मामले को 'सनसनीखे़ेज़' मत बनाओ: हिजाब बैन पर सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम छात्राओं की याचिका ख़ारिज की !
मुख्य न्यायधीश एनवी रमना ने कहा, "इसका परीक्षा से कोई लेना-देना नहीं है ... सनसनीखेज मत बनाओ..."

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ मामले की तत्काल सुनवाई का अनुरोध करने वाली याचिकाओं को खा़रिज करते हुए, शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के लिए संस्थानों की शक्ति को बरक़रार रखा है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से इस मुद्दे को "सनसनीख़ेज़" न बनाने की सलाह दी।
शीर्ष अदालत ने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए कोई विशेष तारीख देने से भी इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता के वकील ने छात्राओं की परीक्षा का हवाला देते हुए मामले की सुनवाई करने का अनुरोध किया था लेकिन मुख्य न्यायधीश एनवी रमना ने कहा, "इसका परीक्षा से कोई लेना-देना नहीं है ... सनसनीखेज मत बनाओ।"
वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने कहा कि "परीक्षा 28 मार्च से शुरू होगी। एक साल ख़राब हो जाएगा। इन सभी लड़कियों को स्कूल में प्रवेश करने से रोका जा रहा है। लॉर्डशिप अगले हफ्ते कुछ तारीख तय कर सकते हैं।" उनके इस अनुरोध के बाद सीजेआई ने उन्हें सुनने से इनकार कर दिया। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई से इनकार किया है और याचिका ख़ारिज की है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया था। मुख्य न्यायधीश ने तब कर्नाटक हाई कोर्ट को अपना फैसला सुनाने का इंतज़ार करने के लिए कहा था। 15 मार्च को कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने फैसले में शिक्षण संस्थानों के परिसर में हिजाब बैन करने के निर्णय को बरक़रार रखा था। कोर्ट ने मुस्लिम छात्राओं को परिसर के भीतर प्रवेश नहीं दिए जाने और उन्हें कक्षा से बाहर किए जाने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई के आदेश जारी करने से भी इनकार किया था। हाई कोर्ट ने इस मामले पर टिप्पणी भी की और कहा कि हिजाब पहनना "इस्लामी विश्वास में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है" और संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के अधीन है। हाई कोर्ट के इस फैसले से क़ानून के जानकार हैरान थे और इसकी आलोचना करते भी देखे गए थे। मुस्लिम नेताओं ने भी हाई कोर्ट के फैसले का विरोध किया। वहीं कर्नाटक में कुछ मुस्लिम संगठनों ने कोर्ट के फैसले के विरोध में कर्नाटक बंद का भी आह्वान किया था। इन सबके बीच मुस्लिम छात्राओं ने भी "Hijab Is Our Right" के स्लोगन के साथ प्रदर्शन किया।
वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने कहा कि "परीक्षा 28 मार्च से शुरू होगी। एक साल ख़राब हो जाएगा। इन सभी लड़कियों को स्कूल में प्रवेश करने से रोका जा रहा है। लॉर्डशिप अगले हफ्ते कुछ तारीख तय कर सकते हैं।" उनके इस अनुरोध के बाद सीजेआई ने उन्हें सुनने से इनकार कर दिया। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई से इनकार किया है और याचिका ख़ारिज की है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया था। मुख्य न्यायधीश ने तब कर्नाटक हाई कोर्ट को अपना फैसला सुनाने का इंतज़ार करने के लिए कहा था। 15 मार्च को कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने फैसले में शिक्षण संस्थानों के परिसर में हिजाब बैन करने के निर्णय को बरक़रार रखा था। कोर्ट ने मुस्लिम छात्राओं को परिसर के भीतर प्रवेश नहीं दिए जाने और उन्हें कक्षा से बाहर किए जाने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई के आदेश जारी करने से भी इनकार किया था। हाई कोर्ट ने इस मामले पर टिप्पणी भी की और कहा कि हिजाब पहनना "इस्लामी विश्वास में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है" और संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के अधीन है। हाई कोर्ट के इस फैसले से क़ानून के जानकार हैरान थे और इसकी आलोचना करते भी देखे गए थे। मुस्लिम नेताओं ने भी हाई कोर्ट के फैसले का विरोध किया। वहीं कर्नाटक में कुछ मुस्लिम संगठनों ने कोर्ट के फैसले के विरोध में कर्नाटक बंद का भी आह्वान किया था। इन सबके बीच मुस्लिम छात्राओं ने भी "Hijab Is Our Right" के स्लोगन के साथ प्रदर्शन किया।
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