ राहत अबरार ने दिए अपने इंटरव्यू में इस दावे का खंडन किया है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की ज़मीन राजा महेंद्रा प्रताप द्वारा दान की गई थी। एक अन्य अंग्रेज़ी दैनिक दि पायनियर के मुताबिक़ प्रसिद्ध इतिहासकार और प्रोफेसर इरफान हबीब कहते हैं कि, उनके करीबी होने के बावजूद राजा महेंद्र प्रताप ने उन्हें कभी नहीं बताया कि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को कोई ज़मीन दी है। यह मामला लेने वाले और देने वाले के बीच का है। राजा महेंद्र प्रताप सिंह AMU के ही एल्युमिनाइ दि पायनियर के मुताबिक़ एक 90 वर्षीय प्रोफेसर इरफान हबीब कहते हैं कि, ‘उन्होंने राजा महेंद्र प्रताप को संसदीय चुनाव लड़ने में मदद की थी। उनके और उनके पिता प्रोफेसर हबीब के राजा साहब के साथ अच्छे संबंध थे, लेकिन उन्होंने विश्वविद्यालय को ज़मीन देने जैसी कोई बात नहीं कही।” इतिहासकार बताते हैं कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह एंग्लो ऑरियेंटल कॉलेज (अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) के ही छात्र रह चुके हैं। ज़मीन विवाद का ज़िक्र करते हुए इतिहासकार डॉ राहत अबरार बताते हैं कि, “महेंद्र प्रताप के पिता मुरसान के राजा घनश्याम सिंह और उनके पिता राजा टीकम सिंह सर सैयद अहमद खां के बहुत करीबी दोस्त थे।” डॉक्टर अबरार कहते हैं कि राजा की मृत्यु के बाद महेंद्र प्रताप अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी चले गए जहां उनके लिए अलग से दो कमरे दिए गए थे और वो अपने अंगरक्षकों के साथ रहकर पढ़ाई कर रहे थे। इतिहासकार यह भी बताते हैं कि अपना ग्रेजुएशन पूरा किए बिना ही उन्होंने विश्विद्यालय छोड़ दिया था। डॉक्टर अबरार ने बताया कि, 'राजा टीकम सिंह ने सर सैयद की साइंटिफिक सोसायटी के लिए 800/- रुपये और राजा घनश्याम सिंह ने एमएओ कॉलेज के पहले छात्रावास के निर्माण के लिए 1500/- रुपये का दान दिया था जो अभी भी सर सैयद हॉल परिसर में मौजूद है। डॉक्टर अबरार ने, ‘राजा महेंद्र प्रताप के एमएओ कॉलेज स्कूल के लिए 1.2 हेक्टेयर जमीन दो रुपये प्रति वर्ष की टोकन राशि पर लीज पर देने का ज़िक्र किया है। वो बताते हैं कि, ‘राजा महेंद्र प्रताप एक कुशल राजा थे जिन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिए कई स्कूलों और कॉलेजों को बड़ा दान दिया है।’ 90 साल की लीज़ पर दी गई 3 एकड़ ज़मीन अंग्रेज़ी दैनिक दि हिंदू के मुताबिक़ विश्वविद्यालय के प्रवक्ता शफी किदवई ने कहा, "राजा ने 1929 में विश्वविद्यालय को 1.2 हेक्टेयर (3.04 एकड़) ज़मीन 90 साल के लीज़ पर दी थी जो 2019 में समाप्त हो गई थी और तब से महेंद्र प्रताप के परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत चल रही है।" उन्होंने बताया कि भूमि को दो भागों में बांटा गया है। एक तरफ एएमयू सिटी हाई स्कूल चल रहा है और बगल के इलाके में तिकोना पार्क है। प्रोफेसर इरफान हबीब के मुताबिक़ जो राजा महेंद्र प्रताप के करीबी थे, ने बताया कि वो 1914 में काबुल चले गए और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1946 में आज़ादी से कुछ दिन पहले भारत वापस आ गए। इस तरह राजा महेंद्र प्रताप ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा देश के बाहर बिताया। उन्हें 1915 में अफगानिस्तान में भारत की अनंतिम सरकार बनाने के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर विश्वविद्यालय बनाने का योगी का वादा 1957 के लोकसभा चुनावों में, मथुरा से निर्दलीय के रूप में लड़ते हुए, उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को हराया, जो भारतीय जन संघ के उम्मीदवार थे। 2019 में, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इगलास में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए क्षेत्र में उनके नाम पर एक विश्वविद्यालय के गठन की घोषणा की थी जिसका आज नरेंद्र मोदी ने आधारशिला रखा है। पीएमओ द्वारा प्रेस रिलीज में बताया गया था कि विश्वविद्यालय अलीगढ़ की कोल तहसील के लोधा और मूसेपुर करीम जरौली गाँव के 92 एकड़ क्षेत्र में बनाई जाएगी। यह अलीगढ़ डिविज़न के 395 कॉलेजों को मान्यता देगा।
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