आख़िर भारतीय रेल क्यों बनती जा रही है घाटे का सौदा ?

भारतीय रेलवे एक तरफ ट्रेनों में स्लीपर कोच को भी एसी कोच में तब्दील करने योजना बना रही है लेकिन फिर भी इसकी कमाई लगातार घट रही है। संसद में पेश कैग यानि कम्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया की हालिया रिपोर्ट बताती है कि रेलवे 100 रूपये कमाने के लिए 101.77 रूपये ख़र्च कर रहा है। साथ ही अपनी नाकामी छुपाने के लिए रेलवे अपनी कमाई ग़लत तरीके से दिखा रही है और कई प्रोजेक्ट की डेडलाइन ख़त्म होने के बावजूद पूरे नहीं हो पाए हैं।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि रेलवे के बजट अनुमान 92.8 फीसदी के लक्ष्य के ख़िलाफ वित्त वर्ष 2018-19 में रेलवे की ऑपरेटिंग दर 97.29 फीसदी रही। हालांकि अगर देखा जाए तो साल 2016 से रेलवे की ऑपरेटिंग दर में लगातार इज़ाफा हो रहा है। साल 2016 में जहां यह दर 90 फीसदी रही वो अब बढ़कर वित्त वर्ष 2019 में यही दर 97.29 फीसदी आंकी गई है लेकिन इसमें एक पेंच है।
कैग की रिपोर्ट कहती है कि अगर इसमें एनटीपीसी और CONCOR से 8,351 करोड़ के अडवांस को जोड़ दिया जाए तो यह दर 101.77 फीसदी पर पहुंच जाएगी। यानि सीधे लफ्ज़ों में कहें तो वित्त वर्ष 2019 में रेलवे को 100 रूपये कमाने के लिए 101.77 रूपये ख़र्च करना पड़ा। दिलचस्प बात यह कि जिस हिसाब से रेलवे का ख़र्च बढ़ा उस हिसाब से इसकी कमाई नहीं बढ़ी। अगर आंकड़े देखें तो पिछले पांच सालों में रेलवे की टिकट और माल ढुलाई से होने वाली कमाई अपने बजट अनुमान से कम ही रही। मसलन वित्त वर्ष 2017 में रेलवे को अपने बजट अनुमान का 10 फीसदी से ज़्यादा का नुकसान हुआ।
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