दावे के उलट, अशांत हुआ जम्मू और कश्मीर

श्रीनगर के ईदगाह इलाके में वीरवार को एक और चरमपंथी हमले में दो स्कूल अध्यापकों की मौत हो गई है। मरने वालों की पहचान सरकारी स्कूल की प्रींसिपल सुपिंदर कौर और दीपक चंद के रूप में हुई है। हमले में जान गंवाने वाले दोनों मृतक श्रीनगर के अल्लोची बाग इलाके में रहते थे।
मंगलवार से यह चौथा हमला है जिसमें 5 आम नागिरकों ने जान गंवाई है जबकि बीते हफ्ते से अब तक हुए हमलों में श्रीनगर में ही 7 लोग मारे गए हैं। मंगलवार को अलग अलग हमलों में माखन लाल बिंदू, 68 वर्षीय केमिस्ट, बिहार के भागलपुर के स्ट्रीट वेंडर वीरेंद्र पासवान और टैक्सी ड्राइव मुहम्मद शफी लोन की हत्या कर दी गई थी।
घाटी में लगातार हो रही चरमपंथी घटनाओं ने केंद्र के धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य होने के दावों को खारिज कर दिया है। डेक्कन हेराल्ड की गुरूवार को एक रिपोर्ट में कहा गया कि साल 2021 में अब तक ऐसे कई चरमपंथी हमलों में 25 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं जबकि इस अवघि में 20 सुरक्षा कर्मियों ने ड्यूटी के दौरान अपनी जान गंवाई।
ऐसे में आलोचकों का कहना है कि केंद्र सरकार धारा 370 को रद्द करने दौरान किए गए अपने वादों को पूरा करने में नाकाम रही है क्योंकि केंद्र सरकार के राज में आम लोग ही नहीं बल्कि उन्हें सुरक्षा देने वाले सिक्योरिटी पर्सनल भी खतरे में हैं।
इस साल मारे गए लोगों में से 17 लोग बहुसंख्यक समुदाय से संबंध रखते थे जबकि 8 अल्पसंख्यक थे। ऐसे चरमपंथी हमलों में सबसे अधिक लोग श्रीनगर में मारे गए, वहां 10 लोगों ने अपनी जान गंवाई जबकि दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले से पांच, पुलवामा जिले से चार, बारामूला और अनंतनाग से दो-दो और बडगाम और बांदीपोरा से एक-एक नागरिक की जान गई।
आंकड़े देखे जाएं तो धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में हालात बहुत ज़्यादा ‘सामान्य’ नहीं हुए हैं। साल 2019 में 36 आम नागरिकों ने चरमपंथी हमलों में जान गंवाई जबकि 2020 में यह संख्या 33 थी। इस दौरान क्रमशः 78 और 46 सुरक्षाकर्मी मारे गए।
ग़ौरतलब है कि हाल ही में हुए अटैक ऐसे समय पर हुए हैं जब सुरक्षा की बेढ़ियों में बंधे जम्मू-कश्मीर में सिक्योरिटी और बढ़ा दी गई है। दरअसल केंद्रिय गृह मंत्री अमित शाह 23 से 25 अक्टूबर के बीच घाटी के दौरे पर पहुंच सकते हैं ऐसे में केंद्र शासित प्रदेश को हाई अलर्ट पर रखा गया है।
केंद्र का एक और दावा जिसमें उसने कहा कि धारा 370 रद्द होने के बाद अलगाववादियों का समर्थन कम हो गया है, यह दावा भी अब गलत साबित होता दिख रहा है। सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी एक दस्तावेज़ में दावा किया गया था कि केंद्र ने अलगाववादी नेताओं से सुरक्षा वापस ले ली है और आर्टिकल 370 के हटने से अलगाववादियों का समर्थन कम होता जा रहा है लेकिन डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल हुए अधिकतर हमलों की ज़िम्मेदारी चरमपंथी संगठन The Resistance Front (TRF) ने ली है।
यहां तक कि हाल ही में घाटी में नामी केमिस्ट कश्मीरी पंडित माखन लाल बिंदरू समेत तीन नागरिकों के मारे जाने के बाद संगठन ने एक वीडियों में कथित तौर पर कहा कि तीनों नागरिकों को इसलिए मारा गया क्योंकि वह राष्ट्रीय स्वंयं सेक संघ और खूफिया एजेंसियों के साथ काम कर रहे थे।
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