प्रवासी भरतीय दिवस पर कुवैत में नौकरी कर रहे लाखों भारतीयों के नौकरी छिनने की ख़बर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 जनवरी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 16वें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने माँ भारती, भारतीयता और संस्कृति जैसे भावनामतक मुद्दों का तो ज़िक्र किया लेकिन विदेशों से नौकरी गँवाकर भारत वापस लौट रहे लोगों के लिए कुछ ख़ास नहीं कहा। एक तरफ़ देश में बेरोजगारी बढ़ रही है तो दूसरी तरफ़ विदेशों में काम करके भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने में योगदान देने वाले भी बेरोज़गार होकर वापस आ रहे हैं। इससे भारत को हर साल मिलने वाले अरबो डॉलर में कमी आने की आशंका है लेकिन पीएम मोदी ने इसका ज़िक्र तक नहीं किया।
अब अमीर देश कुवैत की सरकार ने सरकारी महकमे में काम कर रहे सभी प्रवासी मज़दूरों को नौकरी से निकालने का फैसला लिया है। कुवैत के अखबार अल अनबा के मुताबिक सभी सरकारी दफ्तरों में प्रशासनिक और टेक्निकल ओहदों पर काम कर रहे प्रवासी लोगों को निकालकर उनकी जगह कुवैत के स्थानीय लोगो को नौकरी दी जायेगी। कुवैत के कई राज्य संस्थानों ने हाल ही में नौकरियों में प्रवासी लोगो के बजाय स्थानीय लोगो को नौकरी पर रखने की योजना शुरू कर दी है। दरअसल, कुवैत अपने यहां काम करने वाले प्रवासी कामगारों की तादाद 50 फीसदी तक घटाने का प्रयास कर रहा है। 48 लाख की आबादी वाले कुवैत में करीब 34 लाख लोग प्रवासी कामगार हैं और इनमें 15 लाख भारतीय हैं। ज़ाहिर है इन फैसलों की मार भारतीयों पर भी पड़ रही है वे बड़ी तादा पर बेरोज़गार होे के लिए मजबूर हैं।
Department of Non-Resident Keralites Affairs के मुताबिक बीती साल मई से लेकर इस साल 4 जनवरी तक 8.43 लाख लोग विदेश से केरल लौटे हैं। इनमे 5.52 लाख लोगो ने केरल वापस आने की वजह विदेश में रोज़गार छिन जाना बताया है। पिछले 30 दिनों में ही 1.40 लाख लोग वापस लौटे हैं। देश में पहले ही अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है, ऐसे में बाहर बसे भारतीयों के लौटने से उसे और झटका लग रहा है। लोकसभा में जारी आँकड़ों से पता चलता है कि रोज़गार और घर परिवार चलाने के लिए एक करोड़ 36 लाख भारतीय विदेशों में बस गये हैं। अकेले, सात इस्लामिक देशों यानी यूनाइटेडट अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, ओमान, क़तर, बहरीन और मलेशिया में 83 लाख 72 हज़ार 333 भारतीय रह रहे हैं, जबकि अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, नेपाल, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा में 30 लाख 410 भारतीय हैं। साल 2019 में इन भारतीयों ने 83 बिलियन डॉलर भारत भेजकर देश की अर्थव्यवस्था मजबूत की थी। आरबीआई के 2017 के सर्वे से पता चलता है कि सबसे ज्यादा 26.9 फीसदी रक़म यूनाइटेड अरब अमीरात से आती है। इसके बाद अमरीका से 22.9 फीसदी, सऊदी अरब से 11.6 फीसदी, क़तर से 6.5, कुवैत से 5.5 फीसदी और ओमान से 3 फीसदी रक़म भारत भेजी जाती है। इस तरह विदेश में बसे भारतीयों द्वारा भेजे जाने वाले कुल पैसे का लगभग 75 फीसदी इन्हीं देशो से आता है। अगर अमेरिका को छोड़ दे तो इस