भारत में 18-30 की उम्र वाले 133 युवा रोज़ कर रहे हैं ख़ुदकुशी

अक्सर कहा जाता है कि जानकारी जितनी बतायी जाती है, उससे ज्यादा छुपा ली जाती है। अगर आप आत्महत्याओं पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के साल 2019 के आंकड़ों को इसी संदर्भ में देखे तो यह बात बिलकुल सटीक लगती है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इसे किस नज़रिये से देखते हैं। दरअसल, 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन है जिसे राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। लगता है कि सरकार युवाओं को लेकर काफ़ी कुछ करना चाहती है, पर अगर आप खुदखुशी के आंकड़ों को ज़रा ध्यान से टटोलें पता चलेगा की देश की जवानी किस मोड़ से गुजर रही है।
एनसीआरबी की मानें तो पैसों की तंगी के चलते अपनी जान लेने वालों का आंकड़ा खतरनाक रूप से बढ़ रहा है और इसमें भी काफी बड़ी तादाद जवान भारतीयों की है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2019 में हुई कुल 1,39,123 आत्महत्याओं में (पिछले वर्ष की तुलना में 3.4% की खतरनाक वृद्धि), में 2,851 लोगों ने बेरोजगारी के कारण ऐसा किया। इसमें से 1,366 या 48% 18-30 साल और 1,055 या लगभग 30% युवा 30-40 साल की आयु के थे। आंकड़े यह भी बताते है की देश में हुई कुल ख़ुदकुशी में 18 साल से 30 साल के बीच की उम्र वाले 35.1% लोग थे और 30 वर्ष से 45 वर्ष से कम उम्र के 31.8% लोग थे। इन्होंने गरीबी, बेरोज़गार और आर्थिक तंगी के चलते जान दी। आसान भाषा में कहे तो हर रोज़ देश में 18 साल से 30 साल तक के 133 लोग और 30 साल से 45 साल तक के 121 लोग अपनी जान ले रहे है। दूसरी तरफ पारिवारिक समस्याएं, (2,468), परीक्षा में असफलता (1,577), प्रेम प्रसंग (1,297) और' बीमारी (923) 18 साल से कम उम्र के बच्चों के बीच आत्महत्या के मुख्य कारण रहे। 18 साल से 30 साल के जवान लड़का-लड़की सबसे ज्यादा ख़ुदकुशी करते है महाराष्ट्र (13816), उत्तर प्रदेश (12850) और मध्य प्रदेश (12109)में जबकि सबसे कम जवान भारतीय आत्महत्या करते है सिक्किम (75), नागालैंड (19) और अरुणाचल प्रदेश (105) में। जानकारों की मानें तो हर समय 1 करोड़ 30 लाख भारतीयों में आत्महत्या करने पर विचार कर रहे होते हैं। स्वास्थ मंत्रालय के साथ VIMHANS द्वारा कराये Mental Health Survey 2015-16 के मुताबिक देश की लगभग 1 फीसदी आबादी में high suicidal risk है यानि ऐसे लोग के साथ आत्महत्या का जोखिम ज्यादा है। यही सर्वे बताता है कि आत्महत्या की भावना मन में रखने वाले लोग सबसे ज्यादा शहरी लोग हैं, 1.7 फीसदी। उसके बाद नंबर आता है विधवा/तलाक़शुदा लोगों और सबसे गरीब तबके का जहाँ ये आकड़ा पहुँच जाता है 1.5 फीसदी। फिर नंबर आता है कम पढ़े लिखे लोगों का, 1.3 फीसदी, उसके बाद 40-49 साल के लोगों में यही आँकड़ा पहुँच जाता है 1.2 फीसदी और फिर 1.1 फीसदी उन महिलाओं का नंबर है जिनमें ये भावना होती है।
एनसीआरबी की मानें तो पैसों की तंगी के चलते अपनी जान लेने वालों का आंकड़ा खतरनाक रूप से बढ़ रहा है और इसमें भी काफी बड़ी तादाद जवान भारतीयों की है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2019 में हुई कुल 1,39,123 आत्महत्याओं में (पिछले वर्ष की तुलना में 3.4% की खतरनाक वृद्धि), में 2,851 लोगों ने बेरोजगारी के कारण ऐसा किया। इसमें से 1,366 या 48% 18-30 साल और 1,055 या लगभग 30% युवा 30-40 साल की आयु के थे। आंकड़े यह भी बताते है की देश में हुई कुल ख़ुदकुशी में 18 साल से 30 साल के बीच की उम्र वाले 35.1% लोग थे और 30 वर्ष से 45 वर्ष से कम उम्र के 31.8% लोग थे। इन्होंने गरीबी, बेरोज़गार और आर्थिक तंगी के चलते जान दी। आसान भाषा में कहे तो हर रोज़ देश में 18 साल से 30 साल तक के 133 लोग और 30 साल से 45 साल तक के 121 लोग अपनी जान ले रहे है। दूसरी तरफ पारिवारिक समस्याएं, (2,468), परीक्षा में असफलता (1,577), प्रेम प्रसंग (1,297) और' बीमारी (923) 18 साल से कम उम्र के बच्चों के बीच आत्महत्या के मुख्य कारण रहे। 18 साल से 30 साल के जवान लड़का-लड़की सबसे ज्यादा ख़ुदकुशी करते है महाराष्ट्र (13816), उत्तर प्रदेश (12850) और मध्य प्रदेश (12109)में जबकि सबसे कम जवान भारतीय आत्महत्या करते है सिक्किम (75), नागालैंड (19) और अरुणाचल प्रदेश (105) में। जानकारों की मानें तो हर समय 1 करोड़ 30 लाख भारतीयों में आत्महत्या करने पर विचार कर रहे होते हैं। स्वास्थ मंत्रालय के साथ VIMHANS द्वारा कराये Mental Health Survey 2015-16 के मुताबिक देश की लगभग 1 फीसदी आबादी में high suicidal risk है यानि ऐसे लोग के साथ आत्महत्या का जोखिम ज्यादा है। यही सर्वे बताता है कि आत्महत्या की भावना मन में रखने वाले लोग सबसे ज्यादा शहरी लोग हैं, 1.7 फीसदी। उसके बाद नंबर आता है विधवा/तलाक़शुदा लोगों और सबसे गरीब तबके का जहाँ ये आकड़ा पहुँच जाता है 1.5 फीसदी। फिर नंबर आता है कम पढ़े लिखे लोगों का, 1.3 फीसदी, उसके बाद 40-49 साल के लोगों में यही आँकड़ा पहुँच जाता है 1.2 फीसदी और फिर 1.1 फीसदी उन महिलाओं का नंबर है जिनमें ये भावना होती है।
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