ईपीएफ में ढाई लाख से ज़्यादा जमा करने पर टैक्स छूट खत्म, मगर क्यों ?
सौ बातों की एक बात ये है कि सरकार कोरोना काल में अर्थव्यवस्था को पहुँचे नुकसान की भरपाई करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है और वेतनभागी कर्मचारी उसका सबसे आसान शिकार है...

घाटे में चल रही सरकार पैसे जुगाड़ने के सभी जतन कर रही है। इसी कड़ी में अब बजट में पहली बार सरकार ने कर्मचारियों के एम्प्लॉयी प्रोविडेंट फंड यानी भविष्य निधि में जमा पैसे पर टैक्स लगाने का प्रावधान किया है। यह टैक्स उन खातों पर लगेगा जिसमे कर्मचारी एक साल में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा जमा कराता है। सरकार ने प्रस्ताव दिया है कि भविष्य निधि में 2.5 लाख रुपये से अधिक के योगदान पर मिलने वाले ब्याज पर कर छूट उपलब्ध नहीं होगी।
वैसे तो यह ईपीएफ में योगदान करने वाले सभी वेतनभोगी लोगों की चिंता का सबब है, पर वास्तव में केवल उन लोगों को प्रभावित करेगा जो एक वर्ष में 2.5 लाख रुपये से अधिक का योगदान ईपीएफ में करते हैं - और यह प्रावधान 31 मार्च के बाद दिये जाने वाले योगदान पर ही लागू होगा।
बजट प्रस्ताव में उल्लेख किया गया है कि सरकार के सामने ऐसे मामले सामने आये है जहाँ कुछ कर्मचारी EPF में हर माह बड़ी रकम जमा करा रहे है और उन्हें सभी चरणों में कर छूट का लाभ मिल रहा है - यानी जमा करने, उसपे ब्याज कमाने और पैसे निकालने में। सरकार का तर्क है की शीर्ष 20 हाई वैल्यू खातों में लगभग 825 करोड़ और प्रमुख 100 योगदानकर्ताओं के खातों में 2,000 करोड़ से अधिक हैं। ऐसे हाई वैल्यू ट्रांसक्शन को रोकने के लिए ही सरकार ने कर छूट के लिए पैसे जमा करने की सीमा 2.5 लाख रुपये सालाना करने का निर्णय लिया है। आसान भाषा में कहे तो हर साल 2.5 लाख रुपये से अधिक के सभी योगदानों पर टैक्स में किसी भी चरण में अब छूट नहीं मिलेगी। नए नियम 1 अप्रैल, 2021 से लागू होंगे। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के छह करोड़ से अधिक ग्राहक हैं और जो लोग वास्तव में प्रति वर्ष 2.5 लाख रुपये से अधिक का योगदान करते हैं, उनकी तादाद इसके एक प्रतिशत से भी कम है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि "यह फंड वास्तव में श्रमिकों के लाभ के लिए है, और श्रमिक इससे प्रभावित होने वाले नहीं हैं।" “… यह केवल बड़े लोगो के लिए है। कुछ लोग हर महीने इसमें 1 करोड़ रुपये डाल रहे है, आप सोचिये उनका वेतन क्या होगा? सालाना 2 लाख रुपये कमाने वाले कर्मचारी के साथ इस इंसान की तुलना नहीं की सकती।" ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जो लोग हर महीने करोड़ों रुपए पीएफ खातों में जमाकर सरकार को चूना लगाते रहे, आखिर सरकार उनका नाम क्यों नहीं उजागर कर रही है? कई लोगो ने यहाँ तक कहना है कि आखिर सरकार पीएफ पर टैक्स कैसे लगा सकती है जो कि अनिवार्य है। मसलन अगर किसी की तनख्वाह इतनी है कि वो सालाना 2.5 लाख रुपए से ज्यादा जमा कराता है तो आखिर उसे टैक्स का लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए और क्या इसे एक भेदभावपूर्ण फैसले के तौर पर नहीं देखना चाहिए? ज़ाहिर है, सवाल कई हैं, पर सौ बातों की एक बात ये है कि सरकार कोरोना काल में अर्थव्यवस्था को पहुँचे नुकसान की भरपाई करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है और वेतनभागी कर्मचारी उसका सबसे आसान शिकार है।
बजट प्रस्ताव में उल्लेख किया गया है कि सरकार के सामने ऐसे मामले सामने आये है जहाँ कुछ कर्मचारी EPF में हर माह बड़ी रकम जमा करा रहे है और उन्हें सभी चरणों में कर छूट का लाभ मिल रहा है - यानी जमा करने, उसपे ब्याज कमाने और पैसे निकालने में। सरकार का तर्क है की शीर्ष 20 हाई वैल्यू खातों में लगभग 825 करोड़ और प्रमुख 100 योगदानकर्ताओं के खातों में 2,000 करोड़ से अधिक हैं। ऐसे हाई वैल्यू ट्रांसक्शन को रोकने के लिए ही सरकार ने कर छूट के लिए पैसे जमा करने की सीमा 2.5 लाख रुपये सालाना करने का निर्णय लिया है। आसान भाषा में कहे तो हर साल 2.5 लाख रुपये से अधिक के सभी योगदानों पर टैक्स में किसी भी चरण में अब छूट नहीं मिलेगी। नए नियम 1 अप्रैल, 2021 से लागू होंगे। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के छह करोड़ से अधिक ग्राहक हैं और जो लोग वास्तव में प्रति वर्ष 2.5 लाख रुपये से अधिक का योगदान करते हैं, उनकी तादाद इसके एक प्रतिशत से भी कम है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि "यह फंड वास्तव में श्रमिकों के लाभ के लिए है, और श्रमिक इससे प्रभावित होने वाले नहीं हैं।" “… यह केवल बड़े लोगो के लिए है। कुछ लोग हर महीने इसमें 1 करोड़ रुपये डाल रहे है, आप सोचिये उनका वेतन क्या होगा? सालाना 2 लाख रुपये कमाने वाले कर्मचारी के साथ इस इंसान की तुलना नहीं की सकती।" ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जो लोग हर महीने करोड़ों रुपए पीएफ खातों में जमाकर सरकार को चूना लगाते रहे, आखिर सरकार उनका नाम क्यों नहीं उजागर कर रही है? कई लोगो ने यहाँ तक कहना है कि आखिर सरकार पीएफ पर टैक्स कैसे लगा सकती है जो कि अनिवार्य है। मसलन अगर किसी की तनख्वाह इतनी है कि वो सालाना 2.5 लाख रुपए से ज्यादा जमा कराता है तो आखिर उसे टैक्स का लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए और क्या इसे एक भेदभावपूर्ण फैसले के तौर पर नहीं देखना चाहिए? ज़ाहिर है, सवाल कई हैं, पर सौ बातों की एक बात ये है कि सरकार कोरोना काल में अर्थव्यवस्था को पहुँचे नुकसान की भरपाई करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है और वेतनभागी कर्मचारी उसका सबसे आसान शिकार है।
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