कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का अनुभव अच्छा नहीं रहा पंजाब के किसानों का
कई बार कंपनी और किसानों का विवाद कोर्ट में भी पहुंच चुका है। पिछले साल काफी चर्चा हो जाने पर पेप्सिको ने गुजरात के नौ किसानों के खिलाफ कोर्ट में लंबित सभी मामलों को वापस ले लिया था।

देश की राजधानी दिल्ली की दहलीज पर किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे है। किसान न सिर्फ एमएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी चाहते है बल्कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का डर भी उन्हें सता रहा है। इस आंदोलन में ज्यादातर किसान पंजाब के हैं जहाँ पिछले 14 साल से ही कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है। ऐसे में अगर राष्ट्रीय स्तर पर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग आती है, तो इससे उनकी किसानी पर क्या फर्क पड़ेगा। वे किस बात से परेशान हैं?
दरअसल, 2006 में एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किट एक्ट में परोक्ष रूप से और 2013 में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट द्वारा पंजाब में इस ठेका प्रथा को मंजूरी है। लेकिन पंजाब में इतनी ही कंपनियों के साथ किसान काम करने को तैयार हुई हैं जितनी कि आप हाथ पर गिन ले। सवाल उठता है कि आखिर पंजाब का किसान, जो कि देश में सबसे ज्यादा अमीर है, उद्ममी है, उसे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से क्या गुरेज़? आखिर वो सरकार को ही अपनी फसल बेचने पर क्यों अड़ा है?
पंजाब का किसान साल में औसतन 2 लाख 30 हज़ार 905 रुपए कमाता है। इसकी वजह एमएसपी है जिसमें उसे न्यूनतम मूल्य मिलने की गारंटी हो जाती है। वैसे कान्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट के मुताबिक किसान और कंपनी के बीच पहले कॉन्ट्रैक्ट होता जिसमे फसल, उसकी मात्रा और उसकी कीमत समेत भुगतान की समयसीमा और कॉन्ट्रैक्ट के नाफ़रमानी के हर्जाने लिखे जाते हैं। लेकिन यदि फसल खराब हो जाती है या उपज की गुणवत्ता गिर जाती है तो किसान की फसल कंपनी खरीदती नहीं है और उसके पास उसकी लागत आने की कोई गारंटी नहीं होती। कई बार कंपनी और किसानों का विवाद कोर्ट में भी पहुंच चुका है। पिछले साल काफी चर्चा हो जाने पर पेप्सिको ने गुजरात के नौ किसानों के खिलाफ कोर्ट में लंबित सभी मामलों को वापस ले लिया था। कंपनी ने इन सभी छोटे किसानों से 1.05 करोड़ के भरपाई करने को लेकर मुकदमा किया था। लेकिन ऐसा भी नहीं है की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पंजाब में होती ही नहीं है। पंजाब में पेप्सी, निज्जर एग्रो, सतनाम एक्सपोर्ट्स, नेस्ले और भारती मोंटे कई कंपनिया कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में कार्यरत है। कई बड़े किसान इन कंपनियों के लिए मिर्चो से लेकर ब्रोकली और स्वीट कॉर्न जैसी फसल उगाते भी हैं। दरअसल, इन किसानों के पास इतनी ज़मीन और साधन होते हैं कि वह उस क्वालिटी को बरक़रार रख सकें जैसी क्वालिटी कंपनी मांग करती है। ज़ाहिर है, उनके पास नुक्सान झेलने की ज्यादा क़ूवत भी होती है। लेकिन छोटे और मझोले किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से दूर ही रहना चाहते है। उनका साफतौर पर कहना है की अगर सरकार चाहती है कि अगर प्राइवेट प्लेयर कृषि क्षेत्र में आयें तो कम से कम उन्हें उनके माल के कीमत की गारंटी मिले।
पंजाब का किसान साल में औसतन 2 लाख 30 हज़ार 905 रुपए कमाता है। इसकी वजह एमएसपी है जिसमें उसे न्यूनतम मूल्य मिलने की गारंटी हो जाती है। वैसे कान्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट के मुताबिक किसान और कंपनी के बीच पहले कॉन्ट्रैक्ट होता जिसमे फसल, उसकी मात्रा और उसकी कीमत समेत भुगतान की समयसीमा और कॉन्ट्रैक्ट के नाफ़रमानी के हर्जाने लिखे जाते हैं। लेकिन यदि फसल खराब हो जाती है या उपज की गुणवत्ता गिर जाती है तो किसान की फसल कंपनी खरीदती नहीं है और उसके पास उसकी लागत आने की कोई गारंटी नहीं होती। कई बार कंपनी और किसानों का विवाद कोर्ट में भी पहुंच चुका है। पिछले साल काफी चर्चा हो जाने पर पेप्सिको ने गुजरात के नौ किसानों के खिलाफ कोर्ट में लंबित सभी मामलों को वापस ले लिया था। कंपनी ने इन सभी छोटे किसानों से 1.05 करोड़ के भरपाई करने को लेकर मुकदमा किया था। लेकिन ऐसा भी नहीं है की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पंजाब में होती ही नहीं है। पंजाब में पेप्सी, निज्जर एग्रो, सतनाम एक्सपोर्ट्स, नेस्ले और भारती मोंटे कई कंपनिया कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में कार्यरत है। कई बड़े किसान इन कंपनियों के लिए मिर्चो से लेकर ब्रोकली और स्वीट कॉर्न जैसी फसल उगाते भी हैं। दरअसल, इन किसानों के पास इतनी ज़मीन और साधन होते हैं कि वह उस क्वालिटी को बरक़रार रख सकें जैसी क्वालिटी कंपनी मांग करती है। ज़ाहिर है, उनके पास नुक्सान झेलने की ज्यादा क़ूवत भी होती है। लेकिन छोटे और मझोले किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से दूर ही रहना चाहते है। उनका साफतौर पर कहना है की अगर सरकार चाहती है कि अगर प्राइवेट प्लेयर कृषि क्षेत्र में आयें तो कम से कम उन्हें उनके माल के कीमत की गारंटी मिले।
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