पर्यावरण बचाने के लिए धर्म और धर्मगुरुओं की शरण में संयुक्त राष्ट्र

जलवायु परिवर्तन इस सदी की सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए लोगों को जागरूक करना ज़रूरी है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस मामले में धर्म और धर्मगुरुओं की मदद लेने का फ़ैसला किया है।
दरअसल, युनाइटेड नेशंस ने एन्वायरमेंट प्रोग्राम के तहत ‘फेथ फॉर अर्थ’ अभियान शुरू किया है। इसका मकसद दुनियाभर के धार्मिक संगठनों, धर्मगुरुओं और आध्यात्मिक नेताओं की मदद से 2030 तक धरती के 30% हिस्से को प्राकृतिक परिस्थिति में बदलने का लक्ष्य है।
इस कार्यक्रम के निदेशक डॉ. इयाद अबु मोगली कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव समाज के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। इसके बावजूद अभी तक दुनिया की ज्यादातर आबादी पर्यावरण के प्रति संवेदनशील नहीं हो पाई है। जलवायु परिवर्तन रोकने के तमाम प्रयासों के निष्कर्ष से हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सिर्फ धर्म में ही वह शक्ति है जो दुनिया की बड़ी आबादी को पर्यावरण योद्धा बना सकता है। डॉ. इयाद ये भी कहते हैं कि विज्ञान आँकड़े तो दे सकता है, मगर आस्था ही धरती बचाने का जुनून पैदा कर सकती है। डॉ. इयाद का मानना है कि विज्ञान और धार्मिक आस्था में ठीक वैसा ही संबंध हैं, जैसा ज्ञान और क्रियान्वयन में है। एक के बिना दूसरा अधूरा है। यही ‘फेथ फॉर अर्थ’ अभियान शुरू करने के पीछे का मूल विचार है। जब उनसे पूछा गया कि यह विचार आया कहाँ से तो डॉ. इयाद ने बताया कि 2017 में यूएन की बैठक में 193 देशों ने आने वाले दशक के लिए तीन लक्ष्य तय किए थे। पहला गरीबी हटाना, दूसरा सबको शिक्षा देना और तीसरा पर्यावरण बचाना। इस मंथन में यह बात निकली थी कि पर्यावरण बचाने में दुनियाभर के धार्मिक संगठनों का जितना योगदान मिलना चाहिए, उतना नहीं मिल रहा है। इन संगठनों की ताकत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दुनिया भर के 80% लोग धार्मिक नैतिकता का पालन करते हैं। यदि इन संगठनों की कुल संपत्ति जोड़ दी जाए तो यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी होगी। दुनिया की 10% रिहायशी जमीन इन संगठनों के पास है। 60% स्कूल और 50% अस्पताल धार्मिक संगठनों से जुड़े हैं। इस ताकत को मानव कल्याण के लिए मुख्यधारा में लाने की मंशा ने ‘फेथ फॉर अर्थ’ अभियान को जन्म दिया है। इसके साथ ही यूनाइटेड नेशंस ‘फेथ फॉर अर्थ’ की वेबसाइट पर पूरे विश्व के अलग अलग धर्मों का ज़िक्र करता है और यह बताता है कि उन धर्मों में पर्यावरण संरक्षण की बात किस तरह से कही गई है। यूनाइटेड नेशंस ने अपनी वेबसाइट पर बौद्ध, ईसाई, हिन्दू, इस्लाम, जैन सहित कई धर्मों का उल्लेख किया है। इस मुहिम से पोप फ्रांसिस और शिया इस्माइली मुस्लिमों के इमाम ‘इको योद्धा’ बन चुके हैं। भारत में इस मुहिम के हेड अतुल बगई ने टिकाऊ भविष्य के लिए सदगुरु, श्री श्री रविशंकर, शिवानी दीदी और राधानाथ स्वामी जैसे धर्म गुरुओं के साथ बातचीत शुरू कर दी है। डॉ. ईयाद कहते हैं कि इसी साल विश्व के धर्म गुरुओं की संसद जेनेवा में आयोजित होगी। इसमें धार्मिक इको योद्धा भी आएंगे। विज्ञान और धार्मिक आध्यात्मिक नैतिकता को जोड़कर वे इस अभियान को विस्तार देंगे।
