खतरो के साय में पत्रकार; मीडियाकर्मियों की हत्या वैश्विक समस्या

पत्रकारों पर आए दिन हमले और हत्या एक वैश्कि चिंता का विषय है। पत्रकारों पर हमले समाज में बड़े स्तर पर कुप्रभाव डालते हैं। युनाइटेड नेशंस के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक कार्यक्रम में मंगलवार को कहा कि पत्रकारों के ख़िलाफ सोशल मीडिया पर अभियान चलाया जाता है और उन्हें निशाना बनाया जाता है। भारत भी उन देशों में शामिल है जहां पत्रकारों पर हमले और उनकी हत्या मानो आम बात हो गई है। इतना ही नहीं भारत उन देशों में है जहां पत्रकारों के हत्यारे को सज़ा भी नहीं दी जाती।
गो न्यूज ने आपको पहले भी बताया था कि भारत में पत्रकारों की हत्या के 80 फीसदी मामलों में आरोपी, दोषी नहीं ठहराए गए। भारत प्रेस फ्रीडम में लुढ़क रहा है और उन देशों में शामिल होता जा रहा है जहां प्रेस को बोलने की आज़ादी नहीं है और उनके बोलने पर अंकुश लगाई जा रही है।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों पर हमलों के संबंध में यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बताया कि 2006 से 2020 के बीच 1200 से ज़्यादा पत्रकारों की हत्याएं हुई और अकेले 2020 में ही 62 पत्रकारों की हत्या कर दी गई। UN महासचिव ने कहा कि पत्रकारों को मिल रही फिजिकल और ऑनलाइन धमकियों से पत्रकार डर के साए में जी रहे हैं। पत्रकारों के बीच डर से नागरिकों तक पहुंचने वाली जानकारी, राय और विचारों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
कोविड के कारण बढ़ा संघर्ष
कोरोना संक्रमण के कारण प्रेस के सामने नई चुनौतियां खड़ी हुई हैं। कोविड के कारण लगाई गई पाबंदियों से पत्रकारों की सरकार तक पहुंच सीमित हो गई है जबकि ज़मीनी स्तर पर उनकी मौजूदगी भी प्रभावित हुई है। कोविड संक्रमण के बाद आर्थिक मंदी भी पत्रकारों को प्रभावित कर रही है। इस बीच बड़ी स्तर पर ऑनलाइन भ्रामक सूचना, घृणा और लोगों पर निजी हमले और धमकियां बढ़ गई।
मीडिया और पत्रकारिता के लिए काम करने वाले एक गैर लाभकारी अंतराष्ट्रीय संगठन International Media Support के मुताबिक कोविड के दौरान प्रेस की आज़ादी पर पाबंदी और स्वतंत्र और विश्वसनीय पत्रकारिता मांग में इज़ाफा देखा गया है। IMS ने 29 अप्रैल को ‘COVID-19 and the media: A pandemic of the paradoxes’ नाम की एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक 2020 में पत्रकारों पर फिजिकल हमले कम हो गए लेकिन इनके बदले ऑनलाइन हिंसा बढ़ गई है।
वहीं आर्थिक मंदी के कारण कई स्वतंत्र मीडिया कर्मी और मीडिया हाऊस अपनी कंपनियों को बंद करने पर मज़बूर हुए या फिर उन्हें बड़ी संस्था के हाथों अपनी कंपनियां बेचना पड़ी। रिपोर्ट में मिसइन्फोर्मेशन और अभद्र भाषा के प्रचार और सेंसरशिप को लागू करने में राज्य और सरकार की मिलीभगत होने का भी दावा किया गया है।
महिला पत्रकारों के लिए भी बढ़ी चुनौतियां!
रिपोर्ट के मुताबिक़ 2020 में कम हुई फिजिकल हिंसा के बीच खासकर महिला पत्रकारों पर ऑनलाइन हमले बढ़े हैं। यूनेस्को की महिला पत्रकारों के खिलाफ हो रही ऑनलाइन हिंसा पर जारी एक रिपोर्ट में हाल ही में नोबल पुरूस्कार जीतने वाली फिलीपिंस की महिला पत्रकार Maria Ressa के साथ हुई ऑनलाइन हमलों के अनुभवों को साझा किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक 73 फीसदी महिला रिस्पोंडेंट ने कहा कि वह ऑनलाइन हिंसा का शिकार हुई हैं जबकि 20 फीसदी का मानना था कि हिंसा ऑनलाइन के अलावा ज़मीनी स्तर पर फैल गई है। रिपोर्ट के मुताबिक़ 30 फीसदी महिला पत्रकारों ने बताया कि उन्हें इस ऑनलाइन हमलों की वजह से ख़ुद को आइसोलेट करना पड़ा।
जबकि 20 फीसदी महिला पत्रकारों ने बताया कि ऑनलाइन हमलों की वजह से उन्हें सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता बंद करनी पड़ी। इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि ‘महिला पत्रकारों के खिलाफ सबसे ज्यादा ऑनलाइन हिंसा सोशल मीडिया पर होती हैं।’ भारत भी उन देशों में शामिल है जहां सोशल मीडिया पर महिला पत्रकारों को टार्गेट किया जाता है।
ऐसे ही एक हमले में साल 2017 में 5 सितंबर को बड़ी पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में 18 आरोपियों के खिलाफ एक ट्रायल कोर्ट ने 30 अक्टूबर को आरोप तय कर दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी।
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