कोयले की किल्लत; भारत के पास सिर्फ चार दिनों के लिए कोयले का भंडार

by Sarfaroshi 1 year ago Views 2494

Coal crisis

देश के बड़े समाचार पत्र ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ ने भारत में ऊर्जा संकट को लेकर चेताया है। अखबार ने अपनी हाल ही की एक रिपोर्ट में कहा कि भारत अब उन देशों में से एक बन गया है जो ऊर्जा संकट का सामना कर रहे हैं और यह संकट महामारी के बाद हो रही इकोनॉमिक रिकवरी पर भी असर डाल सकता है। यहां तक कि अधिकारियों ने यह भी चेताया है कि भारत गंभीर कोयले की कमी से गुज़र रहा है।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) डेटा के मुताबिक 29 सितंबर तक देश के कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट में से 16 के पास कोयले का कोई भंडार नहीं था जबकि 80 फीसदी से अधिक प्लांट के पास एक हफ्ते से कम और इनमें से भी 50 प्रतिशत संयंत्रों के पास तीन दिनों से भी कम की अवधि के लिए कोयले का भंडार था। सीईए का दिया गया डाटा बताता है कि देश में साल 2020 से ही ईंधन का भंडार कम हो रहा है।

संपूर्ण तौर पर देखा जाए तो एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के 135 पावर प्लांट के पास 29 सितंबर को औसतन सिर्फ चार दिनों के लिए कोयले का भंडार था। देश में ऊर्जा संकट के हालात इतने गंभीर है कि जानकारों ने इसे तूफान की स्थिति करार दिया है यानि कि सब कुछ नष्ट करने वाला। Naumura Finanacial AdvisoryAnd Securities में अर्थशास्त्री ओरॉदीप नंदी ने कहा, “आप ऐसी स्थिति में फंस गए हैं जहां मांग अधिक है, घरेलू स्तर आपकी आपूर्ति कम है और आपने आयात करके माल पर बहाल नहीं किया है।” 

ग़ौरतलब है कि भारतीय बिजली जेनरेटर्स ने हाल के महीनों में कोयले का आयात कम कर दिया है। इसकी वजह कोयले के बढ़ते दाम है। चीन और यूरोप समेत कई देशों की अंतराष्ट्रीय स्तर पर कोयले की बढ़ी मांग का नतीजा है कि भारत को कोयले की सबसे अधिक आपूर्ति करने वाले देशों में से एक इंडोनेशिया से आने वाले कोयले की कीमत सितंबर में बढ़ कर 200 डॉलर प्रति टन हो गई है जबकि मार्च में यह 60 डॉलर प्रति टन थी। भारत काफी समय से कोयले के आयात पर निर्भरता  कम करने की कोशिश में है।

कोयले का आयात, भारत को हो रहे व्यापार घाटे के मुख्य कारणों में से एक है। ऐसे में कोयले का घटा आयात घरेलु सप्लायर के लिए कम दरों पर ज़रूरी आपूर्ति करने का एक मौका साबित हो सकता था हालांकि राज्य अधिकृत कोल इंडिया लिमिटेड जैसी कंपनियां घरेलु स्तर पर बढ़ी मांग पूरा करने में असमर्थ रही हैं। भारत की बिजली खपत कुछ महीनों में ही काफी बढ़ गई है। अगस्त-सितंबर में देश में 124 बिलियन यूनिट बिजली की खपत हुई जबकि 2019 में इस दौरान 106 बिलियन यूनिट की खपत हुई थी। ऊर्जा की मांग अभी और ऊंची रह सकती है।

इस पर बिजली मंत्रालय का कहना है कि कोयला-माइनिंग क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण उत्पादन और डिलीवरी दोनों प्रभावित हो सकते हैं । यहां तक कि खुद कोयला प्लांट मानसून सत्र से पहले अपने लिए भी कोयले का भंडारण रखने समर्थ नहीं है यानि कि देश में ऊर्जा का यह संकट और गहरा सकता है और इस ऊर्जा संकट से आर्थिक विकास में बाधा आ सकती है, बिजली की कटौती हो सकती है, बिजली की दाम बढ़ सकते हैं, और बिजली पैदा करने वाली कंपनियों के मुनाफे में कमी आ सकती है, जैसा कि भारत के पड़ोसी देश चीन और यूरोप में देखा गया। 

महामारी के दौरान तरक्की करने वाले चीन के निर्माण क्षेत्र में संक्रमण के बाद से पहली बार सिकुड़न आई है, इसकी वजह बिजली आपूर्ति की कमी है। इससे निपटने के लिए बीजिंग ने राज्य अधिकृत कंपनियों को हर हाल में सर्दियों के लिए पावर स्टॉक जमा करने के लिए कहा है।

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