एफ़सीआई पर कर्ज़ बढ़कर 3 लाख करोड़ से ज़्यादा हुआ, तो क्या सरकार इसे भी बेच देगी?

केंद्र सरकार के विवादित कृषि विधेयकों के विरोध में पंजाब और हरियाणा के किसान सड़कों पर हैं। किसान और उनसे जुड़े संगठनों का आरोप है कि सरकार मंडी को ख़त्म कर बड़े कॉरपोरेट घरानों को उन्हें बेचने पर तुली है। इसी हंगामे के बीच अब फूड कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया यानी भारतीय खाद्य निगम भी चर्चा में आ गया है जिसके ऊपर कर्ज़ पर कर्ज़ चढ़ता जा रहा है.
यहां यह जानना ज़रूरी है कि मंडी से किसान की फसल सरकार भारतीय खाद्य निगम के माध्यम ही खरीदती है लेकिन इसी निगम के ऊपर चढ़ा कर्ज़ मोदी सरकार के 6 सालों में तीन गुना हो चुका है. ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक चालू वित वर्ष में भारतीय खाद्य निगम पर चढ़ा क़र्ज़ 3 लाख करोड़ के पार जा चुका है.
इसी आंकड़े में निगम का 1.45 लाख करोड़ भी शामिल है जोकि केंद्र सरकार पर बकाया है. साल 2014-15 में जहा निगम 1 लाख 616 करोड़ रुपए के कर्ज़े में था, वो साल 2019-20 में बढ़कर 3 लाख करोड़ से भी ज्यादा हो गया. अब कृषि से जुड़े नए कानून के पारित होने के बाद एफ़सीआई के दिवालिया होने की आशंका जताई जा रही है. वहीं सरकार बार-बार एफ़सीआई को रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया से क़र्ज़ लेकर चलाने का सुझाव दे देती है लेकिन लाखों करोड़ के क़र्ज़ तले दबी एफ़सीआई नया क़र्ज़ आमदनी बढ़ाए बिना चुकाएगी कैसे. 22 हज़ार कर्मचारियों और कई और हज़ार कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए लोगों वाली एफ़सीआई का सालाना बजट 1.5 लाख करोड़ रुपए यानी पंजाब के कुल बजट से भी ज्यादा होता है. अब आशंका है कि नए कानून के लागू होने के बाद जब किसान को अपनी फसल कहीं भी और किसी को भी बेचने की आज़ादी होगी, तब इस क्षेत्र में बड़ी कंपनियों का दबदबा हो जायेगा और मंडी के ज़रिये होने वाला कारोबार भी कम हो जायेगा. ऐसा होने से एफ़सीआई की भी ज़रूरत बाज़ार में कम हो जाएगी और शायद इसे भी केंद्र सरकार कई अन्य कंपनियों की तरह चलता कर सकती है. इस साल पेश हुए इकनोमिक सर्वे में वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ती सुब्रमण्यन पहले ही कह चुके हैं कि सरकार को लोगों को खाने पर दी जाने वाली सब्सिडी कम करने की तरफ बढ़ना चाहिए ताकि सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ कम हो सके.
इसी आंकड़े में निगम का 1.45 लाख करोड़ भी शामिल है जोकि केंद्र सरकार पर बकाया है. साल 2014-15 में जहा निगम 1 लाख 616 करोड़ रुपए के कर्ज़े में था, वो साल 2019-20 में बढ़कर 3 लाख करोड़ से भी ज्यादा हो गया. अब कृषि से जुड़े नए कानून के पारित होने के बाद एफ़सीआई के दिवालिया होने की आशंका जताई जा रही है. वहीं सरकार बार-बार एफ़सीआई को रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया से क़र्ज़ लेकर चलाने का सुझाव दे देती है लेकिन लाखों करोड़ के क़र्ज़ तले दबी एफ़सीआई नया क़र्ज़ आमदनी बढ़ाए बिना चुकाएगी कैसे. 22 हज़ार कर्मचारियों और कई और हज़ार कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए लोगों वाली एफ़सीआई का सालाना बजट 1.5 लाख करोड़ रुपए यानी पंजाब के कुल बजट से भी ज्यादा होता है. अब आशंका है कि नए कानून के लागू होने के बाद जब किसान को अपनी फसल कहीं भी और किसी को भी बेचने की आज़ादी होगी, तब इस क्षेत्र में बड़ी कंपनियों का दबदबा हो जायेगा और मंडी के ज़रिये होने वाला कारोबार भी कम हो जायेगा. ऐसा होने से एफ़सीआई की भी ज़रूरत बाज़ार में कम हो जाएगी और शायद इसे भी केंद्र सरकार कई अन्य कंपनियों की तरह चलता कर सकती है. इस साल पेश हुए इकनोमिक सर्वे में वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ती सुब्रमण्यन पहले ही कह चुके हैं कि सरकार को लोगों को खाने पर दी जाने वाली सब्सिडी कम करने की तरफ बढ़ना चाहिए ताकि सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ कम हो सके.
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