कोरोना का असर: कुवैत में नौकरी से निकाले जायेंगे भारतीय

कोरोना महामारी और उसके प्रसार रोकने के लिए लगने वाली पाबंदियों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को निचोड़कर रख दिया है। दुनिया के सबसे अमीर मुल्कों में शुमार कुवैत भी इससे अछूता नहीं है। अब कुवैती सरकार ने फैसला किया की शिक्षा मंत्रालय में काम करने वाले प्रवासी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया जाएगा और उनकी जगह कुवैती नागरिकों को काम पर रखा जाएगा।
कुवैत के स्थानीय अखबार अल राय में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ने कहा है कि दिसंबर तक वित्त वर्ष 2020/2021 के लिए नौकरी कर रहे प्रवासी श्रमिकों की लिस्ट तैयार होगी जिन्हे नौकरी से बर्खास्त कर दिया जायेगा और खाली पदों पर कुवैत के स्थानीय नागरिकों को रख लिया जायेगा। ज़ाहिर है, इस फैसले का असर भारतीयों पर पड़ेगा जोकि बड़ी तादाद में कुवैत में काम करते है।
दरअसल कोरोना महामारी की शुरुआत के साथ ही कुवैत में प्रवासी कामगारों की संख्या कम करने को लेकर आवाज़ उठती रही है। राजनेता और सरकारी कर्मचारी लगातार मांग कर रहे हैं कि प्रवासी कामगारों को उनके देश भेजकर कुवैती लोगों को नौकरी दी जाए। इसके बाद से ही कुवैत, विदेशी कामगारों की संख्या कम करने के लिए लगातार क़ानूनों में फेरबदल कर रहा है। दरअसल, 43 लाख की आबादी वाले कुवैत में केवल 13 लाख लोग स्थानीय निवासी हैं और बाकी 30 लाख लोग प्रवासी कामगार। आंकड़े बताते हैं कि प्रवासी कामगारों में लगभग आधे यानी कि 15 लाख भारतीय हैं। इससे पहले कुवैत सरकार ने फैसला लिया था कि 60 साल से ज़्यादा उम्र के 68,000 विदेशी कर्मचारियों के लिए वर्क परमिट जनवरी 2021 में रिन्यू नहीं किया जाएगा। इस आंकड़े में भी काफी भारतीय शामिल थे। अगर कुवैत सरकार प्रवासी कामगारों को वापस भेजती है तो ये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए तगड़ा झटका साबित होगा। यह फैसला अमल में आने के बाद जब प्रवासी कामगार कुवैत से वापस लौटेंगे तो भारत को हर साल मिलने वाली आमदनी भी गिरेगी। 2018 में कुवैत में काम करने वालों ने 4.5 बिलियन डॉलर भारत भेजकर देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया था। जानकारों की मानें तो अन्य खाड़ी देश भी कुवैत की तरह तेल पर ही निर्भर हैं और पूरी आशंका है कि वो भी कुवैत की राह पर चलें। ऐसा होता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगेगा जो ‘कंगाली में आटा गीला’ वाली बात होगी।
दरअसल कोरोना महामारी की शुरुआत के साथ ही कुवैत में प्रवासी कामगारों की संख्या कम करने को लेकर आवाज़ उठती रही है। राजनेता और सरकारी कर्मचारी लगातार मांग कर रहे हैं कि प्रवासी कामगारों को उनके देश भेजकर कुवैती लोगों को नौकरी दी जाए। इसके बाद से ही कुवैत, विदेशी कामगारों की संख्या कम करने के लिए लगातार क़ानूनों में फेरबदल कर रहा है। दरअसल, 43 लाख की आबादी वाले कुवैत में केवल 13 लाख लोग स्थानीय निवासी हैं और बाकी 30 लाख लोग प्रवासी कामगार। आंकड़े बताते हैं कि प्रवासी कामगारों में लगभग आधे यानी कि 15 लाख भारतीय हैं। इससे पहले कुवैत सरकार ने फैसला लिया था कि 60 साल से ज़्यादा उम्र के 68,000 विदेशी कर्मचारियों के लिए वर्क परमिट जनवरी 2021 में रिन्यू नहीं किया जाएगा। इस आंकड़े में भी काफी भारतीय शामिल थे। अगर कुवैत सरकार प्रवासी कामगारों को वापस भेजती है तो ये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए तगड़ा झटका साबित होगा। यह फैसला अमल में आने के बाद जब प्रवासी कामगार कुवैत से वापस लौटेंगे तो भारत को हर साल मिलने वाली आमदनी भी गिरेगी। 2018 में कुवैत में काम करने वालों ने 4.5 बिलियन डॉलर भारत भेजकर देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया था। जानकारों की मानें तो अन्य खाड़ी देश भी कुवैत की तरह तेल पर ही निर्भर हैं और पूरी आशंका है कि वो भी कुवैत की राह पर चलें। ऐसा होता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगेगा जो ‘कंगाली में आटा गीला’ वाली बात होगी।
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