कोरोनाकाल में एक करोड़ लोगों ने पीएफ से पैसे निकाले, 74 फीसदी की तनख्वाह 15 हज़ार से कम

संकट में फंसी अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना महामारी ताबूत में कील साबित हुई है। केंद्र सरकार गिरती अर्थव्यवस्था को सँभालने के लिए तमाम जतन भी कर रही है। हाल में ही सरकार ने प्रोविडेंट फंड से जुड़े नियमो में बदलाव कर लोगों को अपने खाते में पड़े पैसे का 75 फीसदी या अपने तीन महीने की तन्खा का बेसिक पे और डियरनेस अलाउंस निकालने की छूट दी।
इसमें एक शर्त थी कि आपको इन दोनों में वही मिलेगा जिसकी रकम छोटी होगी। अब कागज़ो पर भले ही ये योजना अच्छी लगे लेकिन हक़ीक़त में इससे ज़मीनी हालात में कोई बदलाव ना हुआ और ना होने वाला है।
आइए समझते है आंकड़ों से, लोकसभा में वित्त मंत्रालय ने अपने एक जवाब में माना की नए नियमों के तहत अपने पीएफ खातों से पैसा निकालने वाले लोग तो 74 फीसदी कम वेतन पाने वाले मजदूर हैं जिनकी मासिक तनख़्वा 15 हज़ार से भी कम है। इसके अलावा सरकार खुद मानती है की महामारी और लॉकडाउन के दौरान देशभर में 1 करोड़ 4 लाख 5 हज़ार 501 लोगों ने पीएफ खातों से पैसा निकाला जिसमें से 81 लाख 91 हज़ार 735 लोगों की मासिक आय तो 15 हज़ार या उससे कम थी।
वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 1 करोड़ 4 लाख 5 हज़ार 51 लोगों को पीएफ फंड से भुगतान हुआ केवल 39 हज़ार 402 करोड़ रुपए। आसान भाषा में बताएँ तो केवल 37,866.509 पैसे हर व्यक्ति की जेब में आए। ज़ाहिर है इसे केवल ऊट के मुँह में जीरा ही कह सकते हैं क्यूंकि इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलना मुश्किल है। 15 हज़ार या उससे कम कमाने वाले ये वही लोग हैं जिन्हें मजबूरन शहरों से सैकड़ो-हज़ारो किलोमीटर दूर अपने गावों की यात्रा करनी पड़ी थी।
इससे पहले देश का सबसे बडा बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया एक रिपोर्ट में कह चुका है कि देश में प्रति व्यक्ति आय में लॉकडाउन के चलते 20 फ़ीसदी की कमी आने की आशंका है। ज़ाहिर है गरीब दिहाड़ी मजदूरों को ज्यादा नकदी की ज़रूरत है क्यूंकि तालाबंदी की सबसे ज्यादा मार इसी तबके पर पड़ी है।
डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन ने तालाबंदी के दौरान शहरों से गांवों की ओर पलायन करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों पर एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक करोड़ों लोग भुखमरी की कगार पर हैं और कर्ज़ के बोझ तले दबे हुए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक तकरीबन 80 फीसदी दिहाड़ी मज़दूरों का मानना है कि वे अब कभी भी उनपर चढ़ा हुआ कर्ज़ा नहीं उतार पाएंगे. 50 फीसदी मज़दूरों का यहां तक मानना है कि कर्ज़ के चलते उन्हें हिंसा का शिकार होने का डर सता रहा है।
आइए समझते है आंकड़ों से, लोकसभा में वित्त मंत्रालय ने अपने एक जवाब में माना की नए नियमों के तहत अपने पीएफ खातों से पैसा निकालने वाले लोग तो 74 फीसदी कम वेतन पाने वाले मजदूर हैं जिनकी मासिक तनख़्वा 15 हज़ार से भी कम है। इसके अलावा सरकार खुद मानती है की महामारी और लॉकडाउन के दौरान देशभर में 1 करोड़ 4 लाख 5 हज़ार 501 लोगों ने पीएफ खातों से पैसा निकाला जिसमें से 81 लाख 91 हज़ार 735 लोगों की मासिक आय तो 15 हज़ार या उससे कम थी।

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