Budget 2022: टॉप 10 ट्रेड पार्टनर में 9 के साथ भारत का व्यापार घाटे में

by GoNews Desk Edited by M. Nuruddin 1 year ago Views 2491

Budget2022: Trade Deficit with China Tops the Char
भारत का अपने टॉप ट्रेड पार्टनर या व्यापार भागीदारों में से 9 के साथ व्यापार घाटे में है। भारत का निर्यात बढ़ ज़रूर रहा है लेकिन बढ़ते आयात पर लगाम लगाने में सक्षम नहीं है। वाणिज्य विभाग की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक़, अमेरिका को छोड़कर भारत ने अपने टॉप भागीदारों से निर्यात के मुक़ाबले आयात ज़्यादा किया है।

दरअसल, चीन के साथ घाटा इस साल ऐतिहासिक ऊंचाई पर है यानि भारत अपने उत्तरी पड़ोसी देश से सीमा विवाद के बावजूद जमकर ख़रीदारी कर रहा है। विवाद की वजह से ही चीनी टिकटॉक और वीबो जैसे मोबाइल एप पर केन्द्र सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। स्पष्ट रूप से चीन के साथ विवाद के बावजूद पारंपरिक प्रतिद्वंदियों के बीच व्यापार पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ा है।


अप्रैल-नवंबर 2021-22 के बीच, भारत का व्यापार घाटा 115 अरब डॉलर तक पहुंच गया था, जिसमें चीन की हिस्सेदारी 43 अरब डॉलर थी। भारत के साथ घाटे में चल रहे अन्य प्रमुख देश इराक़, सऊदी अरब और यूएई जैसे तेल निर्यातक देश थे, जिन्हें कच्चे तेल की बढ़ती कीमत से फायदा हुआ।

स्विट्जरलैंड के साथ इस साल रिकॉर्ड 55.8 अरब डॉलर के सोने के आयात की वजह से 16 अरब डॉलर का व्यापार घाटा था। एकमात्र अपवाद अमेरिका था जिसके साथ भारत का ट्रेड सरप्लस 21 अरब डॉलर था। 

(सूची देखें)

ताज़ा जारी आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर के महीने में भी भारत का व्यापार घाटा 21 अरब डॉलर रहा, जो पिछले वित्तीय वर्ष में इसी महीने की तुलना में लगभग 38 फीसदी की बोढ़ोत्तरी है। दिसंबर 2019 की तुलना में देश के व्यापार घाटे में 73 फीसदी की बढ़ोत्तरी देखी गई थी। तीन तिमाहियों के लिए पूरे देश के व्यापार का तुलनात्मक आंकड़ा मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद नहीं है।

बहरहाल, वाणिज्य मंत्रालय चुनिंदा आंकड़ों को टटोल रहा है कि भारत का निर्यात विशिष्ट क्षेत्रों में बढ़ा है।

उदाहरण के लिए, मंत्री ने गर्व से साझा किया कि इलेक्ट्रॉनिक निर्यात में पिछले साल की तुलना में अप्रैल-दिसंबर की अवधि में 49 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई, इस सच की अनदेखी करते हुए है कि कुल इलोक्ट्रोनिक निर्यात की लागत 11 अरब डॉलर रही, जिसका विशाल व्यापार घाटे पर कोई असर नहीं पड़ा।

धूमधाम से 2015 में शुरु किए गए एक महत्वाकांक्षी “मेक इन इंडिया” अभियान का सात साल बाद भी भारत के निर्यात को बढ़ाने में कोई ख़ास मदद नहीं है। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में 49 फीसदी की बढ़ोत्तरी के बाद की तिमाहियों में विनिर्माण क्षेत्र के आंकड़ों के साथ, यह स्पष्ट है कि पीएलआई जैसी कई सरकारी योजनाओं ने उम्मीद के मुताबिक़ परिणाम नहीं दिए हैं।

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