घटती आमदनी के दौर में कैसे होगा बजट में पैसे का इंतज़ाम ?
अब सरकार की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि राजकोषीय घाटा और टैक्स वसूली के मोर्चे पर पिछड़ने के बाद वो अपने ख़र्च और योजनाओं के लिए पैसा कहाँ से लाए?

देश में कोरोना महामारी के बाद पहला बजट पेश होने जा रहा है। आर्थिक जानकारों के मुताबिक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए इस बार बजट बनाना किसी दो धारी तलवार से कम नहीं है। बजट समझने से लिए आपको समझना होगा की आखिर सरकार के पास पैसा आता कहा से है और जाता कहा है।
पहले बात करते है आमदनी की तो सरकार सबसे ज्यादा पैसे का जुगाड़ करती है क़र्ज़ और देनदारी से। यानि एक रुपए जो सरकार खर्च करती है उसमे 20 पैसे क़र्ज़ और देनदारी से आते है, 18 पैसे कॉर्पोरेट टैक्स से, 17 पैसे इनकम टैक्स से, 4 पैसे कस्टम ड्यूटी से, 7 पैसे एक्साइज ड्यूटी से, 18 पैसे जीएसटी से, 10 पैसे नॉन-टैक्स रेवेनुए से और 6 पैसे नॉन-डेब्ट कैपिटल रेसिप्टस से आते है। ऐसे बनता है पूरा एक रुपए जिससे सरकार अपना राज-काज चलाती है।
अब बात करते है की यह रुपया खर्च कैसे होता है तो सबसे ज्यादा पैसा यानि 20 पैसे देती राज्यों को, जोकि उनके हक़ का जीएसटी और अन्य टैक्स का हिस्सा होता है, 18 पैसे क़र्ज़ का ब्याज चुकाने और वेतन पर खर्च होता है, 22 पैसे खर्च करती है अलग अलग कल्याणकारी योजनाओं पर, 10 पैसे खर्च करती है फाइनेंस कमीशन पर, 8 पैसे फ़ौज पर खर्च होते हैं, 6 पैसे जाते है अलग अलग सब्सिडी देने में, 6 पैसे पेंशन देने और 10 पैसे अन्य मद में खर्च होते हैं। ऐसे में सरकार या तो अलग अलग योजनाओं पर होने वाला खर्च कम कर सकती है, या फिर सब्सिडी का पैसा कम कर सकती है। यानी सरकार के पास खेलने के लिए ज़्यादा स्पेस नहीं है। निर्मला सीतारमण की समस्या यह है कि सरकार की आमदनी लगातार गिरी है। सरकार लगातार जीएसटी कलेक्शन में पिछड़ रही है। अक्टूबर में फरवरी महीने के बाद पहली बार जीएसटी कलेक्शन एक लाख करोड़ रुपए के पार गया वरना हर महीने जीएसटी कलेक्शन लक्ष्य से कम था। नवंबर और दिसंबर में भी जीएसटी कलेक्शन एक लाख करोड़ से ऊपर रहा लेकिन सरकार का अपने वार्षिक जीएसटी लक्ष्य को पाना बेहद मुश्किल मालूम पड़ता है। आर्थिक जानकारों के मुताबिक इस वक़्त सरकार को ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्च करना चाहिए ताकि लोगो के हाथ में पैसा आये और आर्थिक चक्का घूमे लेकिन वो भी सरकार के हाथ से बाहर है। कारण है ज़बरदस्त तरीके से बढ़ता राजकोषीय घाटा। अगर सरकार अगर बिना आमदनी के खर्च करती रहेगी तो ज़ाहिर है फिस्कल डेफिसिट बढ़ता जायेगा जिससे अर्थव्यवस्था के बैठ जाने की आशंका है। अब सरकार की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि राजकोषीय घाटा और टैक्स वसूली के मोर्चे पर पिछड़ने के बाद वो अपने ख़र्च और योजनाओं के लिए पैसा कहाँ से लाए?
अब बात करते है की यह रुपया खर्च कैसे होता है तो सबसे ज्यादा पैसा यानि 20 पैसे देती राज्यों को, जोकि उनके हक़ का जीएसटी और अन्य टैक्स का हिस्सा होता है, 18 पैसे क़र्ज़ का ब्याज चुकाने और वेतन पर खर्च होता है, 22 पैसे खर्च करती है अलग अलग कल्याणकारी योजनाओं पर, 10 पैसे खर्च करती है फाइनेंस कमीशन पर, 8 पैसे फ़ौज पर खर्च होते हैं, 6 पैसे जाते है अलग अलग सब्सिडी देने में, 6 पैसे पेंशन देने और 10 पैसे अन्य मद में खर्च होते हैं। ऐसे में सरकार या तो अलग अलग योजनाओं पर होने वाला खर्च कम कर सकती है, या फिर सब्सिडी का पैसा कम कर सकती है। यानी सरकार के पास खेलने के लिए ज़्यादा स्पेस नहीं है। निर्मला सीतारमण की समस्या यह है कि सरकार की आमदनी लगातार गिरी है। सरकार लगातार जीएसटी कलेक्शन में पिछड़ रही है। अक्टूबर में फरवरी महीने के बाद पहली बार जीएसटी कलेक्शन एक लाख करोड़ रुपए के पार गया वरना हर महीने जीएसटी कलेक्शन लक्ष्य से कम था। नवंबर और दिसंबर में भी जीएसटी कलेक्शन एक लाख करोड़ से ऊपर रहा लेकिन सरकार का अपने वार्षिक जीएसटी लक्ष्य को पाना बेहद मुश्किल मालूम पड़ता है। आर्थिक जानकारों के मुताबिक इस वक़्त सरकार को ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्च करना चाहिए ताकि लोगो के हाथ में पैसा आये और आर्थिक चक्का घूमे लेकिन वो भी सरकार के हाथ से बाहर है। कारण है ज़बरदस्त तरीके से बढ़ता राजकोषीय घाटा। अगर सरकार अगर बिना आमदनी के खर्च करती रहेगी तो ज़ाहिर है फिस्कल डेफिसिट बढ़ता जायेगा जिससे अर्थव्यवस्था के बैठ जाने की आशंका है। अब सरकार की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि राजकोषीय घाटा और टैक्स वसूली के मोर्चे पर पिछड़ने के बाद वो अपने ख़र्च और योजनाओं के लिए पैसा कहाँ से लाए?
ताज़ा वीडियो