उत्तराखंड में तबाही की बारिश: लैंडस्लाइड और बाढ़ में मरने वालों का आंकड़ा 47 हुआ; कई इलाकों से संपर्क टूटा

उत्तराखंड में बारिश से जुड़े कारणों जैसे फ्लैश फ्लड से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ कर 47 हो गई है। राज्य में करीब एक दर्जन लोगों के ज़ख्मी होने की और लगभग इतने ही लोगों के लापता होने की भी खबर है। जानकारी के मुताबिक सबसे ज़्यादा 28 लोग नैनीताल जिले में मारे गए हैं। अलमोरा में 6, चंपावत में 2, बघेश्वर में 1 और उद्धम सिंह नगर में भी दो लोगों की मौत हुई है जबकि 17 और 18 अक्टूबर को भी लोगों ने बाढ़ में अपनी जान गंवाई है। कई घर बाढ़ के साथ ही बह गए। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी ने मारे गए सभी लोगों के लिए 4 लाख के मुआवजे का ऐलान किया है।
उत्तराखंड में कैसे हैं हालातबाढ़ के अलावा उत्तराखंड में भूस्खलन ने भी काफी तबाही मचाई है। फिलहाल बाढ़ ग्रस्त इलाकों में राहत बचाव अभियान जारी है और NDRF की 16 टीमें कम से कम 300 लोगों को बचाने में कामयाब रही है हालांकि कोसी नदी जैसे जल निकायों में खतरे के निशान से उपर बह रहा पानी और तबाही मचा सकता है। फोरेस्ट रिजोर्ट जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के पूर्वी किनारे पर बहने वाली इस नदी से वन्यजीव और वहां फंसे पर्यटकों की जान खतरे में हैं। आधिकारिक डाटा के अनुसार पिछले एक दिन में कोसी में 227 मिमी से 530 मिमी तक की वर्षा हुई है।
पहले से ही भूस्खलन के प्रति संवेदनशील है नैनीतालजानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में कई जगहों पर हो रही तबाही की शुरूआत मंगलवार को नैनीताल जिले में बादल फटने से आई फ्लैश फ्लड से हुई है। नैनीताल समेत उत्तराखंड के कई जिले बाढ़ और लैंडस्लाइड के लिहाज़ से पहले ही संवेदनशील हैं और ऐसे में हमेशा यह चिंता का कारण रहते हैं। चंपावत जिले के चंपावत-मंच-तामली रोड पर कई जगहों को भू-स्खलन के लिहाज़ से सेंसिटिव माना गया था। 2017 में सरकार ने नैनीताल को ईको-सेंसिटिव जोन घोषित किए जाने की पैरवी की थी। उसने कहा था कि जिले के आसपास कोई भी कंस्ट्रक्शन रोक दिया जाना चाहिए। इस तरह अलमोरा में शहरीकरण के कारण ओक के पेड़ों की भारी कटाई हुई है। इससे क्षेत्र में बाढ़ के संभावना बढ़ गई है।
जानकार बतातें हैं कि एक बड़ा ओक का पेड़ 5400 गेलन तेज़ रफ्तार से आ रहे पानी के प्रवाह को रोक सकता है। खबरों की माने तो अलमोरा और रानीखेत कल आई बाढ़ के बाद से हवाई और ज़मीनी रास्ते के जरिए उत्तराखंड से पूरी तरह कट चुके हैं वहीं नैनीताल-हल्द्वानी, रामनगर-गर्जिया-अल्मोड़ा, भोवाली-अल्मोड़ा, काठगोदाम-चोरगलिया-सितारगंज, भीमताल-पद्मापुरी और बेतालघाट-खैरना सड़कें पूरी तरह ब्लॉक हैं। लैंडस्लाईड और फ्लैश फ्लड जैसा प्राकृतिक आपदा दुनिया के कई पहाड़ी इलाकों में चिंता का कारण हैं और भारत ऐसा देश है जहां सबसे ज़्यादा लैंडस्लाइड की घटनाएं होती है।
लैंडस्लाइड की कई घटनाओं में मारे गए हज़ारों लोग
17 अगस्तर 1998 को कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान पिथौरागढ़ जिले के मालपा इलाके में हुए लैंडस्लाइड में 60 यात्रियों समेत 221 लोगों की मौत हो गई थी। ऐसे ही ओखीमठ क्षेत्र की मध्यमहेश्वर घाटी में रुद्रप्रयाग ज़िले में 9 से 12 और 17 से 19 अगस्त, 1998 में हुए लैंडस्लाइड में 103 लोग मारे गए थे और इस लैंडस्लाइड की वजह से 47 गांवों का सफाया हो गया था। उत्तराखंड सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में बारिश के मौसम में लैंडस्लाइड के कारण 220 लोगों की मौत हुई थी। 2013 में भी 16-17 जून को हुई लैंडस्लाइड की घटनाओं में 106 लोग मारे गए थे। साल 2001 से 2013 के बीच लैंडस्लाइड और फ्लैश फ्लड में पांच हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी।
सेंसिटिव ज़ोन में निर्माण कार्य हैं तबाही की वजह!
उत्तराखंड में क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह के मुताबिक उत्तराखंड में अब इस तरह की घटनाएं आम बात है। जानकारों का मानना है कि राज्य में हो रहे इकोलॉजिकल बदलाव के कारण राज्य में लैंडस्लाइड और फ्लैश फ्लड जैसी आपदा आती हैं। जानकार लंबे समय से हिमालय के ऊपरी क्षेत्र में हाईड्रो-पावर और खड़ी ढलानों पर अक्सर अनियंत्रित निर्माण क्षेत्र के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रही है। उत्तराखंड में चार-धाम परियोजना जैसे कई बड़ी योजनाओं पर काम चल रहा है।
बहरहाल प्रशासन का कहना है कि राज्य में आई बाढ़ के बाद पानी का स्तर नीचे जाने लगा है लेकिन हालातों के सामान्य होने में कुछ दिन का समय लग सकता है लेकिन इस बीच पुलिस ने पुष्टि की है कि चार धाम यात्रा जिसे की बाढ़ के कारण कल रोक दिया गया था, उसे जोशीमठ से ब्रदीनाथ तक की मंज़ूरी मिलने के बाद फिर से शुरू कर दिया जाएगा।
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