मिट्टी के तेल पर सब्सिडी ख़त्म, एलपीजी में 36% की कटौती
सरकार ने सब्सिडी को चुना और लोगों को मिलने वाली राहत में कमी कर दी...

कोरोना ने देश का बजट और बिगाड़ दिया है। गिरती आमदनी और बढ़ता राजकोषीय घाटा के चलते केंद्र सरकार देश की गरीब जनता को मिलने वाली सब्सिडी कम करके पैसे जुगाड़ रही है। बजट 2021-22 के मुताबिक सरकार ने खाली खजाने को भरने के लिए गरीबों को मिलने वाली सरकारी मदद पर छुरी चला दी है। सबसे ज्यादा मार पड़ी है किसानों और आम आदमी को।
मसलन, जहाँ सरकार ने 2019-2020 में 34 हज़ार 86 करोड़ रुपए का प्रावधान एलपीजी सब्सिडी के लिए किया था, 2020-21 में 36 हज़ार 72 करोड़ रुपए का लेकिन 2021-22 में इसे घटाकर सिर्फ 14 हज़ार 073 करोड़ रुपए कर दिया। यानि पूरी 36 फीसदी की कटौती।
मई 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "प्रधानमंत्री उज्जवला योजना" की शुरूआत की थी। इस योजना के तहत लगभग 5 करोड़ परिवारों, विशेषकर गरीबी रेखा से नीचे रह रही महिलाओं को रियायती एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराए जाते हैं। इसी तरह पहल योजना के तहत भी लोगो को एलपीजी सब्सिडी मिलती है। ज़ाहिर है स्कीम की सब्सिडी कम होने से इसके लाभार्थियों का दायरा छोटा होगा। इसी तरह सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से सस्ते दाम पर खाना बनाने के लिए केरोसिन देती है। लेकिन 2021-22 में, मंत्रालय ने केरोसिन सब्सिडी के लिए कोई पैसा आवंटित नहीं किया है। 2020-21 में 2 हज़ार 982 करोड़ रुपये की केरोसिन सब्सिडी पर खर्च का प्रावधान किया था जो कि 2019-20 की तुलना में 33% कम था। इसी तरह सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों पर दी जाने वाली सब्सिडी भी कम कर दी है। आशंका है कि इससे पेट्रोल-डीज़ल के दाम और बढ़ेंगे जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा। सरकार ने 38 हज़ार करोड़ की पेट्रोलियम सब्सिडी दी थी वित्त वर्ष 2020-21 में पर बजट 2021-22 में इसके लिए सिर्फ 12 हज़ार 995 करोड़ ही रखे गये हैं। आखिर सरकार ने सब्सिडी ही क्यों कम की? कही और से क्यों नहीं पैसे का जुगाड़ किया? इसका जवाब इस बात में है कि आखिर सरकार 1 रुपए को खर्च कैसे करती है। तो सबसे ज्यादा पैसा यानि 20 पैसे वह राज्यों को देती है जोकि उनके हक़ का जीएसटी और अन्य टैक्स का हिस्सा होता है, 18 पैसे क़र्ज़ का ब्याज चुकाने और वेतन पर खर्च होता है, सरकार 22 पैसे खर्च करती है। अलग अलग कल्याणकारी योजनाओं पर, 10 पैसे खर्च करती है फाइनेंस कमीशन पर, 8 पैसे फ़ौज पर खर्च होते हैं, 6 पैसे जाते है अलग अलग सब्सिडी देने में, 6 पैसे पेंशन देने और 10 पैसे अन्य मद में खर्च होते हैं। ऐसे में सरकार या तो अलग अलग योजनाओं पर होने वाला खर्च कम कर सकती थी, या फिर सब्सिडी का पैसा। सरकार ने सब्सिडी को चुना और लोगों को मिलने वाली राहत में कमी कर दी।
मई 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "प्रधानमंत्री उज्जवला योजना" की शुरूआत की थी। इस योजना के तहत लगभग 5 करोड़ परिवारों, विशेषकर गरीबी रेखा से नीचे रह रही महिलाओं को रियायती एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराए जाते हैं। इसी तरह पहल योजना के तहत भी लोगो को एलपीजी सब्सिडी मिलती है। ज़ाहिर है स्कीम की सब्सिडी कम होने से इसके लाभार्थियों का दायरा छोटा होगा। इसी तरह सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से सस्ते दाम पर खाना बनाने के लिए केरोसिन देती है। लेकिन 2021-22 में, मंत्रालय ने केरोसिन सब्सिडी के लिए कोई पैसा आवंटित नहीं किया है। 2020-21 में 2 हज़ार 982 करोड़ रुपये की केरोसिन सब्सिडी पर खर्च का प्रावधान किया था जो कि 2019-20 की तुलना में 33% कम था। इसी तरह सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों पर दी जाने वाली सब्सिडी भी कम कर दी है। आशंका है कि इससे पेट्रोल-डीज़ल के दाम और बढ़ेंगे जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा। सरकार ने 38 हज़ार करोड़ की पेट्रोलियम सब्सिडी दी थी वित्त वर्ष 2020-21 में पर बजट 2021-22 में इसके लिए सिर्फ 12 हज़ार 995 करोड़ ही रखे गये हैं। आखिर सरकार ने सब्सिडी ही क्यों कम की? कही और से क्यों नहीं पैसे का जुगाड़ किया? इसका जवाब इस बात में है कि आखिर सरकार 1 रुपए को खर्च कैसे करती है। तो सबसे ज्यादा पैसा यानि 20 पैसे वह राज्यों को देती है जोकि उनके हक़ का जीएसटी और अन्य टैक्स का हिस्सा होता है, 18 पैसे क़र्ज़ का ब्याज चुकाने और वेतन पर खर्च होता है, सरकार 22 पैसे खर्च करती है। अलग अलग कल्याणकारी योजनाओं पर, 10 पैसे खर्च करती है फाइनेंस कमीशन पर, 8 पैसे फ़ौज पर खर्च होते हैं, 6 पैसे जाते है अलग अलग सब्सिडी देने में, 6 पैसे पेंशन देने और 10 पैसे अन्य मद में खर्च होते हैं। ऐसे में सरकार या तो अलग अलग योजनाओं पर होने वाला खर्च कम कर सकती थी, या फिर सब्सिडी का पैसा। सरकार ने सब्सिडी को चुना और लोगों को मिलने वाली राहत में कमी कर दी।
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