आंकड़े में दर्ज बाक़ी मुल्क़ पूरी तरह कच्चे तेल के उत्पादन पर निर्भर हैं। कोरोना से थमी आर्थिक रफ़्तार के चलते दुनिया में तेल की मांग कम हुई है जिससे कच्चे तेल की कीमतें पाताल पहुँच गयी हैं। ज़ाहिर है दौर आर्थिक मंदी का है तो विदेशी कामगारों की संख्या घटाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। जानकारों की मानें तो अन्य खाड़ी देश भी कुवैत की तरह तेल पर ही निर्भर हैं और पूरी आशंका है कि वो भी कुवैत की राह पर चल पड़ें। ऐसा होता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगेगा जो ‘कंगाली में आटा गीला’ वाली बात होगी। विश्व बैंक पहले ही आशंका जता चुका है की देश में बाहर से आने वाले पैसे में इस वर्ष 23% की गिरावट आ सकती है और यह आँकड़ा 83 अरब डॉलर से 23% घटकर 64 अरब डॉलर रह सकता है।
Department of Non-Resident Keralites Affairs के मुताबिक बीती साल मई से लेकर इस साल 4 जनवरी तक 8.43 लाख लोग विदेश से केरल लौटे हैं। इनमे 5.52 लाख लोगो ने केरल वापस आने की वजह विदेश में रोज़गार छिन जाना बताया है। पिछले 30 दिनों में ही 1.40 लाख लोग वापस लौटे हैं। देश में पहले ही अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है, ऐसे में बाहर बसे भारतीयों के लौटने से उसे और झटका लग रहा है। लोकसभा में जारी आँकड़ों से पता चलता है कि रोज़गार और घर परिवार चलाने के लिए एक करोड़ 36 लाख भारतीय विदेशों में बस गये हैं। अकेले, सात इस्लामिक देशों यानी यूनाइटेडट अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, ओमान, क़तर, बहरीन और मलेशिया में 83 लाख 72 हज़ार 333 भारतीय रह रहे हैं, जबकि अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, नेपाल, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा में 30 लाख 410 भारतीय हैं। साल 2019 में इन भारतीयों ने 83 बिलियन डॉलर भारत भेजकर देश की अर्थव्यवस्था मजबूत की थी। आरबीआई के 2017 के सर्वे से पता चलता है कि सबसे ज्यादा 26.9 फीसदी रक़म यूनाइटेड अरब अमीरात से आती है। इसके बाद अमरीका से 22.9 फीसदी, सऊदी अरब से 11.6 फीसदी, क़तर से 6.5, कुवैत से 5.5 फीसदी और ओमान से 3 फीसदी रक़म भारत भेजी जाती है। इस तरह विदेश में बसे भारतीयों द्वारा भेजे जाने वाले कुल पैसे का लगभग 75 फीसदी इन्हीं देशो से आता है। अगर अमेरिका को छोड़ दे तो इस आंकड़े में दर्ज बाक़ी मुल्क़ पूरी तरह कच्चे तेल के उत्पादन पर निर्भर हैं। कोरोना से थमी आर्थिक रफ़्तार के चलते दुनिया में तेल की मांग कम हुई है जिससे कच्चे तेल की कीमतें पाताल पहुँच गयी हैं। ज़ाहिर है दौर आर्थिक मंदी का है तो विदेशी कामगारों की संख्या घटाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। जानकारों की मानें तो अन्य खाड़ी देश भी कुवैत की तरह तेल पर ही निर्भर हैं और पूरी आशंका है कि वो भी कुवैत की राह पर चल पड़ें। ऐसा होता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगेगा जो ‘कंगाली में आटा गीला’ वाली बात होगी। विश्व बैंक पहले ही आशंका जता चुका है की देश में बाहर से आने वाले पैसे में इस वर्ष 23% की गिरावट आ सकती है और यह आँकड़ा 83 अरब डॉलर से 23% घटकर 64 अरब डॉलर रह सकता है।
ताज़ा वीडियो