शेयर बाज़ार में धूम के बावजूद धीमी है अर्थव्यवस्था, राजकोषीय घाटा 12.5 फ़ीसदी रहने का अनुमान
सरकार की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि राजकोषीय घाटा और टैक्स वसूली के मोर्चे पर पिछड़ने के बाद वो अपने ख़र्च और योजनाओं के लिए पैसा कहाँ से लाए?

देश में वायदा बाजार या स्टॉक बाजार तो 50 हज़ार अंक छूकर गुलज़ार है लेकिन अर्थव्यवस्था की हालत पतली है। सरकार भले ही ठीकरा लॉकडाउन पर फोड़े लेकिन सच्चाई यही है की देश आर्थिक मोर्चे पर पिछले 3 साल से लगातार फिसल रहा है। अब रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने अनुमान लगाया है की वित्त वर्ष 2020-21 में देश का राजकोषीय घाटा या फिस्कल डेफिसिट जीडीपी का 12.5 फीसदी हो जाएगा। ध्यान रहे, पिछले साल राजकोषीय घाटा जीडीपी का 7 फीसदी था। राजकोषीय घाटा सरकार की आमदनी और खर्च के बीच के फर्क को कहा जाता है और हर सरकार चाहती है इसे कम से कम रखा जाये।
आरबीआई ने जनवरी बुलेटिन में जानकारी दी है कि इस साल के पहले 6 महीने में घाटा 14.5 फीसदी और मार्च में ख़त्म होने वाली दूसरी छमाही में 10.4 फीसदी रहने की आशंका है। वैसे तो आर्थिक जानकारों के मुताबिक इस वक़्त सरकार को राजकोषीय घाटा की परवाह नहीं करते हुए ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्च करना चाहिए ताकि लोगो के हाथ में पैसा आये और आर्थिक चक्का घूमे लेकिन, आंकड़े इसकी गवाही नहीं देते।
मसलन सरकार ने इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 7 लाख 26 हज़ार 278 करोड़ रुपए खर्च किये थे, जबकि दूसरी तिमाही यानि जुलाई -सितंबर तिमाही में यह आँकड़ा घटकर रह गया 5 लाख 61 हज़ार 812 करोड़ रुपए।अगर इसकी तुलना पिछले साल की जुलाई -सितंबर तिमाही से करें तो पता चलता है कि सरकार इस साल से ज्यादा पैसा तो पिछले साल खर्च कर रही थी। पिछले साल यही आँकड़ा था 6 लाख 85 हज़ार 212 करोड़ रुपए। आसान भाषा में कहें तो सरकार पहले से कम पैसा अर्थव्यवस्था में लगा रही है। सवाल उठता है की सरकार जब पहले से पैसा कम खर्च कर रही है तो आखिर घाटा बढ़ कैसे रहा है। इसका जवाब है सरकार की लगातार गिरती आमदनी। दरअसल, सरकार लगातार जीएसटी कलेक्शन में पिछड़ रही है। अक्टूबर में फरवरी महीने के बाद पहली बार जीएसटी कलेक्शन 1 लाख करोड़ रुपए के पार गया वरना हर महीने जीएसटी कलेक्शन लक्ष्य से कम था। नवंबर और दिसंबर में भी जीएसटी कलेक्शन 1 लाख करोड़ से ऊपर रहा लेकिन सरकार का अपने वार्षिक जीएसटी लक्ष्य को पाना बेहद मुश्किल मालूम पड़ता है। अब सरकार की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि राजकोषीय घाटा और टैक्स वसूली के मोर्चे पर पिछड़ने के बाद वो अपने ख़र्च और योजनाओं के लिए पैसा कहाँ से लाए?
मसलन सरकार ने इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 7 लाख 26 हज़ार 278 करोड़ रुपए खर्च किये थे, जबकि दूसरी तिमाही यानि जुलाई -सितंबर तिमाही में यह आँकड़ा घटकर रह गया 5 लाख 61 हज़ार 812 करोड़ रुपए।अगर इसकी तुलना पिछले साल की जुलाई -सितंबर तिमाही से करें तो पता चलता है कि सरकार इस साल से ज्यादा पैसा तो पिछले साल खर्च कर रही थी। पिछले साल यही आँकड़ा था 6 लाख 85 हज़ार 212 करोड़ रुपए। आसान भाषा में कहें तो सरकार पहले से कम पैसा अर्थव्यवस्था में लगा रही है। सवाल उठता है की सरकार जब पहले से पैसा कम खर्च कर रही है तो आखिर घाटा बढ़ कैसे रहा है। इसका जवाब है सरकार की लगातार गिरती आमदनी। दरअसल, सरकार लगातार जीएसटी कलेक्शन में पिछड़ रही है। अक्टूबर में फरवरी महीने के बाद पहली बार जीएसटी कलेक्शन 1 लाख करोड़ रुपए के पार गया वरना हर महीने जीएसटी कलेक्शन लक्ष्य से कम था। नवंबर और दिसंबर में भी जीएसटी कलेक्शन 1 लाख करोड़ से ऊपर रहा लेकिन सरकार का अपने वार्षिक जीएसटी लक्ष्य को पाना बेहद मुश्किल मालूम पड़ता है। अब सरकार की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि राजकोषीय घाटा और टैक्स वसूली के मोर्चे पर पिछड़ने के बाद वो अपने ख़र्च और योजनाओं के लिए पैसा कहाँ से लाए?
ताज़ा वीडियो