9/11: "वॉर ऑन टेरर" के नाम पर अमेरिका ने इन देशों को तबाह किया, 900,000 लोग मारे गए

by M. Nuruddin 2 years ago Views 1974

"क्या "वॉर ऑन टेरर" के नाम पर इन युद्धों का कुछ फायदा हुआ ?”

Attack of 9/11 and USA "War On Terror"
अमेरिका द्वारा शुरू किए गए तथाकथित "आतंकवाद के ख़िलाफ युद्ध” की वजह से अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, यमन और पाकिस्तान में सैकड़ों हजारों लोग मारे गए हैं। 11 सितंबर, 2001 को सुबह 8:46 मिनट पर अमेरिकन एयरलाइंस फ्लाइट 11 वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टॉवर में घुस गई। इसके 45 मिनट बाद एक दूसरी फ्लाइट ट्रेड सेंटर के दूसरे टॉवर से जा टकराई। घटना के बाद शाम तक करीब 3000 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई।

अमेरिकियों को तब यह अंदाजा नहीं चल सका होगा कि यह हमले एक लंबे युद्ध की शुरुआत होगी जिसकी वजह से दुनिया में न सिर्फ अमेरिका की किरकीरी हुई बल्कि "वॉर ऑन टेरर" के नाम पर कई देशों को तबाह करने का तमगा भी लगा। दशकों से चल रहे सैन्य संघर्षों में मारे गए आम लोगों और सैन्य कर्मचारियों की मौत ट्रेड सेंटर हमले में मारे गए लोगों की तुलता में कई गुना ज़्यादा है।


हालांकि यह जान पाना असंभव है कि 9/11 के बाद के सैन्य अभियानों में कितने लोग मारे गए लेकिन ब्राउन यूनिवर्सिटी के वाटसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल की नई रिपोर्ट के मुताबिक़ सभी पक्षों- सशस्त्र बलों, ठेकेदारों, नागरिकों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत करीब 900,000 लोग मारे गए हैं।

वॉट्सन यूनिवर्सिटी ने रक्षा विभाग, संयुक्त राष्ट्र, इराक और अफगानिस्तान में राष्ट्रीय सरकार और पत्रकारों की रिपोर्ट के आधार पर यह जानकारी दी है।

9/11 के बाद के युद्धों में सबसे ज़्यादा आम नागरिक मारे गए हैं। विपक्षी लड़ाकों, स्थानीय सेनाओं और यू.एस. और गठबंधन बलों के हमले से 360,000-387,000 तक लोगों की मौत हुई। इनके अलावा 680 पत्रकार और 892 सरकारी संगठनों में काम करने वाले कर्मचारी भी मारे गए।

रिपोर्ट के मुताबिक़ 9/11 के बाद अलग-अलग देशों में सैन्य कार्रवाई के दौरान 7000 से ज़्यादा अमेरिकी सैनिक की मौत हुई। 2,324 सैन्य कर्मचारी अफ़ग़ानीस्तान में और 4,598 अमेरिकी सैनिक दो चरणों के दौरान इराक में मारे गए। कॉस्ट ऑफ प्रोजेक्ट की एक सह-निदेशक स्टेफ़नी सेवेल कहती हैं, "लोगों को जरूरी नहीं कि वे मानसिक आघात के बारे में जानते हों, जो इतने लंबे युद्ध की वजह से होता है।"

उन्होंने एक रिसर्च की तरफ इशारा किया जिसके मुताबिक़ अनुमानित 30,177 अमेरिकी सैनिकों ने आत्महत्या कर ली जो युद्धों में मारे गए लोगों की तुलना में चार गुना ज़्यादा है।

रिपोर्ट के मुताबिक़ कुल मौतों में सबसे ज़्यादा ईराक में 185,000-208000 तक आम नागरिक मारे गए। सीरिया में 95,000 और अफ़ग़ानिस्तान में “वॉर ऑन टेरर” के नाम पर युद्ध में 46,000 आम नागरिकों की मौत हो गई।

हालांकि यह संख्या चौंका देने वाले लग सकते हैं, जानकार बताते हैं कि वियतनाम युद्ध में दो मिलियन ग़ैर लड़ाकू यानि आम लोग, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता मारे गए।

रिपोर्ट के मुताबिक़ “वॉर ऑन टेरर” के नाम पर कुल मौतों में सबसे ज़्यादा लोग ईराक में मारे गए। ईराक 2003 से 2011 के बीच चले लंबे युद्ध में 275,000 से 306,000 तक सेना, आम नागरिक, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता मारे गए। इसके बाद सीरिया में 266,000, यमन में 112,000, अफ़ग़ानिस्तान में 176,000 मौतें हुई।

अब अगर “वॉर ऑन टेरर” के नाम पर युद्धों पर होने वाले ख़र्च की बात करें तो 2001 से 2022 तक के लिए अमेरिका का कुल ख़र्च 8 ट्रिलियन डॉलर का रहा है। इनमें मेडिकल ख़र्च, सैन्य साज़ो सामान और उसके रख-रखाव का ख़र्च समेत वित्त वर्ष 2022 तक के लिए अमेरिका का युद्धों पर कुल 5,843 या 5.8 ट्रिलियन डॉलर रहा। इसमें 2023 से 2050 तक के लिए दिग्गजों की देखभाल पर होने वाले अनुमानित 2,200 या 2.2 ट्रिलियन डॉलर शामिल है।

कहा गया है कि कॉस्ट ऑफ प्रोजेक्ट, "लोगों को सवाल पूछने के लिए प्रेरित करता है कि वे आम तौर पर युद्ध और विशेष रूप से 9/11 के बाद के युद्धों के बारे में सवाल नहीं पूछते हैं, जैसे 'क्या इन युद्धों का कुछ फायदा हुआ ?”

“क्या दुनिया भर में अमेरिका अपने लक्ष्यों को पूरा कर रहा है, अमेरिकियों की रक्षा कर रहा है और दूसरों की रक्षा कर रहा है ?” "और अगर ऐसा नहीं है, तो हमें इस बारे में सोचना चाहिए कि एक अलग तरीका कैसे अपनाया जाए।"

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