6 सालों में कॉर्पोरेट जगत पर बजट का एक तिहाई हिस्सा लुटा चुकी है 'मोदी सरकार'
कुल मिलाकर कहे तो मंशा कुछ भी हो लेकिन मोदी सरकार में भला तो सिर्फ कॉर्पोरेट जगत का ही हो रहा है।

आपने यह कहावत ज़रूर सुनी होगी 'ढाक के तीन पात' यानि कुछ भी करिए, नतीजा सिफर ही आएगा। कुछ ऐसा ही हाल है केंद्र सरकार की रोजगार नीति का। मसलन सरकार हर साल कॉर्पोरेटजगत को टैक्स में लाखों करोड़ की छूट दे रही है ताकि नौकरी पैदा हो, देश में निवेश बढ़े लेकिन हालात सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा है। और तो और सरकार को किसानों और गरीब लोगों को मिलने वाली सब्सिडी चुभ रही है लेकिन कॉर्पोरेट जगत पर पिछले छह सालों में सरकार 5 लाख 29 हज़ार 667 करोड़ रुपए की आयकर में छूट दे चुकी है।
सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2014-15 में सरकार ने कॉर्पोरेट जगत को 65 हज़ार 67 करोड़ रुपए की छूट इनकम टैक्स एक्ट के अंतर्गत दी। इसके बाद इस आंकड़े के बढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ। मसलन अगले वित्त वर्ष 76 हज़ार 857 करोड़ रुपए, वित्त वर्ष 2016-17 में 86 हज़ार 144 करोड़ रुपए, वित्त 2017-18 में 93 हज़ार 642 करोड़ रुपए और साल 2018-19 में 1 लाख 8 हज़ार 113 करोड़ रुपए की आयकर में छूट दी गई। साल 2019-20 में कॉर्पोरेट जगत को टैक्स में मिलने वाली छूट का आंकड़ा रहा 99 हज़ार 842 करोड़ रुपए।
ध्यान रहे, यह वो पैसा नहीं है जो उद्योगपतियों का बैंको पर बकाया है और जिसे सरकार माफ़ कर देती है। एक आरटीआई के जवाब में सरकार ने बताया था की मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए ने 10 साल में बैंकों का 2 लाख 20 हज़ार 328 करोड़ रुपए माफ़ किया था, वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार के 5 साल के कार्यकाल में यह आंकड़ा तिगुना बढ़कर पहुंच गया 7 लाख 94 हज़ार 354 करोड़ रुपए हो गया। अब अगर आप मोदी सरकार में कॉर्पोरेट जगत को आयकर में मिली छूट और बैंकों द्वारा माफ़ किये गए क़र्ज़ के आंकड़े को जोड़ें, तो मालूम पड़ता है कि सरकार 13 लाख 24 हज़ार 21 करोड़ रुपए की सौगात कॉर्पोरेट जगत को दे चुकी है। यह आंकड़ा भारत के वार्षिक बजट का एक तिहाई हिस्सा से ज्यादा है। एक तरफ सरकार दोनों हाथों से कॉर्पोरेट जगत पर पैसे लुटा रही है, वहीं दूसरी तरफ पैसा जुगाड़ने के लिए सरकार ने किसानों और आम आदमी की सब्सिडी घटा रही है। मसलन, जहाँ सरकार ने 2020-2021 में 1 लाख 33 हज़ार 947 करोड़ रुपए किसानों को खाद पर मिलने वाली सब्सिडी पर खर्च किये थे, वहीं बजट 2021-22 में खाद सब्सिडी के लिए 79 हज़ार 530 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है यानी 40.62 फीसदी की कमी।
ध्यान रहे, यह वो पैसा नहीं है जो उद्योगपतियों का बैंको पर बकाया है और जिसे सरकार माफ़ कर देती है। एक आरटीआई के जवाब में सरकार ने बताया था की मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए ने 10 साल में बैंकों का 2 लाख 20 हज़ार 328 करोड़ रुपए माफ़ किया था, वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार के 5 साल के कार्यकाल में यह आंकड़ा तिगुना बढ़कर पहुंच गया 7 लाख 94 हज़ार 354 करोड़ रुपए हो गया। अब अगर आप मोदी सरकार में कॉर्पोरेट जगत को आयकर में मिली छूट और बैंकों द्वारा माफ़ किये गए क़र्ज़ के आंकड़े को जोड़ें, तो मालूम पड़ता है कि सरकार 13 लाख 24 हज़ार 21 करोड़ रुपए की सौगात कॉर्पोरेट जगत को दे चुकी है। यह आंकड़ा भारत के वार्षिक बजट का एक तिहाई हिस्सा से ज्यादा है। एक तरफ सरकार दोनों हाथों से कॉर्पोरेट जगत पर पैसे लुटा रही है, वहीं दूसरी तरफ पैसा जुगाड़ने के लिए सरकार ने किसानों और आम आदमी की सब्सिडी घटा रही है। मसलन, जहाँ सरकार ने 2020-2021 में 1 लाख 33 हज़ार 947 करोड़ रुपए किसानों को खाद पर मिलने वाली सब्सिडी पर खर्च किये थे, वहीं बजट 2021-22 में खाद सब्सिडी के लिए 79 हज़ार 530 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है यानी 40.62 फीसदी की कमी।
ताज़ा वीडियो