इलेक्टोरल बॉन्ड पर बीजेपी का क़ब्ज़ा, मिला 4000 करोड़ से ज़्यादा का चंदा !

by M. Nuruddin 2 years ago Views 1862

4000 Crores To BJP In Three Years Through Electora
“विवादित इलेक्टोरल” बॉन्ड को मानो भारतीय जनता पार्टी ने हाइजैक कर लिया है। पिछले 17 चरणों में इसकी बिक्री के अगर आंकड़े देखें तो हर बार कॉर्पोरेट और इंडिविड्युल से बीजेपी को सबसे ज़्यादा चंदा मिला है। मसलन एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बीजेपी को साल 2019 में इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये सबसे ज़्यादा चंदा मिला और चंदे में 76 फीसदी की बढ़त देखी गई।

   अगर आंकड़ों पर ग़ौर करें तो पिछले तीन सालों में भारतीय जनता पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये 4,215 करोड़ रूपये का चंदा मिला है। इनमें वित्त वर्ष 2017-18 में 210 करोड़, 2018-19 में 1,450 करोड़ और एक अंग्रेज़ी दैनिक की रिपोर्ट के मुताबिक़ 2019-20 में पार्टी को 2,555 करोड़ रूपये का चंदा मिला। जबकि दूसरी तरफ अन्य राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये कम चंदा मिला जो ‘ऊंट के मूंह में जीरा’ साबित होता है।


मसलन कांग्रेस को पिछले तीन सालों में इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये 706.12 करोड़ रूपये का चंदा मिला है। इसी तरह टीएमसी को 197.46 करोड़ रूपये, शरद पवार की पार्टी एनसीपी को करीब 60 करोड़ रूपये और आम आदमी पार्टी को 18 करोड़ रूपये इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये उद्योगपतियों या इंडिविड्युल से चंदे के तौर पर मिले हैं।

इलेक्शन वॉच-एडीआर की रिपोर्ट में बताया गया है कि मार्च 2018 से जुलाई 2021 के बीच 7,380.6 करोड़ रूपये की लागत के 14,363 इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए हैं। इस दौरान 14,217 बॉन्ड्स से 7,360 करोड़ रूपये अलग-अलग राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि राजनीतिक दलों द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड के कुल मूल्य का 60.26 फीसदी हिस्सा इसी दौरान मार्च 2019 से लेकर मई 2019 की अवधि में भुनाए गए।

रिपोर्ट में बताया गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की कुल कीमत का 49.07 फीसदी हिस्सा अकेले लोकसभा चुनाव के दौरान मार्च और अप्रैल 2019 के दौरान खरीदे गए। रिपोर्ट में इस बात की भी जानकारी दी गई है कि पिछले तीन साल में खरीदे गए कुल इलेक्टोरल बॉन्ड का 92.3 फीसदी या 6,812 करोड़ रूपये की लागत के बॉन्ड की कीमत एक करोड़ रूपये थी, जो इस बात का संकेत है कि यह बॉन्ड इंडिविड्युल के मुक़ाबले उद्योगपतियों द्वारा ज़्यादा खरीदे जा रहे हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम द्वारा डोनर और राजनीतिक दलों को प्रदान की गई गुमनामी को देखते हुए यह राजनीतिक दलों को चंदा देने का सबसे लोकप्रिय तरीका बनकर उभरा है। साल 2018-19 में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के कुल इन्कम का 52 फीसदी और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की कुल इन्कम के करीब 54 फीसदी हिस्से इसी इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये आए थे।

वित्त वर्ष 2018-19 की एडीआर रिपोर्ट में बताया गया था कि चार राजनीतिक दलों- बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी और टीएमसी ने कुल 1960.68 करोड़ रूपये के इलेक्टोरल बॉन्ड प्रप्ती की घोषणा की थी। जबकि सात क्षेत्रीय राजनीतिक दलों, जिसमें- बीजेडी, टीआरएस, वाईएसआर-सी, शिवसेना, टीडीपी, जेडीएस और एसडीएफ ने इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए 578.49 करोड़ रूपये के चंदे का खुलासा किया था।

ग़ौरतलब है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री और इसके इस्तेमाल पर समय-समय पर सवाल उठते रहते हैं। पिछले दिनों राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले भी इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने की सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी। हालांकि तब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे एसए बोबड़े ने इसपर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने तब दलील दी थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड सत्ताधारी दल को चंदे के नाम पर रिश्वत देकर अपना काम कराने का एक ज़रिया बन गया है।

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