इज़रायल: दुनिया के सबसे सफल टीकाकरण कार्यक्रम पर भेदभाव के दाग!
दरअसल, इज़राइल ने वेस्ट बैंक में यहूदी वासियों को तो टीके वितरित किए हैं, लेकिन वहाँ रहने वाले फिलिस्तीनियों को नहीं...

इज़रायल दुनिया के सामने टीकाकरण कार्यक्रम की सफलता की मिसाल है। यह देश प्रति व्यक्ति टीकाकरण के मामले में दुनिया में सबसे आगे है जहाँ 15 लाख से ज्यादा इज़राइली नागरिकों को पहला टीका लग चुका है। अधिकारियों का मानना है जनवरी के अंत से पहले लगभग 20 लाख इज़रायली नागरिकों को वैक्सीन लग जायेगी। साथ ही, उम्मीद है कि मार्च के अंत तक देश की एक बड़ी आबादी कोरोना के ख़तरे से मुक्त होगी।
पर इस सफल टीकाकरण अभियान के दौरान भी इज़रायल भेदभाव बरतने के दाग़ से नहीं बच सका है। अभी तक जॉर्डन नदी और भूमध्य सागर के बीच रहने वाले लगभग 1 करोड़ 40 लाख लोगों में से एक तिहाई आबादी इस टीकाकरण अभियान का हिस्सा नहीं है जिसमे अधिकतर मुसलमान है। दरअसल, इज़राइल ने वेस्ट बैंक में यहूदी वासियों को तो टीके वितरित किए हैं, लेकिन वहाँ रहने वाले फिलिस्तीनियों को नहीं। इसी तरह ग़ाज़ा पट्टी में भी टीके वितरित नहीं किये जा रहे हैं।
इजरायली अधिकारियों का तर्क है कि ये फिलिस्तीनी, ओस्लो समझौते की शर्तों के तहत उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं और यह फिलिस्तीनी सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में टीकाकरण कार्यक्रम चलाये। इजरायल स्वास्थ्य मंत्री यूली एडेलस्टीन ने ब्रिटेन के एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में कहा था - 'मुझे नहीं लगता कि इस देश में कोई भी इस बात से सहमत होगा कि मैं इजरायल के नागरिकों के लिए आई वैक्सीन हमारे पड़ोसियों यानी फिलिस्तीनियों को दे दूँ।' कई मानवाधिकार संगठन इजरायली हिरासत में बंद फिलिस्तीनी कैदियों को सरकार की ओर से टीका न दिये जाने को लेकर इजरायली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर रहे हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मत है की हिरासत में बंद कैदियों को वायरस से संक्रमित होने की ज्यादा आशंका है और चूँकि ये इजरायली क़ैदी हिरासत में हैं, इसलिए इज़रायल सरकार को कम से कम इन्हें टीका देना चाहिए। बीते सोमवार को फ़िलिस्तीनी अधिकारियों ने ब्रिटेन की एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन और रूस की स्पुतनिक मंगवाने का ऐलान किया था। इसके अलावा फ़िलिस्तीनी विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोवैक्स पहल से सहायता की उम्मीद कर रहे हैं जो दुनिया के कुछ सबसे वंचित देशों में टीके का प्रबंध कर रही है। इसकी शुरुआत अगले महीने से हो सकती है। वैसे फिलिस्तीनियों ने औपचारिक तौर से इजरायल से मदद नहीं मांगी है और इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है क्योंकि दोनों देशो के बीच सदियों से संघर्ष चला आ रहा है। ध्यान रहे, फाइजर जैसी वैक्सीन को रखने के लिए ज़रूरी सुपर-कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की फिलिस्तीन में बेहद कमी है।
इजरायली अधिकारियों का तर्क है कि ये फिलिस्तीनी, ओस्लो समझौते की शर्तों के तहत उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं और यह फिलिस्तीनी सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में टीकाकरण कार्यक्रम चलाये। इजरायल स्वास्थ्य मंत्री यूली एडेलस्टीन ने ब्रिटेन के एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में कहा था - 'मुझे नहीं लगता कि इस देश में कोई भी इस बात से सहमत होगा कि मैं इजरायल के नागरिकों के लिए आई वैक्सीन हमारे पड़ोसियों यानी फिलिस्तीनियों को दे दूँ।' कई मानवाधिकार संगठन इजरायली हिरासत में बंद फिलिस्तीनी कैदियों को सरकार की ओर से टीका न दिये जाने को लेकर इजरायली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर रहे हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मत है की हिरासत में बंद कैदियों को वायरस से संक्रमित होने की ज्यादा आशंका है और चूँकि ये इजरायली क़ैदी हिरासत में हैं, इसलिए इज़रायल सरकार को कम से कम इन्हें टीका देना चाहिए। बीते सोमवार को फ़िलिस्तीनी अधिकारियों ने ब्रिटेन की एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन और रूस की स्पुतनिक मंगवाने का ऐलान किया था। इसके अलावा फ़िलिस्तीनी विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोवैक्स पहल से सहायता की उम्मीद कर रहे हैं जो दुनिया के कुछ सबसे वंचित देशों में टीके का प्रबंध कर रही है। इसकी शुरुआत अगले महीने से हो सकती है। वैसे फिलिस्तीनियों ने औपचारिक तौर से इजरायल से मदद नहीं मांगी है और इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है क्योंकि दोनों देशो के बीच सदियों से संघर्ष चला आ रहा है। ध्यान रहे, फाइजर जैसी वैक्सीन को रखने के लिए ज़रूरी सुपर-कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की फिलिस्तीन में बेहद कमी है।
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