छवि चमकाने के लिए करोड़पतियों पर 'टैक्स' लगा सकती है सरकार
अब अगर सरकार इन अमीर लोगो पर लगने वाला टैक्स बढ़ाकर 50 फीसदी भी कर देती है, तो उससे सरकारी खजाने में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं होगी।

देश आर्थिक ढलान पर है। सच्चाई यह है की भारत आर्थिक मोर्चे पर बहुत पहले ही फिसलने लगा था, महामारी और लॉकडाउन ने सिर्फ इसके लुढ़कने की रफ़्तार को गति दे दी। अब सबकी आखें लगी हुई हैं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर कि कैसे सरकार की गिरती आमदनी और बढ़ते हुए खर्चो के बीच वो देश का बजट रखती है। कई आर्थिक जानकरों का मानना है कि सरकार आने वाले वर्ष में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए अपना राजकोषीय घाटा बढ़ा सकती है। सवाल है कि सरकार अमीरों पर टैक्स बढ़ाकर देश को वित्तीय संकट से उबारने का प्रयास कर सकती है कि नहीं।
दरअसल, देश में 1971 में 5 करोड़ सालाना कमाने वालों पर 85 फीसदी टैक्स और 10 फीसदी सरचार्ज लगता था, जिससे कुल टैक्स 93.5 फीसदी का पहुंच जाता है। इसके बाद यह लगातार घटने लगा। मसलन 1974 में 5 करोड़ सालाना आमदनी पर कुल 77 फीसदी टैक्स, 1976 में कुल 66 फीसदी, 1984 में 61.9 कुल फीसदी और अगले साल यह आंकड़ा पहुंच गया कुल 50 पर।
1992 में 5 करोड़ से ज्यादा कमाने वाले 44.8 फीसदी आयकर चुका रहे थे और 1997 में इनकम टैक्स और घटकर आ गया 30 फीसदी पर। लेकिन 2019 आते आते, इसी 30 फीसदी टैक्स पर 37 फीसदी सरचार्ज सरकार वसूलने लगी, जिससे वार्षिक आमदनी पर कुल टैक्स पहुंच गया 42.7 फीसदी पर। अब अगर सरकार इन अमीर लोगो पर लगने वाला टैक्स बढ़ाकर 50 फीसदी भी कर देती है, तो उससे सरकारी खजाने में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं होगी। कारण है इस टैक्स स्लैब में बेहद ही कम भारतीय आते है। इनकम टैक्स के अनुसार साल 2019 में सिर्फ 2 हज़ार 849 लोगो ने ही अपनी आमदनी 5 करोड़ से ज्यादा बतायी थी। साल 1963-64 में भारत चीन युद्ध के बाद देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था। जहाँ एक तरफ देश पर चढ़ा क़र्ज़ बढ़ता जा रहा था, वही देश में फ़ौज पर खर्च युद्ध के बाद आसमान छू रहा था। उस समय देश को इससे निकालने के लिए तब के पीएम मोरारजी देसाई ने कस्टम ड्यूटी को बढ़ाया था, विदेश यात्राओं में कमी की गयी थी ताकि देश का फॉरेन रिज़र्व मज़बूत रहे। इसके साथ-साथ अमीरों पर सुपर प्रॉफिट टैक्स के नाम से आयकर बढ़ाया गया था। जानकारों की मानें तो ऐसा ही कुछ निर्मला सीतारमण भी कर सकती हैं। इससे भले ही सरकार को काफी बड़ी रकम हासिल न हो लेकिन अमीरो पर टैक्स लादकर सरकार अपनी छवि तो चमका ही लेगी।
1992 में 5 करोड़ से ज्यादा कमाने वाले 44.8 फीसदी आयकर चुका रहे थे और 1997 में इनकम टैक्स और घटकर आ गया 30 फीसदी पर। लेकिन 2019 आते आते, इसी 30 फीसदी टैक्स पर 37 फीसदी सरचार्ज सरकार वसूलने लगी, जिससे वार्षिक आमदनी पर कुल टैक्स पहुंच गया 42.7 फीसदी पर। अब अगर सरकार इन अमीर लोगो पर लगने वाला टैक्स बढ़ाकर 50 फीसदी भी कर देती है, तो उससे सरकारी खजाने में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं होगी। कारण है इस टैक्स स्लैब में बेहद ही कम भारतीय आते है। इनकम टैक्स के अनुसार साल 2019 में सिर्फ 2 हज़ार 849 लोगो ने ही अपनी आमदनी 5 करोड़ से ज्यादा बतायी थी। साल 1963-64 में भारत चीन युद्ध के बाद देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था। जहाँ एक तरफ देश पर चढ़ा क़र्ज़ बढ़ता जा रहा था, वही देश में फ़ौज पर खर्च युद्ध के बाद आसमान छू रहा था। उस समय देश को इससे निकालने के लिए तब के पीएम मोरारजी देसाई ने कस्टम ड्यूटी को बढ़ाया था, विदेश यात्राओं में कमी की गयी थी ताकि देश का फॉरेन रिज़र्व मज़बूत रहे। इसके साथ-साथ अमीरों पर सुपर प्रॉफिट टैक्स के नाम से आयकर बढ़ाया गया था। जानकारों की मानें तो ऐसा ही कुछ निर्मला सीतारमण भी कर सकती हैं। इससे भले ही सरकार को काफी बड़ी रकम हासिल न हो लेकिन अमीरो पर टैक्स लादकर सरकार अपनी छवि तो चमका ही लेगी।
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