अनाज की सरकारी ख़रीद और किसानों की सम्पन्नता में है सीधा रिश्ता

देश में नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों और सरकार में ठनी हुई है। किसानों का कहना है कि एमएसपी की वैधानिकता न होने से सरकार अनाज की ख़रीद के लिए बाध्य नहीं होगी और उन्हें बाज़ार के शोषण का शिकार होना पड़ेगा।आँकड़े भी बताते हैं जिन राज्यों में सरकारें किसानों की पैदावार की बड़े पैमाने पर ख़रीद करती हैं, वहाँ के किसान तुलनात्मक रूप से ज़्यादा सम्पन्न हैं। पंजाब और हरियाणा के किसानो की सम्पन्नता और बिहार के किसानों की ग़रीबी के पीछे यह बड़ा कारण है।
किसानों के उपज की सरकारी ख़रीद के दो तरीक़े हैं। पहला तरीका है फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया (FCI) यानि भारतीय खाद्य प्राधिकरण की ओर से मंडियों में होने वाली खरीद और दूसरा तरीका है कि राज्य की अलग अलग एजेंसियाँ पहले अनाज खरीदती हैं जिसे बाद में FCI ले लेता है।
सहकारिता और उपभोक्ता मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 2018-19 में 61.56 लाख टन चावल की पैदावार हुई, लेकिन सरकार ने केवल 9.49 लाख टन चावल ही खरीदा। अगले ही साल यानि 2019-20 में राज्य में चावल की पैदावार हुई 60.53 लाख टन मगर उस वर्ष भी सरकार ने केवल 13.41 लाख टन चावल ही अधिग्रहण किया। बिहार के मुकाबले पंजाब में किसानों से सरकार ने बहुत ज्यादा चावल ख़रीदा। मसलन राज्य में साल 2018-19 में चावल की पैदावार रही 128.22 लाख टन और सरकार ने 113.3 लाख टन चावल की खरीद की इसी तरह अगले साल 117.82 लाख टन चावल पंजाब में पैदा हुआ और सरकार ने 108.76 लाख टन चावल खरीद लिया। आंकड़ों से साफ़ है कि पंजाब में किसान पूरी तरह मंडी पर निर्भर हैं और क्यों वे देश के सबसे संपन्न किसान हैं। इसलिए कहा जा सकता है की उसे MSP यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी फ़ायदा है। शायद बिहार के किसानों का देश में सबसे गरीब होने का कारण भी इसी पैदावार और खरीद के आंकड़ों में छुपा है। चलिए, इसी तरह दो और राज्य की तुलना करते हैं। हरियाणा में 2018 में 45.16 लाख टन चावल की पैदावार हुई और यहाँ किसानों से 39.42 लाख टन चावल की खरीद की गई। अगले ही वर्ष यानी 2019-20 में 48.24 लाख टन चावल की पैदावार हुई और सरकार ने 43.03 लाख टन चावल खरीद लिया। महाराष्ट्र के किसान की हालत भी किसी से छुपी नहीं है। इस राज्य में 2018-19 में 32.76 लाख टन चावल पैदा हुआ मगर सरकार ने केवल 5.80 लाख टन की ही खरीद की। अगले साल 31.83 लाख टन चावल पैदा हुआ लेकिन सरकार ने केवल 11.57 लाख टन ही किसानों से खरीदा। ज़ाहिर है, जिन राज्य में मंडी सिस्टम अच्छी तरह काम कर रहा है, वहाँ तुलनात्मक तौर पर किसानों की स्थिति उन राज्यों से बेहतर है, जहाँ इसमें कमी है।
सहकारिता और उपभोक्ता मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 2018-19 में 61.56 लाख टन चावल की पैदावार हुई, लेकिन सरकार ने केवल 9.49 लाख टन चावल ही खरीदा। अगले ही साल यानि 2019-20 में राज्य में चावल की पैदावार हुई 60.53 लाख टन मगर उस वर्ष भी सरकार ने केवल 13.41 लाख टन चावल ही अधिग्रहण किया। बिहार के मुकाबले पंजाब में किसानों से सरकार ने बहुत ज्यादा चावल ख़रीदा। मसलन राज्य में साल 2018-19 में चावल की पैदावार रही 128.22 लाख टन और सरकार ने 113.3 लाख टन चावल की खरीद की इसी तरह अगले साल 117.82 लाख टन चावल पंजाब में पैदा हुआ और सरकार ने 108.76 लाख टन चावल खरीद लिया। आंकड़ों से साफ़ है कि पंजाब में किसान पूरी तरह मंडी पर निर्भर हैं और क्यों वे देश के सबसे संपन्न किसान हैं। इसलिए कहा जा सकता है की उसे MSP यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी फ़ायदा है। शायद बिहार के किसानों का देश में सबसे गरीब होने का कारण भी इसी पैदावार और खरीद के आंकड़ों में छुपा है। चलिए, इसी तरह दो और राज्य की तुलना करते हैं। हरियाणा में 2018 में 45.16 लाख टन चावल की पैदावार हुई और यहाँ किसानों से 39.42 लाख टन चावल की खरीद की गई। अगले ही वर्ष यानी 2019-20 में 48.24 लाख टन चावल की पैदावार हुई और सरकार ने 43.03 लाख टन चावल खरीद लिया। महाराष्ट्र के किसान की हालत भी किसी से छुपी नहीं है। इस राज्य में 2018-19 में 32.76 लाख टन चावल पैदा हुआ मगर सरकार ने केवल 5.80 लाख टन की ही खरीद की। अगले साल 31.83 लाख टन चावल पैदा हुआ लेकिन सरकार ने केवल 11.57 लाख टन ही किसानों से खरीदा। ज़ाहिर है, जिन राज्य में मंडी सिस्टम अच्छी तरह काम कर रहा है, वहाँ तुलनात्मक तौर पर किसानों की स्थिति उन राज्यों से बेहतर है, जहाँ इसमें कमी है।
ताज़ा वीडियो