क्या मोदी सरकार में शेयर मार्केट पहेली बन गया है ?

भारत में गिरती अर्थव्यवस्था का अक्स स्टॉक बाजार में आसानी से देखा जा सकता है। एक तरफ देश में विषम आर्थिक परिस्थितियों के चलते छोटी और मध्यम वर्ग की कंपनिया किनारे लगती जा रही है, वहीं बड़ी कंपनियों की मार्केट वैल्यू बढ़ती जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि साल 2006 में जहां भारत की पूरी दुनिया के मार्केट कैप में हिस्सेदारी थी 1.63 फीसदी और वैश्विक जीडीपी में हिस्सेदारी थी 1.84 फीसदी।
साल 2017 आते-आते भारत की पूरी दुनिया के मार्केट कैप में हिस्सेदारी हो गयी 2.93 फीसदी और पूरी दुनिया की जीडीपी में भारत की भागीदारी हो गयी 3.08 फीसदी।
पिछले साल भी आकड़ों में बदलाव आया। साल 2019 में भारत की पूरी दुनिया के मार्केट कैप में हिस्सेदारी घटकर रह गयी 2.5% जबकि पूरी दुनिया की जीडीपी में हिस्सेदारी पहुंच गयी 4.7%. आसान भाषा में कहें तो भारत का स्टॉक बाज़ार सिकुड़ गया है, भले ही अर्थव्यवस्था बड़ी हो गयी। इसके मुमकिन होने के पीछे कारण है पिछले 2 साल से भारत जबरदस्त आर्थिक मंदी से गुज़र रहा है। एक तरफ जहां उद्योग-धंधे सिकुड़ते जा रहे हैं, वहीं बड़ी-बड़ी कंपनिया लगातार अपना विस्तार कर रही हैं। समस्या ये है कि भारत एक विकासशील देश है जहां ज्यादा तादाद छोटे-मझोले कारोबारियों की है। हालांकि, छोटी कंपनियों का कारोबार ठप हो रहा है लेकिन स्टॉक मार्केट में गति बनी हुई है। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में शेयर की कीमतों में 50 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ था लेकिन अब शेयर मार्केट का गणित पूरी तरह बिगड़ चुका है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल में शेयर धारकों का जितना पैसा स्टॉक मार्केट में स्वाहा हुआ, उतना ब्रिटेन को छोड़कर पूरी दुनिया में कहीं नहीं हुआ। आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था की तरह कैपिटल मार्केट्स भी सिकुड़ रही है। पिछले 1 साल में देश में शेयर धारकों के 543 बिलियन डॉलर धुआँ हो चुके हैं।
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पिछले साल भी आकड़ों में बदलाव आया। साल 2019 में भारत की पूरी दुनिया के मार्केट कैप में हिस्सेदारी घटकर रह गयी 2.5% जबकि पूरी दुनिया की जीडीपी में हिस्सेदारी पहुंच गयी 4.7%. आसान भाषा में कहें तो भारत का स्टॉक बाज़ार सिकुड़ गया है, भले ही अर्थव्यवस्था बड़ी हो गयी। इसके मुमकिन होने के पीछे कारण है पिछले 2 साल से भारत जबरदस्त आर्थिक मंदी से गुज़र रहा है। एक तरफ जहां उद्योग-धंधे सिकुड़ते जा रहे हैं, वहीं बड़ी-बड़ी कंपनिया लगातार अपना विस्तार कर रही हैं। समस्या ये है कि भारत एक विकासशील देश है जहां ज्यादा तादाद छोटे-मझोले कारोबारियों की है। हालांकि, छोटी कंपनियों का कारोबार ठप हो रहा है लेकिन स्टॉक मार्केट में गति बनी हुई है। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में शेयर की कीमतों में 50 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ था लेकिन अब शेयर मार्केट का गणित पूरी तरह बिगड़ चुका है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल में शेयर धारकों का जितना पैसा स्टॉक मार्केट में स्वाहा हुआ, उतना ब्रिटेन को छोड़कर पूरी दुनिया में कहीं नहीं हुआ। आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था की तरह कैपिटल मार्केट्स भी सिकुड़ रही है। पिछले 1 साल में देश में शेयर धारकों के 543 बिलियन डॉलर धुआँ हो चुके हैं।
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