अध्ययन: शिक्षा में बाधा बनी ऑनलाइन पढ़ाई!

कोरोना ने दुनिया में क़रीब-क़रीब सब कुछ बदल दिया है। एक बड़ा बदलाव तब आया जब कक्षाएं सिमट कर मोबाइल और लैपटॉप की स्क्रीन तक रह गईं और ऑनलाइन शिक्षा एक ट्रेंड बन गया।
अब उसी ऑनलाइन शिक्षा पर अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा 5 राज्यों, 26 जिलों, 398 अध्यापकों और 1,522 माता-पिता में एक अध्ययन किया गया है।
"मिथ्स ऑफ़ ऑनलाइन एजुकेशन" शीर्षक वाले अध्ययन में कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में दाख़िला लेने वाले लगभग 60 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि वे ऑनलाइन शिक्षा का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि स्मार्टफोन तक पहुंच की कमी ने बच्चों को ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं होने दिया जिसकी वजह से बड़ी तादाद में बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित रह गए। इस अध्ययन में एक और चिंता बढ़ाने वाली बात सामने आई है। पता चला है कि विकलांग बच्चों को ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने पर काफ़ी परेशानी होती है। 90 प्रतिशत शिक्षक, जो विकलांग बच्चों के साथ काम करते हैं, ने कहा कि उनके छात्र ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो सकते थे। वहीं 70 प्रतिशत माता-पिता ने कहा कि ऑनलाइन कक्षाएं अप्रभावी थीं और इन कक्षाओं ने उनके बच्चे की बिल्कुल मदद नहीं की। अध्ययन के अनुसार, माता-पिता उन्हें फिर से स्कूल भेजने के लिए उत्सुक हैं। ऑनलाइन पढ़ाई के संबंध में 80 प्रतिशत से अधिक शिक्षकों ने कहा कि वे अपने छात्रों के साथ भावनात्मक जुड़ाव नहीं रख सके और 90 प्रतिशत ने महसूस किया कि इस तरह के सेट-अप में कोई सार्थक मूल्यांकन संभव नहीं। उन्होंने यह भी बताया कि छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान असाइनमेंट पूरा करने में बहुत मुश्किल हुई। इस अध्ययन में शिक्षक और छात्र के बीच एक-तरफ़ा संचार के मुद्दे को भी चिह्नित किया गया। यह समझना मुश्किल था कि छात्र वह सब समझ पा रहे हैं जो उन्हें पढ़ाया जा रहा है या नहीं। शिक्षकों ने बताया कि नियमित कक्षाओं में भाग लेने वाले 30,511 बच्चों में केवल 11,474 ही वास्तव में ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले रहे थे। इस अध्ययन का उद्देश्य माता-पिता के दृष्टिकोण और महामारी के कारण बाधित शिक्षण के प्रति चिंताओं को समझना था। इससे पता चला कि अभिभावकों ने आवश्यक सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ स्कूलों को फिर से खोलने का समर्थन किया।
"मिथ्स ऑफ़ ऑनलाइन एजुकेशन" शीर्षक वाले अध्ययन में कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में दाख़िला लेने वाले लगभग 60 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि वे ऑनलाइन शिक्षा का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि स्मार्टफोन तक पहुंच की कमी ने बच्चों को ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं होने दिया जिसकी वजह से बड़ी तादाद में बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित रह गए। इस अध्ययन में एक और चिंता बढ़ाने वाली बात सामने आई है। पता चला है कि विकलांग बच्चों को ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने पर काफ़ी परेशानी होती है। 90 प्रतिशत शिक्षक, जो विकलांग बच्चों के साथ काम करते हैं, ने कहा कि उनके छात्र ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो सकते थे। वहीं 70 प्रतिशत माता-पिता ने कहा कि ऑनलाइन कक्षाएं अप्रभावी थीं और इन कक्षाओं ने उनके बच्चे की बिल्कुल मदद नहीं की। अध्ययन के अनुसार, माता-पिता उन्हें फिर से स्कूल भेजने के लिए उत्सुक हैं। ऑनलाइन पढ़ाई के संबंध में 80 प्रतिशत से अधिक शिक्षकों ने कहा कि वे अपने छात्रों के साथ भावनात्मक जुड़ाव नहीं रख सके और 90 प्रतिशत ने महसूस किया कि इस तरह के सेट-अप में कोई सार्थक मूल्यांकन संभव नहीं। उन्होंने यह भी बताया कि छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान असाइनमेंट पूरा करने में बहुत मुश्किल हुई। इस अध्ययन में शिक्षक और छात्र के बीच एक-तरफ़ा संचार के मुद्दे को भी चिह्नित किया गया। यह समझना मुश्किल था कि छात्र वह सब समझ पा रहे हैं जो उन्हें पढ़ाया जा रहा है या नहीं। शिक्षकों ने बताया कि नियमित कक्षाओं में भाग लेने वाले 30,511 बच्चों में केवल 11,474 ही वास्तव में ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले रहे थे। इस अध्ययन का उद्देश्य माता-पिता के दृष्टिकोण और महामारी के कारण बाधित शिक्षण के प्रति चिंताओं को समझना था। इससे पता चला कि अभिभावकों ने आवश्यक सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ स्कूलों को फिर से खोलने का समर्थन किया।
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