महामारी और आर्थिक गिरावट के बीच पूरी दुनिया में बढ़े खाने-पीने की चीज़ों के दाम!

पूरी दुनिया में महामारी और इसके चलते आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा पिस रहे है गरीब जिन्हें महंगाई के चलते खाने के लाले पड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि साल 2020 में दुनियाभर में खान-पान की चीज़ो की कीमतों में 7 मासिक वृद्धि दर्ज़ हुई। कीमतों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी दूध से बनी चीज़ो और खाने के तेल में देखी गई।
Food and Agriculture Organization of the United Nations के मुताबिक फूड प्राइस इंडेक्स दिसंबर 2020 में 107.5 अंक दर्ज हुआ जो कि नवंबर महीने से 2.2 प्रतिशत अधिक था। संयुक्त राष्ट्र ने खाने-पीने की महंगाई का जो बेंचमार्क फिक्स किया है, उसके हिसाब से पूरे साल 2020 में फूड प्राइस इंडेक्स औसतन 97.9 अंक रहा जो कि पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा था और 2019 के मुकाबले 3.1 प्रतिशत ज्यादा।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक साल 2020 में अनाज के कीमतें पूरे साल 2019 के स्तर से 6.6 परसेंट ज्यादा रहीं। उत्तर और दक्षिण अमेरिका के साथ-साथ रूस में भी फसलों को लेकर बढ़ी अनिश्चितता के चलते दिसंबर महीने में गेहूं, मक्का और चावल के निर्यात मूल्य में भी तेज़ी दर्ज हुई। मसलन सालाना आधार पर, चावल निर्यात मूल्य 2019 की तुलना में 2020 में 8.6 प्रतिशत अधिक था, जबकि मक्का और गेहूं के लिए क्रमशः 7.6 प्रतिशत और 5.6 प्रतिशत अधिक थे। यही हाल रहा खाद्य तेल का जिसकी कीमतों में बीते दिसंबर में 4.7 प्रतिशत वृद्धि दर्ज़ हुई और यह दिसंबर 2012 के बाद अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। प्रमुख पाम तेल उत्पादक देशों में चल रही आपूर्ति की कमी के अलावा, इंडोनेशिया में बढ़ी एक्सपोर्ट ड्यूटी के चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार प्रभावित हुआ। अर्जेंटीना में लंबे समय तक से चल रही हड़तालों के चलते, वहाँ तेल निकालने की प्रक्रिया और एक्सपोर्ट गतिविधियो में गिरावट आई और इसके कारण सोया तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें बढ़ गईं। पिछले वर्ष की तुलना में 2020 में वनस्पति तेल 19.1 प्रतिशत अधिक महंगा था। इसी तरह पश्चिमी यूरोप समेत पूरी दुनिया में दूध की माँग बढ़ी और इसकी कीमतों में दिसंबर महीने में 3.2 प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज हुई जो कि बीते साल की लगातार सातवीं मासिक वृद्धि है। हालांकि, 2020 के दौरान, डेयरी मूल्य सूचकांक 2019 की तुलना में 1.0 प्रतिशत कम था। लेकिन इन आंकड़ों से यह भी मालूम पड़ता है कि कोरोनाकाल में दुनिया में मीट उत्पादों की मांग घटी है। जहाँ अलग-अलग देशों से बर्डफ्लू के मामले आने से चिकन प्रोडक्टस की कीमतों में कमी आई, वही स्वाइन फ्लू के चलते सूअर के मांस की मांग में गिरावट दर्ज़ हुई। नतीजा यह रहा की मीट उत्पादों की कीमतों में साल 2020 में 2019 के मुकाबले में 4.5 परसेंट कमी आ गई। यह आंकड़े भारत में चिंता बढ़ाने वाले हैं जहाँ 67 परसेंट आबादी दो जून की रोटी के लिए सरकार पर निर्भर है। दरअसल, देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू है और लगभग 81.35 करोड़ लोगो को सरकार सस्ते में राशन उपलब्ध कराती है। अब सरकार राशन पर आश्रित लोगो के आंकड़े को कम करना चाहती है क्योंकि उसे अपनी फ़ूड सब्सिडी के खर्च को कम करना है। भारत जिस तरह का गरीब देश है वहाँ ऐसा करने पर इसका विपरीत असर पड सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक साल 2020 में अनाज के कीमतें पूरे साल 2019 के स्तर से 6.6 परसेंट ज्यादा रहीं। उत्तर और दक्षिण अमेरिका के साथ-साथ रूस में भी फसलों को लेकर बढ़ी अनिश्चितता के चलते दिसंबर महीने में गेहूं, मक्का और चावल के निर्यात मूल्य में भी तेज़ी दर्ज हुई। मसलन सालाना आधार पर, चावल निर्यात मूल्य 2019 की तुलना में 2020 में 8.6 प्रतिशत अधिक था, जबकि मक्का और गेहूं के लिए क्रमशः 7.6 प्रतिशत और 5.6 प्रतिशत अधिक थे। यही हाल रहा खाद्य तेल का जिसकी कीमतों में बीते दिसंबर में 4.7 प्रतिशत वृद्धि दर्ज़ हुई और यह दिसंबर 2012 के बाद अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। प्रमुख पाम तेल उत्पादक देशों में चल रही आपूर्ति की कमी के अलावा, इंडोनेशिया में बढ़ी एक्सपोर्ट ड्यूटी के चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार प्रभावित हुआ। अर्जेंटीना में लंबे समय तक से चल रही हड़तालों के चलते, वहाँ तेल निकालने की प्रक्रिया और एक्सपोर्ट गतिविधियो में गिरावट आई और इसके कारण सोया तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें बढ़ गईं। पिछले वर्ष की तुलना में 2020 में वनस्पति तेल 19.1 प्रतिशत अधिक महंगा था। इसी तरह पश्चिमी यूरोप समेत पूरी दुनिया में दूध की माँग बढ़ी और इसकी कीमतों में दिसंबर महीने में 3.2 प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज हुई जो कि बीते साल की लगातार सातवीं मासिक वृद्धि है। हालांकि, 2020 के दौरान, डेयरी मूल्य सूचकांक 2019 की तुलना में 1.0 प्रतिशत कम था। लेकिन इन आंकड़ों से यह भी मालूम पड़ता है कि कोरोनाकाल में दुनिया में मीट उत्पादों की मांग घटी है। जहाँ अलग-अलग देशों से बर्डफ्लू के मामले आने से चिकन प्रोडक्टस की कीमतों में कमी आई, वही स्वाइन फ्लू के चलते सूअर के मांस की मांग में गिरावट दर्ज़ हुई। नतीजा यह रहा की मीट उत्पादों की कीमतों में साल 2020 में 2019 के मुकाबले में 4.5 परसेंट कमी आ गई। यह आंकड़े भारत में चिंता बढ़ाने वाले हैं जहाँ 67 परसेंट आबादी दो जून की रोटी के लिए सरकार पर निर्भर है। दरअसल, देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू है और लगभग 81.35 करोड़ लोगो को सरकार सस्ते में राशन उपलब्ध कराती है। अब सरकार राशन पर आश्रित लोगो के आंकड़े को कम करना चाहती है क्योंकि उसे अपनी फ़ूड सब्सिडी के खर्च को कम करना है। भारत जिस तरह का गरीब देश है वहाँ ऐसा करने पर इसका विपरीत असर पड सकता है।
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