किसान संगठनों को 4 जनवरी की वार्ता से उम्मीद नहीं, जनवरी भर के कार्यक्रमों का ऐलान
किसानों के इस आंदोलन का राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित खिलाड़ियों, लेखकों, पूर्व सैनिकों ने समर्थन किया है।

देश क राजधानी में कड़कड़ात ठंड सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है लेकिन सरहदों पर डेरा जमाये बैठे किसानों का हौसला नहीं टूट रहा है। इस अनोखे आंदोलन का विस्तार अब देश के कई राज्यों में दिखने लगा है। शायद ही किसी देश में ऐसा आंदोलन हुआ हो जब लाखों किसानों ने राजधानी के चारो तरफ़ इस तरह महीने भर से ज़्यादा वक्त तक परिवार सहित डेरा डाला हो। 37 दिन से लाखों किसानों का यूँ शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीक़े से आंदोलन चलाना इसे ऐतिहासिक दर्जा दे रहा है। इधर, संयुक्त किसान मोर्चा ने पूरी जनवरी भर के कार्यक्रमों का ऐलान कर दिया है जिससे लगता है कि 4 जनवरी को सरकार के साथ होने जा रही आठवें दौर की वार्ता को लेकर किसान बहुत आशान्वित नहीं उन्हें सरकार की नीयत पर भरोसा नहीं है।
शुरुआत में इस आंदोलन को महज़ पंजाब और हरियाणा तक सीमित बताया गया था लेकिन अब बिहार से लेकर तमिलनाडु तक में किसानों के प्रदर्शन हो रहे हैं। केरल विधानसभा ने तीनों कृषि बिलों के ख़िलाफ़ प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। बीजेपी के एकमात्र विधायक ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया।
किसानों के इस आंदोलन का राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित खिलाड़ियों, लेखकों, पूर्व सैनिकों ने समर्थन किया है। किसानों की अपील पर, खासकर दिल्ली के युवा बड़े पैमाने पर नये साल का जश्न मनाने दिल्ली बार्डर पर पहुँचे। देश की लगभग सभी पार्टियाँ किसानों के आंदोलन के साथ हैं। यहाँ तक कि एनडीए के सहयोगियों ने भी मुँह फेर लिया है। शिरोमणि अकाली दल के बाद राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी इसी मुद्दे पर एनडीए छोड़ चुकी है, और बाक़ी दल भी कसमसा रहे हैं। ज़ाहिर है, सरकार दबाव में है लेकिन झुकने को तैयार नहीं दिखती। 30 दिसंबर की वार्ता में उसने नरम रुख दिखाते हुए बिजली बिल और पराली अध्यादेश की वापसी पर सहमति दिखायी थी लेकिन कृषि कानूनों की वापसी और एमएसपी की गारंटी को लेकर पाँव पीछे खींचने को तैयार नहीं दिखी। यही वजह है कि किसान संगठन 4 जनवरी को होने वाली वार्ता को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है और दबाव बढ़ाने के लिए अगले चरण के कार्यक्रमों की घोषणा कर दी गयी है। संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से जारी कार्यक्रम के मुताबिक 6 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकाला जायेगा। 7 से 20 जनवरी के बीच देश भर में जागृति पखवाड़ा मनाया जायेगा। इसके तहत जिला स्तर पर धरना, रैलियाँ और प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जायेंगी। 18 जनवरी को महिला किसान दिवस और 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती पर किसान चेतना दिवस मनाया जायेगा। इसके अलावा अडानी और अंबानी के उत्पादों और सेवाओं का बहिष्कार जारी रहेगा। पंजाब और हरियाणा में टोल प्लाज़ा फ्री रखने का कार्यक्रम चलता रहेगा और एनडीए के सहयोगियों के बीजेपी का साथ छोड़ने के लिए दबाव बनाने के लिए प्रदर्शन जारी रहेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा के इन कार्यक्रमों के ऐलान से साफ़ है कि किसान लंबी लड़ाई के मूड में हैं। उन्होंने पिछली वार्ता के पहले स्पष्ट कर दिया था कि बातचीत का मुद्दा कृषि कानूनों की वापसी की प्रक्रिया होगी जबकि सरकार इसे असंभव बता रही है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पिछली वार्ता के पहले कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी किसी दबाव में काम नहीं करते, लेकिन क्या देश लाखों किसानों की भागीदारी वाले इस ऐतिहासिक आंदोलन का दबाव भी वे वाक़ई झेल पायेंगे, इस पर सबकी नज़र है।
किसानों के इस आंदोलन का राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित खिलाड़ियों, लेखकों, पूर्व सैनिकों ने समर्थन किया है। किसानों की अपील पर, खासकर दिल्ली के युवा बड़े पैमाने पर नये साल का जश्न मनाने दिल्ली बार्डर पर पहुँचे। देश की लगभग सभी पार्टियाँ किसानों के आंदोलन के साथ हैं। यहाँ तक कि एनडीए के सहयोगियों ने भी मुँह फेर लिया है। शिरोमणि अकाली दल के बाद राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी इसी मुद्दे पर एनडीए छोड़ चुकी है, और बाक़ी दल भी कसमसा रहे हैं। ज़ाहिर है, सरकार दबाव में है लेकिन झुकने को तैयार नहीं दिखती। 30 दिसंबर की वार्ता में उसने नरम रुख दिखाते हुए बिजली बिल और पराली अध्यादेश की वापसी पर सहमति दिखायी थी लेकिन कृषि कानूनों की वापसी और एमएसपी की गारंटी को लेकर पाँव पीछे खींचने को तैयार नहीं दिखी। यही वजह है कि किसान संगठन 4 जनवरी को होने वाली वार्ता को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है और दबाव बढ़ाने के लिए अगले चरण के कार्यक्रमों की घोषणा कर दी गयी है। संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से जारी कार्यक्रम के मुताबिक 6 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकाला जायेगा। 7 से 20 जनवरी के बीच देश भर में जागृति पखवाड़ा मनाया जायेगा। इसके तहत जिला स्तर पर धरना, रैलियाँ और प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जायेंगी। 18 जनवरी को महिला किसान दिवस और 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती पर किसान चेतना दिवस मनाया जायेगा। इसके अलावा अडानी और अंबानी के उत्पादों और सेवाओं का बहिष्कार जारी रहेगा। पंजाब और हरियाणा में टोल प्लाज़ा फ्री रखने का कार्यक्रम चलता रहेगा और एनडीए के सहयोगियों के बीजेपी का साथ छोड़ने के लिए दबाव बनाने के लिए प्रदर्शन जारी रहेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा के इन कार्यक्रमों के ऐलान से साफ़ है कि किसान लंबी लड़ाई के मूड में हैं। उन्होंने पिछली वार्ता के पहले स्पष्ट कर दिया था कि बातचीत का मुद्दा कृषि कानूनों की वापसी की प्रक्रिया होगी जबकि सरकार इसे असंभव बता रही है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पिछली वार्ता के पहले कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी किसी दबाव में काम नहीं करते, लेकिन क्या देश लाखों किसानों की भागीदारी वाले इस ऐतिहासिक आंदोलन का दबाव भी वे वाक़ई झेल पायेंगे, इस पर सबकी नज़र है।
ताज़ा वीडियो