इस कार्यक्रम के निदेशक डॉ. इयाद अबु मोगली कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव समाज के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। इसके बावजूद अभी तक दुनिया की ज्यादातर आबादी पर्यावरण के प्रति संवेदनशील नहीं हो पाई है। जलवायु परिवर्तन रोकने के तमाम प्रयासों के निष्कर्ष से हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सिर्फ धर्म में ही वह शक्ति है जो दुनिया की बड़ी आबादी को पर्यावरण योद्धा बना सकता है। डॉ. इयाद ये भी कहते हैं कि विज्ञान आँकड़े तो दे सकता है, मगर आस्था ही धरती बचाने का जुनून पैदा कर सकती है। डॉ. इयाद का मानना है कि विज्ञान और धार्मिक आस्था में ठीक वैसा ही संबंध हैं, जैसा ज्ञान और क्रियान्वयन में है। एक के बिना दूसरा अधूरा है। यही ‘फेथ फॉर अर्थ’ अभियान शुरू करने के पीछे का मूल विचार है। जब उनसे पूछा गया कि यह विचार आया कहाँ से तो डॉ. इयाद ने बताया कि 2017 में यूएन की बैठक में 193 देशों ने आने वाले दशक के लिए तीन लक्ष्य तय किए थे। पहला गरीबी हटाना, दूसरा सबको शिक्षा देना और तीसरा पर्यावरण बचाना। इस मंथन में यह बात निकली थी कि पर्यावरण बचाने में दुनियाभर के धार्मिक संगठनों का जितना योगदान मिलना चाहिए, उतना नहीं मिल रहा है। इन संगठनों की ताकत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दुनिया भर के 80% लोग धार्मिक नैतिकता का पालन करते हैं। यदि इन संगठनों की कुल संपत्ति जोड़ दी जाए तो यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी होगी। दुनिया की 10% रिहायशी जमीन इन संगठनों के पास है। 60% स्कूल और 50% अस्पताल धार्मिक संगठनों से जुड़े हैं। इस ताकत को मानव कल्याण के लिए मुख्यधारा में लाने की मंशा ने ‘फेथ फॉर अर्थ’ अभियान को जन्म दिया है। इसके साथ ही यूनाइटेड नेशंस ‘फेथ फॉर अर्थ’ की वेबसाइट पर पूरे विश्व के अलग अलग धर्मों का ज़िक्र करता है और यह बताता है कि उन धर्मों में पर्यावरण संरक्षण की बात किस तरह से कही गई है। यूनाइटेड नेशंस ने अपनी वेबसाइट पर बौद्ध, ईसाई, हिन्दू, इस्लाम, जैन सहित कई धर्मों का उल्लेख किया है। इस मुहिम से पोप फ्रांसिस और शिया इस्माइली मुस्लिमों के इमाम ‘इको योद्धा’ बन चुके हैं। भारत में इस मुहिम के हेड अतुल बगई ने टिकाऊ भविष्य के लिए सदगुरु, श्री श्री रविशंकर, शिवानी दीदी और राधानाथ स्वामी जैसे धर्म गुरुओं के साथ बातचीत शुरू कर दी है। डॉ. ईयाद कहते हैं कि इसी साल विश्व के धर्म गुरुओं की संसद जेनेवा में आयोजित होगी। इसमें धार्मिक इको योद्धा भी आएंगे। विज्ञान और धार्मिक आध्यात्मिक नैतिकता को जोड़कर वे इस अभियान को विस्तार देंगे।
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